Thursday, January 31, 2008
बेगुसराय की पहली अभिनेत्री नीतू सिंह का एक परिचय
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 12:54 AM
Wednesday, January 30, 2008
माओवादी ने पर्चा चस्पा कर बेगुसराय को किया हलकान
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 10:48 PM
Monday, January 28, 2008
नर्सरी टीचर्स प्रशिक्षण केन्द्र का उदघाटन समारोह सम्पन्न
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 2:52 AM
Saturday, January 26, 2008
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
''अक्षर-जीवी'' ब्लोग राइटर्स असोसिएसन की तरफ से बेगुसराए समेत सभी जगहों के पाठकों को गणतंत्र दिवस के ५९ वीं वर्षगांठ पर हार्दिक शुभेश्नाएं।
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 12:01 PM 0 टिप्पणियाँ
ए हमार छब्बीस जनवरी
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के बीच कुछ प्रश्न कुलबुला रहे हैं जिसका जबाब वर्षों से तलाशने की कोशिश जारी है। लेकिन न तो जबाब मिल पाया है और न ही कोई नया प्रयास दीखता है वही विपन्नता,वही हाथों में कटोरे, पेट भरने की आस में सत्ता के झंडे लेकर हांफने वाला यह वर्ग कब हकीकत से रू-बरू हो पायगा ,कब जागेगा आत्मविश्वास, यह इस्तेमाल करने वाले हरामिओं को कब उसकी औकात बताय्गा । वैशाली और लिछ्छ्वी के गणतंत्र के धरोहर से सम्पन्न इसकी वर्त्तमान हाल पर आंसू बहाने की ज़रूरत नही बल्कि परिवर्तन के शंखनाद की ज़रूरत है। गणतंत्र दिवस पर टीवी पर पैरेड देखने के बाद ब्लोग में कुछ खास तलाशने बैठा तो संयोग से आप पाठकों के लिए एक सुन्दर उपहार मिल गया,सोचा परोस ही दूँ। ''भोजपुरिया'' नाम से एक ब्लोग्साईट अभी चर्चा में आया ही है,भोजपुरी भाषा की लोकप्रियता के कारण लोग इसे पढ़ भी रहे हैं ,उसी पर यह कविता थी ,एक नज़र ज़रूर डालिए:- ए हमार छब्बीस जनवरी आइ गइलू न, फिर अटकत-मटकत...ए हमार छब्बीस जनवरीअबहिन बाकी बा कुछ अउरी?त आवा तनी गोरख बाबू के सुर में इहो कुल सुनले जा कि तोहके चूमे-चाटे वाले, सलूट मारै वाले का-का करत हउवैं....रउरा सासना के बाटे ना जवाब भाई जीरउरा कुरसी से झरेला गुलाब भाई जीरउरा भोंभा लेके सगरो आवाज करीलाहमरा मुंहवा में लागल बाटे जाब भाई जीरउरे बुढिया के गलवा में क्रीम लागेलाहमरी नइकी के जरि गइलें भाग भाई जीरउरे लरिका त पढ़ेला बिलाइत जाइ केहमरे लरिका के जुरे ना किताब भाई जीहमरे लरिका के रोटिया पर नून नइखेंरउरा चापीं रोज मुरगा-कबाब भाई जीरउरे अंगुरी पर पुलिस आउर थाना नाचे लाहमरे मुअले के होखे न हिसाब भाई जी। प्रस्तुतकर्ता भोजवानी पर 3:19 AM
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 3:17 AM
Thursday, January 24, 2008
एक अनोखा प्रयास: आपकी प्राथमिकी पुलिस नहीदर्ज कर रही है, आप पुलिसिया कहर के शिकार हैं, फिक्र मत कीजिए किरण वेदी आपके साथ हैं।
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 8:14 AM
डर
अखिल गोयल ने वर्त्तमान हालत को ''भडास'' पर पूरे फट पड़ने के अंदाज़ में डाला है,आप भी निकालिए अपनी भडास पता में देता हुं:www.bhadas.blogspot.comआज भी, आज़ादी के साठ साल बाद भी हम यानी के एक आम नागरिक डर के जीने को मजबूर है। क्या है यह डर?डर है -नेताओं कि दादागिरी काइस प्रदेश में नेताओं का ही बोलबाला है इन नेताओं पर कोई भी कानून लागू नही होता है। सड़क के बीच में अपनी गाड़ी खडी कर के हथियारों को हाथ में लेकर आम नागरिकों पर रॉब जमाना, किसी भी पुलिस वाले को चांटा मारना, कुछ भी कर सकते हैं ये । जो कुछ भी करते हैं अच्छा नही kar सकते। सत्ता में आते ही इनके चेहरे बदल जाते हैं। पुलिस व प्रसाशन सिर्फ नेताओं कि ही भाषा समझता है।क्या यही हमने पढाई करी है।डर है- पुलिस काइस प्रदेश में शायद पुलिस शरीफ और पढेलिखे नागरिको के लिए ही है। ये पुलिस वाले किसी को भी कही भी पकड़ कर झूठा केस बनाकर बंद कर सकते हैं। अफीम, चरस, गंझा, रिवोल्वर इत्यादी रखकर और झूठा केस बनाकर बंद कर देंगे। और एक काम वाला इंसान जो इस देश को तरक्की के रस्ते पर ले जाना चाहता था वो अब कोर्ट कचहरी के चक्करों में पड़कर अपने जीवन को कैसे इन पुलिस वालों (देह्शात्गर्द) से बचे इसी में उलझ कर रह जाता है। प्रदेश के थानों का बड़ा ही बुरा हाल है। बिना रिश्वत के कोई भी कार्य संभव नही है। १०० में से ९५ केसों में ले दे कर निपटारा करना मजबूरी हो जाता है। हर थाने का एक कार्य-खास होता है जो इस कार्य को करता है।क्या यही है मेरा भारत महान ?डर है - प्रशाशन काये प्रशाशन के अधिकारी, बाबु, कर्मचारी इत्यादी न जाने अपने आप को क्या समझते हैं। कभी भी अपनी ड्यूटी पर समय पे आना इन्हों ने सीखा ही नही है। कोई भी कार्य ये समय सीमा के भीतर नही करते। सबसे बड़ी बात ये है कि इस प्रदेश में किसीभी अधिकारी कि कोई जिम्मेदारी नही है। आज तक कोई भी काम समय सीमा के भीतर इन्होने नही किया। और आज तक किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को उसकी सेवाओं से बेदखल नही किया गया। कितनी गर्व कि बात है के पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी पर लगकर ये सब लोग सिर्फ पैसे कमाने और सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं किसी को भी इस देश का ख्याल ही नही है। रोज़ कंही न कही हर ऑफिस में अधिकारी या कर्मचारी अपनी पोस्ट का डर दिखाकर आम नागरिक को डरा कर अपना उल्लू सीधा करने में लगें हैं।क्या यही है मेरा आज़ाद भारत देश । क्या हमने इसी रिश्वतखोरी, दादागिरी, गुंडागर्दी, नेतागिरी, इत्यादी के लिए आज़ादी पाई है। क्या एक आम नागरिक इस डर के साये से आजाद हो पायेगा। क्या हम इस प्रदेश व देश में कभी अच्छा व स्वस्थ जीवन जी सकेंगे या फिर इस डर के साये में ही घुटकर मर जायेंगे ।बचपन से जवानी तक सिर्फ डरपहले स्कूल में मास्टर का डरजवानी में नौकरी का डरनौकरी नही मिली ये अच्छा हुआलेकिन अब बिजनेस का डरबिजनेस करने लगे तो सरकारी अधिकारियों का डरवाहन लिया तो सड़क पर पुलिस व नेताओं का डरबच्चे हो गए तो अपहरण का डरक्या ये सारे डर हमारे हिस्से मैं ही आएंगे या हम भी इस देश के लिया कुछ
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:52 AM
पत्रकार होने की मिली सज़ा :क्या हो गया है देश को?
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:44 AM
शीलेश की ज़िंदगी के लिए हम सब एकजुट हैं
लखनऊ के शीलेश के बारे में जो खबर भड़ास पर आई है, दरअसल वो नई नहीं है। जिन हालात में हम हिंदी पत्रकार जी रहे हैं, उनमें तनिक भी रिस्क लेने वाले की हालत यही होती है। डा. मांधाता सिंह ने शीलेश के बारे में जो खबर दी है, उसे पढ़कर पहले पहल तो सदमा लगा लेकिन बाद में एहसास हुआ कि क्या हम हिंदी मीडिया वाले इतने मर चुके हैं कि किसी हरामजादे, कुत्ते, सूअर टाइप के अफसर से निपटने में पूरी तरह अक्षम हो गए हैं। इन भ्रष्ट अफसरों के बारे में कौन नहीं जानता, पहले पहल तो ये चाहते हैं कि पत्रकार ही भ्रष्ट हो जाए, बाद में जब मालूम होता है कि पत्रकार भ्रष्ट नहीं होना चाहता तो उसे वह दरकिनार करना शुरू करते हैं, जब पत्रकार उसके खिलाफ कुछ तथ्यपरक लिखता है तो उसे वह भुगत लेने की धमकी देता है और कई बार कर भी दिखाता है। लगता है, इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है, पर सच्चाई जानने की हम प्रतीक्षा करेंगे। पत्रकारिता के सिद्धांतों में एक यह भी है कि दोनों पक्षों की सुनी जाय। लखनऊ और कानपुर के मित्रों से अनुरोध है कि अगर वो शीलेश का मोबाइल नंबर मुझे उपलब्ध करा दें, तो महती कृपा होगी। शीलेश के मामले में अगर डा. मांधाता सिंह की सूचना पर भरोसा करें तो शीलेश उड्डयन विभाग के किसी अफसर से त्रस्त होकर आत्महत्या करना चाहते हैं। पहले पहल तो हम शीलेश से अनुरोध करेंगे कि वो न्याय के लिए अकेले जंग लड़ने की बजाय अपने पत्रकार दोस्तों-साथियों को इकट्ठा करें। भड़ास उनके संग है। दिल्ली आएं और हम सब मिलकर कुछ कर गुजरा जाए। दोस्तों-साथियों-शुभचिंतकों को एकजुट किया जाये। कई तरीके हैं न्याय पाने के। अगर न्याय नहीं मिल रहा तो पहले खुद क्यों मरे, उसे निपटा दिया जाये, परेशान किया जाये, खबरदार किया जाये, जिससे दिक्कत है। बाद में जो होगा देखा जायेगा। भड़ास में ही एक साथी ने डर नामक एक पोस्ट में इस लोकतंत्र की जो हालत बयां की है, उसे पढ़कर मैं सचमुच सिहर गया। मैंने वहां कमेट भी लिखा। कई बार ब्लागिंग करते हुए लगता है कि दरअसल अकेले-अकेले जीने से हम समझदार और ईमानदार और संवेदनशील लोग जो कुछ खो रहे हैं, शायद वे सब एक मंच पर आकर हासिल कर सकने की सोच सकते हैं। मेरा हिंदी मीडिया के सभी पत्रकार मित्रों के अनुरोध है कि वे इस मामले पर संजीदगी दिखाएं। खासकर लखनऊ वाले पत्रकार साथियों से यह कहना चाहूंगा कि वे शीलेश को लेकर दिल्ली आ सकें तो हम यहां उनके साथ एक नई रणनीति बनाकर न्याय पाने की जंग छेड़ेंगे। भड़ास इस मुहिम में साथ है। बस, देर केवल इस बात की है कि जब तक इस लोकतंत्र के पायों को हिलाया न जाये, न्याय नहीं मिल सकता। भड़ास के लिए शीलेश की ज़िंदगी एक चुनौती है। हमें इस भाई और साथी को बचाना होगा। लखनऊ कानपुर के अपने सभी साथियों दोस्तों से अनुरोध करूंगा कि वे इस मामले की अद्यतन रिपोर्ट भड़ास में प्रेषित करें। आगे की समुचित कार्रवाई जल्द की जायेगी। जय भड़ासजय शीलेशयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:37 AM
Tuesday, January 22, 2008
विवेक विकलांग सह जन उत्थान संस्थान ने विकलांगों को सामग्री उपलब्ध करवाया
विवेक विकलांग सह जन उत्थान संस्थान के सहयोग से तेघरा प्रखंड कार्यालय परिसर में विकलांगों के बीच तीन पहिया ,वील चेयर ,४० बैसाखी सहित कई सामानों का वितरण किया गया। लगभग ५२ तीन पहिया ,१५ वील चेयर ,४० बैसाखी,२० एल्बो स्टिक १५ भ्रमण छड़ी, और बारह एयर फोन बांटा गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष मनोज कुमार के द्वारा की गयी। मौक़े पर उपस्थित संस्था के सचिव डाक्टर नागेन्द्र पोद्दार कोषाध्यक्ष डाक्टर सरोज झा,विजय कुमार सिंह, विकास रंजन, तथा अन्यों ने वितरण में सहयोगी भूमिका निभाई। इस अवसर पर जिला पार्षद रौशन देवी,मृत्युंजय गौतम,लालन कुमार,मधुराभाशिनी देवी, शालिनी देवी,डाक्टर दीपक सिंह,डाक्टर जे डी एस पांडा, डाक्टर डी आर मोहन्टी सहित तेघरा एस डी ओ गौरीकांत तिवारी ,बी डी ओ कौशलेन्द्र कुमार इत्यादी कई गणमान्य लोग मौजूद थे। ..................राजीव नयन (ब्लोग-लेखक)
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 3:04 AM
एक विद्यालय ऐसा पास में पैसा हालत श्मसान जैसा
भगवानपुर प्रखंड के लखनपुर पंचायत अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय चुरामनाचक के शिक्षा समिति अध्यक्ष श्री निर्वाण प्रसाद यादव ने बताया कि यह विद्यालय वर्षों से उपेक्षा के दंश को झेलने को विवश है। विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वित होने के वावजूद भी इस विद्यालय को एक अदद भवन भी मयस्सर नही हो पाया है। अभी भी छात्र छात्रों को भवन विहीन परिसर में पढ़ने की मजबूरी है। १९९६ में एक कमरा का निर्माण ग्रामीणों द्वारा चन्दा कर के किया गया था,जो कब गिर जे कहना मुश्किल है.इतना ही नहीं अन्य समस्याओं के मकड़जाल में जकडे हुए इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक बलाकिशुं महतो का जबाब भी निराला है। वे बताते हैं कि विद्यालय निर्माण हेतु प्राप्त राशी के उपयोग हेतु उनका बेटा प्रयत्नशील है और उच्च अधिकारिओं पर निर्भरता के कारण योजना अधर में अटका पड़ा है। श्री यादव ने जिलाधिकारी, शिक्षा पदाधिकारी बेगुसराय और राज्य स्तरीय संबंधित अधिकारिओं से गुजारिश की है कि वे शिक्षा संस्थान की बदहाली को अविलम्ब दूर करें। ........................राजीव नयन (ब्लोग-लेखक)
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 2:23 AM
हादसा का गवाह बन कर रह गया है भगवानपुर से संजात जाने वाली मुख्य पथ
कुशाशन की असहनीय पीडा को झेलकर बिहार के निवासिओं को ''सुशासन'' के दौर ने थोडी राहत तो जरूर दी है,किन्तु आम-अवाम अभी भी मूलभूत समस्याओं के आगोश में जकडा उद्धारक की तलाश में स्वप्निल ख्वाब देख रहा है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं, उत्तर भारत के उत्तर बिहार के उत्तर पूर्व जिला बेगुसराय की जहाँ की एक बड़ी आबादी आज भी मौलिक संसाधनों के लिय तरस रही है लेकिन कथित सुशासन की सरकार उनकी समस्याओं के प्रति आज भी सम्वेदानाशुन्य बनी है,फलतः लोगों का आक्रोश भी झेलना पड़े तो कोई नई बात थोडे ही होगी। जिला मुख्यालय से लगभग ३० किलोमीटर भगवानपुर प्रखंड आज भी अनगिनत समस्याओं के दौर से गुज़रने को विवश है,बदले में आश्वासन की झूठी कहानी गढ़ने वाले उन तथाकथित नेताओं और सरकारी महकमाओं के कान पर जू तक नही रेंगती है। स्वास्थ्य की समस्या हो या बिजली ,करोरों रूपए की लागत से बनने वाला नलकूप योजना हो भगवानपुर विकास के हर पायदान पर पीछे खडा है।इतना ही नही अन्य सवाल भी मुँह बाय खडा है जिसका उत्तर तो फिलहाल दिख नहीं रहा है। भगवानपुर को संजात से जोड़ने वाली मुख्य सड़क पर अगर नीतिश जी को यात्रा करने का मौका मिल जाये तो उन्हें ''सुशासन'' की परिभाषा मिल जायगी। वर्षों से उपेक्षित पडी इस सड़क पर जब केन्द्र सरकार मेहरबान हुई तो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योज़ना के अंतर्गत इसकी स्वीकृति मिल गयी लेकिन प्रशासनिक सम्वेदंशुन्यता ने इरादों पर पानी फेर दिया। संवेदक अवधेश सिंह उर्फ़ लोहा सिंह की हत्या ने इस योज़ना पर ग्रहण लगाने का काम किया लेकिन अब तक कोई विशेष पहल नहीं दिख रही है। समस्या जस का तस बना हुआ है, कई महत्वपूर्ण नेताओं का गृह क्षेत्र तक जाने वाली यह सड़क कब अपना अस्तित्व वापस ला पाती है यह तो भविष्य के गर्भ में है,लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि पूर्व मंत्री सह पूर्व सांसद एवं वर्त्तमान विधायक रामदेव राय ,वर्तमान प्रखंड प्रमुख ओरशील पासवान ,पूर्व प्रमुख कृष्ण कुमार राय ,जिला जनता दल(U) के महासचिव गुंजन कुमार और न जाने कितने महत्वपूर्ण लोगों को मुख्यालय से जोड़ने वाली यह सड़क कब अपना अस्तित्व वापस ला पायेगी? ............चंदन प्रसाद शर्मा (ब्लोग-लेखक)
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 1:40 AM
Sunday, January 20, 2008
नगर परिषद द्वारा कम्बल वितरण कार्यक्रम प्रारंभ
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:25 AM
गायत्री महायज्ञ प्रारंभ कलश यात्रा ने अनुपम छटा बिखेरी
स्थानीय आई टी आई मैदान में आज २० जनवरी से गायत्री महायज्ञ प्रारंभ हो गया। सुबह के ९ बजे एक भव्य कलश यात्रा निकाला गया जो शहर के विभिन्न भागों से गुज़रते हुए यज्ञ स्थल पर यज्ञ का रूप धारण कर लिया। अध्यात्मिक माहौल में प्रारंभ इस यज्ञ से आस-पास के क्षेत्रों के लोगों में धार्मिक माहौल बना है,महिलाएं और गायत्री परिवार से जुडे आस्थावानों के आवाजाही ने धार्मिक वातावरण निर्मित कर दिया है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक यज्ञ २३ जनवरी तक चलेगा जिसमें अनेक वक्ता भाग लेंगे।
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:01 AM 0 टिप्पणियाँ
Thursday, January 17, 2008
बेगुसराय एस पी के मनोरंजक प्रयास ने पुलिस बल में उर्जा का किया संचार
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 3:02 AM
वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह का लम्बी बीमारी के बाद निधन
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 12:45 AM
Tuesday, January 15, 2008
बेगुसराय एस पी अमित लोधा के द्वारा नवादा के कार्यकाल में स्थापित ''sambhav'' संस्था पर आउटलुक के फैजान अहमद की रिपोर्ट
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 10:25 AM
ब्लोग विधा और २००७ की यात्रा पर संजय तिवारी की प्रतिक्रिया
साल 2007 हिन्दी ब्लागिंग के लिहाज से बहुत महत्व का था फिर भी ऐसा कुछ नहीं हुआ है जिसे उपलब्धि मानकर समीक्षा की जाए. कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं जिनका आगामी सालों में हिन्दी की इस नयी विधा पर बहुत अच्छा असर पड़ेगा. संवाद तो हुआ ही विवाद भी खूब हुए. ब्लागरों की सक्रियता देखिए कि किसी पोस्ट या ब्लाग पर कुछ लिखा गया तो उस पर इस तरह से प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी मानों देश में दूसरा कोई मुद्दा है ही नहीं. साल की शुरूआत में कुल जमा 100-125 हिन्दी ब्लागरों का समूह साल के अंत तक हजार का आंकड़ा पार गया. यानी 10 गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई. इसी अनुपात में ब्लागों के पाठक भी बढ़े हैं. एक-दूसरे के ब्लाग पढ़कर वाहवाही और निंदा का दौर पीछे छूट गया है. अब कम ही सही मुद्दे की बात पर बहस होती है. कई सारे लिक्खाड़ पत्रकार नियमित रूप से ब्लाग लिखने लगे हैं. लेकिन सबसे सुखद पहलू है बड़ी संख्या में पत्रकारिता के नवागंतुक और पढ़ाई करनेवाले युवकों द्वारा ब्लाग लिखना. आज जितने लोग नियमित ब्लाग लिख रहे हैं उनमें अधिकांश लिखने-पढ़ने के पेशे से जुड़े हुए हैं. उन्होंने ब्लाग को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना लिया है और वे सफल हैं क्योंकि आखिरकार बेबाक राय की अहमियत तो होती है. हिन्दी ब्लागिंग की कई सारी खासियतें हैं जो बाकी हिन्दी समाज से इसे अलग करती है. यहां एक अघोषित सह-अस्तित्व है. हो सकता है बौद्धिक लोगों की भीड़ बढ़ने से इसमें थोड़ी कमी आये लेकिन शुरूआती दौर के ब्लागरों की आलोचना करें कि वे परिवारवाद की शैली में ब्लाग चला रहे थे तो यह उनकी खूबी भी थी. मसलन जिस तकनीकि के बारे में बहुत सारे डेवलपर भी नहीं जानते हिन्दी ब्लागर उसका धड़ल्ले से उपयोग करते हैं. देखने में यह बात भले ही छोटी लगती हो लेकिन है बहुत महत्वपूर्ण. क्योंकि इंटरनेट पर सक्रियता के लिए आखिरकार आपको तकनीकिरूप से समृद्ध होना ही पड़ता है. यह शुरूआती ब्लागरों का बड़प्पन है कि उन्होंने हिन्दी प्रेम के वशीभूत नवागन्तुकों को वह सब जानकारी उपलब्ध करवाई जिसके बारे में अच्छे-खासे वेब डिजाईनर और डेवलपर भी नहीं जानते. यहां सब कुछ मुफ्त है और आपके लिए सहज उपलब्ध है. इसका परिणाम यह हुआ है कि आमतौर पर तकनीकि पृष्ठभूमि से न जुड़े होने के बावजूद हिन्दी ब्लागरों को तकनीकि के कारण कभी मन मारकर नहीं बैठना पड़ा. कारंवा निरंतर बढ़ रहा है, और यह सब उन शुरूआती ब्लागरों का बड़प्पन है जिन्होंने कहीं से व्यावसायिक मानसिकता नहीं अपनाई. इसी का परिणाम है कि ब्लाग की दुनिया में व्यावसायिक मानसिकता को कहीं कोई जगह नहीं है. इसको और सरलता से समझना हो तो देख सकते हैं कि दो एग्रीगेटर गैर व्यावसायिक मानसिकता से शुरू किये गये और दो व्यावसायिक दृष्टिकोण से. एग्रीगेटर ही वह माध्यम होता है जहां जाने के बाद आप हिन्दी के अधिकांश चिट्ठों तक आसानी से पहुंच सकते हैं. वनइंडिया और ब्लाग अड्डा दो व्यावसायिक एग्रीगेटर आये और उनको ब्लागरों ने कोई महत्व नहीं दिया. लेकिन चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी नाम के एग्रीगेटर साल में मध्य में ब्लागरों के बीच आते हैं और देखते ही देखते हिन्दी ब्लाग्स के सबसे सशक्त माध्यम बन जाते हैं. आज अधिकांश हिन्दी चिट्ठे इन दो एग्रीगेटरों पर ही रजिस्टर्ड हैं. पहले से चले आ रहे दो एग्रीगेटर नारद और हिन्दी ब्लाग्स भी एग्रीगेटर के रूप में यथावत सक्रिय हैं. यह गैर-व्यावसायिक शुरूआत का नैतिक दबाव ही है कि हिन्दी ब्लागिंग में एग्रीगेटर किसी प्रकार का कामर्शियल स्वरूप नहीं अख्तियार कर पा रहे हैं. हिन्दी भाषा के सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को देखते हुए सेवा का यह तरीका निसंदेह स्वागतयोग्य है. हमें उन गिने-चुने लोगों का धन्यवाद करना ही चाहिए जिन्होने हिन्दी ब्लागिंग को व्यवसाय के नजरिए से नहीं देखा. इस साल कई विवाद हुए. लेकिन हर विवाद से कुछ न कुछ सार्थक ही निकलकर आया जो आखिरकार हिन्दी ब्लागरी को मदद कर रहा है. मसलन साल की शुरूआत में कैफे हिन्दी चलानेवाले मैथिली गुप्त ने कुछ ब्लागरों के लिखे को अपने यहां प्रकाशित किया और दावा किया कि ऐसा करने से पहले उन्होंने ब्लागरों से अनुमति ले ली थी. लेकिन विवाद हो गया. इस विवाद का परिणाम यह हुआ कि मैथिली गुप्त ने ब्लागवाणी नाम से अपना खुद का एग्रीगेटर शुरू कर दिया. इसी तरह विपुल जैन और आलोक कुमार ने भी मिलकर चिट्ठाजगत नाम से एक एग्रीगेटर शुरू किया. सालभर हिन्दी ब्लागरों ने कभी जाति व्यवस्था पर बहस की तो कभी रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित राष्ट्रगान की उस पंक्ति पर की भारत का भाग्यविधाता कौन है? ऐसी अनगिनत बहसों से हिन्दी ब्लागर आनेवाले लोगों के लिए एक अघोषित गाईडलाईन बनाते जा रहे हैं जिसका परिणाम तो होगा ही. आप कह सकते हैं कि एक अरब लोगों के देश में तीन-पांच हजार लोगों के समूह की सक्रियता पर इतनी बढ़-चढ़कर बात करना क्या ज्यादती नहीं है? हां ज्यादती होती अगर यह समूह इंटरनेट पर ब्लागरों का न होता. हम ब्लाग्स पर इतनी बात कर रहे हैं इसीमें इसकी संभावनाओं का सूत्र छिपा हुआ है. यह वो पगडंडी है जो जल्दी ही सुपर एक्सप्रेसवे में बदलने जा रही है. ब्लागों के कारण हिन्दी की मानसिकता में बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है, थोड़े ही दिनों में इसके उदाहरण दिखने लगेंगे. आज तक वैकल्पिक मीडिया के नाम पर जो बहस होती रही है, ब्लाग्स के रूप में उस वैकल्पिक मीडिया का आगाज हो चुका है. यह ब्लाग समीक्षा समकाल, वर्षः1, अंकः19. विदा 2007 अंक में प्रकाशित हुई है. Posted by संजय तिवारी 11:00 AM 9 comments Links to this post
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 9:55 AM
ब्लोग की टी आर पी कैसे बढाए
आज निधि जी के चिठ्ठे चिन्तन पर टी आर पी बढ़ाने संबधित लेख पढ़ा। चुँकि निधि जी चिठ्ठाकारी के क्षेत्र में नयी हैं ( अब हम कौन हड़्ड़पा और मोहन जोदड़ो के जमाने के है) परन्तु उनके इस लेख ने कई पुराने चिठ्ठाकरों के लेखन की गुणवत्ता को चुनौती दे दी है। अब आते हैं मूल विषय पर कि अपने ब्लॉग की टी आर पी कैसे बढ़ायें?तो पेश है जनाब कुछ नुस्खे हर एक चिठ्ठे पर जाकर टिप्पणी दें कुछ समीर जी और सागर चन्द की तरह । टिप्पणी कैसे दें यहाँ सीख सकते हैं। वैसे खुछ खास नहीं करना है समीर जी के लेख की टिप्पणीयाँ सेव कर लें बाद में बस copy, pest ही करते रहें। किसी के चिठ्ठेपर टिप्पणी करें तब अपने चिठ्ठे का लिन्क देना ना भूलें। परिचर्चा के ज्वलन्त मुद्दे वाले थ्रेड में जाकर किसी विषय पर सारी टिप्पणियों के विपरित टिप्पणी दें, वहाँ भी अपने हस्ताक्षर के साथ अपने चिठ्ठे का लिन्क अवश्य दें। व्यंगात्मक टिप्पणी दो लोग बदला लेने आपके चिठ्ठे पर जरूर आयेंगे। आमिर खान, नरेन्द्र मोदी और नर्मदा जैसे विषयों पर लेख लिखो, जिसमे नरेन्द्र मोदी, भाजपा, नर्मदा का फ़ेवर हो और महेश भट्ट, शबाना आज़मी, आमिर खान, तिस्ता सेतलवाड आदि का विरोध । अपने धर्म के बारे में अनर्गल लिखो। टाईटल एक दम कुछ हटके रखो जैसे अलविदा चिठ्ठा जगत , अपने चिठ्ठे का टी आर पी कैसे बढ़ायें? और अपना ब्लाग बेचो, भाई एवं आप सब बुद्धिजीवियों से ये उम्मीद ना थी! आदि........पाठकों को कैसे पकायें? जैसा टाईटल कभी ना रखें। समय समय पर लोगों को अपना स्टार्ट काऊंटर का अंक बताते रहो कि अब मेरे १००० हिट पूरे हुए अब मेरे १००१ हिट पूरे हुए। कुछ इस तरह। कुछ पहेली शहेली भी कभी कभार अपने चिठ्ठे पर लिख दो, जिसका हल आपको भी ना आता हो। एन आर आई पर उनके देश प्रेम के प्रति संदेह व्यक्त करते हुए लेख लिखो। भले ही वह झूठ ही क्यों ना हो। कुछ बेतुकी रोमान्टिक कविता लिखो ( आईडिया सौजन्य: ई-स्वामी जी) समय समय पर सन्यास लेने की धमकी देते रहो, वीरू प्राजी की तरह टंकी पर चढ़ कर ! और हाँ सागर की तरह भी,लोग बाग मौसी जी की तरह डर कर आपको मनाने जरूर आयेंगे । यह सब से कारगार नुस्खा है अपने चिठ्ठे का टी आर पी बढ़ाने का। मुफ़्त के जुगाड़ ढूंढ कर अपने चिठ्ठे पर उनका लिन्क दो। कुछ नई खोज और नयी वैज्ञानिक क्रान्ति के बारे में लिखो। अपने चिठ्ठे पर लेख लिख कर पुराने चिठ्ठा लेखकों से बेवजह पंगा लेते रहो । अंत में यहाँ और बहुत सारे आईडिया है सारे क्या मैं ही बताऊंगा क्या आप कुछ नही करोगे । सौजन्य मेरा पन्ना प्रस्तुतकर्ता Sagar Chand Nahar पर 7/08/2006 03:14:00 अपराह्न
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 9:34 AM
पुलिस को मिली फिर एक सफलता
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 9:30 AM
शुभकामनाएं जो दिल से निकलती हैं............
शिव जी सिंह (पूर्व जिला पार्षद ) साहेब पुर कमाल यह जानकर प्रसन्नता हुई कि बेगुसराय जैसे जिले में ब्लोग लेखन का प्रारंभ हो गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पर्याय बन कर ब्लोग लेखन विश्व स्तर पर नाम कमा रहा है। मैं मकर संक्रंती के पावन पुण्य अवसर पर बेगुसराय के बाहर विदेशों में रहने वाले लोगों को हार्दिक बधाई देता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि बिहार के विकास में विदेशी भारतीय महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उनके पास उन्नत सोच का जादू है, नवीनतम तकनीक से लैस हो कर वे विश्व स्तर पर भारत का नाम रौशन कर रहे हैं। बेगुसराय के युवाओं को ये पैगाम देना चाहता हूँ कि वे मेहनती बनें और जिला को विश्व फलक पर ले जाने के ल;इये अथक प्रयास कर सपनों को साकार करें। आज कई ब्लोग लेखक सिर्फ अपनी अभिव्यक्ति को ही सब कुछ समझ कर कुछ भी लिखने को स्वतंत्र हैं, किन्तु ''अक्षर्जीवी'' आज बेगुसराय का नाम ऊँचा कर रहा है।मैं पत्रकारिता के इस नवीन शैली का स्वागत करते हुए इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:29 AM
लोक जन शक्ति पार्टी द्वारा बछवारा विधानसभा स्तरीय पार्टी संगठन की चुनावी समीक्षात्मक बैठक सम्पन्न
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 6:45 AM
Monday, January 14, 2008
शुभकामनाएं
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 11:31 PM
शुभकामनाएं
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 11:11 PM
शुभकामनाओं का अंतहीन सिलसिला
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 10:24 PM
Thursday, January 10, 2008
Wednesday, January 9, 2008
''अक्षरजीवी ब्लौग परिचय प्रयोगांक २००८'' के प्रकाशन हेतू ब्लोग रचनाकारों की सूची
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 5:52 AM
Friday, January 4, 2008
बस इतना ही काफी है।
दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।जायेगा जब यहां से कुछ भी न पास होगा॥कंधे पर धर ले जायें, परिवार वाले तेरे।यमदूत ले पकड कर डालेंगे घेरे घेरे॥पीटेंगे छाती अपनी, कुनबा उदास होगा।दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।चुन चुन के लकड़ियों मे रख दें तेरे बदन को।आकर झट उठा लें श्मसानी तेरे कफ़न को।देवेगा आग तुझमे बेटा जो खास होगा॥दो गज कफ़न का टुकडा तेरा लिबास होगा।मिट्टी मे मिले मिट्टी, बाकी ना कुछ भी होगा।सोने सी तेरी काया जल कर के खाक होगी।दुनिया को त्याग, तेरा मरघट में वास होगा।दो गज कफ़न का टुकडा तेरा लिबास होगा॥हरी का नाम लेके, भव सिन्धु पार होते।माया के मोह में फ़ंसकर, जीवन का मोल खोते॥प्रभु का नाम जप ले, बेडा जो पार होगा।जायेगा जब यहां से कुछ भी ना पास होगा॥धन्यवादअंकित माथुर...
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:46 AM
यशवंत सिंह की आन्तरिक प्रतिक्रिया
आइए उसको विदाई दें साथियों !!! वो गया। दिल को छलनी करके। बस, इतना कहकर कि शायद नशे में तुम जैसा होता हूं, नशे के बाद तुम मुझे कुत्ता समझते हो। जाते हैं। बहुत लोग। पर इतना साफ कहकर कौन जाता है। उसकी साफगोई। नशे वाली। लुभाती है। जब वो सुबह और शाम को मिलता है तो बेहद विनम्रता से। सारे नार्म और फार्म निभाते हुए। जब पी लेता है तो हर पैग के बाद मनुष्य होने लगता है। पहले पैग पर उसके चेहरे पर रौनक आने सी लगती है। दूसरे पर वह बातों को बीच में ही काटकर अपनी बात शुरू कर देता है। तीसरे पर वो खुद की बात पूरे दावे और दम से कहने लगता है। तीसरे पर वह सुनाने लगता है, बचपन से जो भी गाना सुनता आया है। चौथे पर वह खड़ा हो जाता है, पूछते हुए कहते हुए किसे पीटना है, किसे प्यार करना है, किसके लिए जीना है, किसके लिए मरना है। पांचवें पर वह बड़बड़ाने लगता है....इ कउन लाइफ है यार, बिना दिल और दिमाग के। जहां दिमाग लगाओ वहां दिल नहीं, जहां दिल लगाओ वहां दिमाग नहीं। जहां दोनों हैं वहां भयंकर स्वार्थ है। कैसे जिया जाय। और अगर छठवां पैग पी लिया तो फिर कयामत है। सामने वाले की। जिसने उसे बिठाया और पिलाया। वह बतायेगा कि दरअसल वो जो सामने वाला है सबसे बड़ा चूतिया है और सबसे समझदार होते हुए भी अपनी समझदारी का उत्कृष्ट इस्तेमाल नहीं कर रहा है। वो मेरा मित्र गया। सब छोड़कर। अपने देस। कह के तो गया है कि फिर नहीं लौटेगा। लेकिन जब उसे घर की दिक्कतें पीटेंगी तो वह फिर तड़पड़ायेगा और आयेगा। यहीं मरने। तेरे मेरे जैसे कुत्तों के बीच।क्या फरक पड़ता है कि वो जो गया है उसका नाम क्या है, किस कंपनी में काम करता था, क्या पद था, उम्र क्या था,दिमागी हालत क्या थी, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या थी। इन सब सवालों का यही जवाब है कि वो मेरे तेरे जैसे कुत्तों, चूतियों से तो अच्छा ही था। आइया उसका वेलकम करें। और उसके आने पर फिर जश्न दें, बर्बादी की दुनिया में लौटने के लिए।आइए उसको विदाई दें, अपनी मनुष्यता को अब तक जी पाने के लिए। कल पता नहीं, वो मनुष्य बनने आए या तेरे मेरे जैसा कुत्ता या भेड़िया.....। चीयर्स....।जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह 1 comments: Gulshan khatter said... माफ़ करना यशवन्त भाइलगता हे इस जालिम दुनिया ने आप को बहुत सताया हे जो इतनी तिखी भडास पडने को मिल रहीहे
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:35 AM