Thursday, January 31, 2008

बेगुसराय की पहली अभिनेत्री नीतू सिंह का एक परिचय

बेगुसराय की भूमि सचमुच प्रतिभा सम्पन्न है। जीवन की विभिन्न विधाओं में यहाँ की प्रतिभा ने अनेक अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। उन्ही में से एक प्रतिभा से हम आपको मुखातिब कराने आए हैं जिन्होंने छोटी सी उम्र में रूपहले परदे पर अपनी अभिनय क्षमता से न सिर्फ बेगुसराय बल्कि बिहार को भी गौरवान्वित किया है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं बेगुसराय की ही नही बल्कि बिहार की संभवतः पहली अभिनेत्री जिन्होंने मुम्बई की फिल्मी दुनिया में अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। वह नायिका हैं ''नीतू सिंह'' जिनकी अनगिनत फिल्मों के बाद अंगिका भाषा पर बनी ''खगरिया वाली भौजी'' आंचलिक क्षेत्रों में धूम मचा रही है।
उत्तर भारत के उत्तरी बिहार के उत्तर पूर्व जिला बेगुसराय के पोखरिया मोहल्ले में जन्मी और बेगुसराय में शिक्षा प्राप्त करने के क्रम में ही नीतू सिंह का लगाव इप्टा संस्था से हो गया.विभिन्न छोटी-छोटी नाटकों में अपने भावपूर्ण अभिनय से लोगों का ह्रदय जीतने वाली नीतू सिंह ने हिमाचल प्रदेश स्थित ''नाट्य कला अकादमी'' से अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी आंखों में सपनों को संजोय मुम्बई की तरफ रूख किया। मुम्बई में संघर्षों के अनवरत दौर को झेलने के बाद किस्मत ने इनका साथ दिया और इन्हें अभिनेत्री के रुप में ''सखी'' फिल्म में काम कराने का मौका मिल। हालांकि इस फिल्म को अत्यधिक लोकप्रियता नही मिली लेकिन लोगों ने इनके अभिनय को सराहा और फिर इन्हें एक के बाद एक फिल्मों में काम कराने का मौका मिलता चला गया। इसी बीच मुख्य अभिनेत्री के रुप में इन्हें खगरिया वाली भौजी'' फिल्म में काम कराने का मौका मिला,जिसमें अपनी अभिनय क्षमता का भरपूर प्रदर्शन कर अपार ख्याति अर्जित की। न सिर्फ फिल्म बल्कि विभिन्न विज्ञापन फिल्मों और टीवी धारावाहिक में भी काम कराने का मौका मिला। वर्तमान में नीतू सिंह दूरदर्शन पर आने वाली धारावाहिक ''एअर होस्टेस'' में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
नीतू सिंह:संक्षिप्त परिचय
नाम: नीतू सिंह जन्म दिन:-९ मार्च
कद:-५'५''
जन्म-स्थान:-बेगुसराय
वर्तमान पता:-स्टेशन रोड,बेगुसराय
फिल्म-प्रवेश:-वर्ष २००५
पहली फिल्म:-सखी
पहली सफल फिल्म:-खगरिया वाली भौजी
पहली टीवी धारावाहिक:-आंखें
वर्त्तमान धारावाहिक:-एअर-होस्टेस
पहला एलबम:-वेबफाई (अल्ताफ राजा के साथ)
योग्यता:-स्नातक
भाषा प्रदर्शन:- भोजपुरी,अंगिका,मैथिली,छत्तीस गढ़
अब तक की फिल्में:-सखी,खगरिया वाली भौजी,सैयां सिपहिया,भाकला जो,दुलरुआ बाबु, झुलानिया ले द राजा जी
आने वाली फिल्में:-मन लागल सनम ससुरारी में,हर-हर गंगे
पसंदीदा पहनावा:-साड़ी
पसंदीदा भोजन:- चिकेन
पसंदीदा अभिनेता:-शाहरूख खान
पसंदीदा अभिनेत्री:-कजोल
पसंदीदा फिल्म:-ब्लैक
बेगुसराय के युवाओं के नाम एक हृदयस्पर्शी संदेश:-सबसे पहले शिक्षित बनें,आत्मविश्वास बढाने का प्रयास करें,अपनी शारीरिक हाव-भाव आकर्षक बनाए और माता-पिता के आशीर्वाद से अपने सपनों को साकार करें।
बेगुसराय के ब्लोग लेखक संजीत कुमार उर्फ़ अप्पू राज ने अभिनेत्री नीतू सिंह से जो बात-चीत की ,उसका संक्षिप्त अंश प्रस्तुत किया गया है .अपनी राय से हमे ज़रूर अवगत करावें। अगर आप नीतू सिंह को कोइ संदेश देना चाहते हैं तो इ मेल पर सम्पर्क करें।
email:-appu.verma94@gmail.com

Wednesday, January 30, 2008

माओवादी ने पर्चा चस्पा कर बेगुसराय को किया हलकान

३१ जनवरी की सुबह तिलकनगर बेगुसराय के निवासी तब दंग रह गए,जब उन्होने यह देखा कि गली के दीवारों पर मओवादिओं ने दहशत भरे पर्चे चस्पा कर दिए हैं। पर्चे में कमुनिस्ट पार्टी द्वारा गांधी मैदान में होने वाले रैली का प्रतिरोध करने के साथ-साथ सीताराम येचुरी को गद्दार व धोखेबाज़ बताया गया है। पर्चे में संक्षिप्त में यह भी दर्शाया गया है कि कम्यूनिस्ट पार्टी अपने उद्देश्य से भटक गयी है और क्रांति का एक मात्र रास्ता माओवाद ही है।
बेगुसराय में पर्चे चस्पा करने की यह पहली घटना नही है। इससे पूर्व भी माओवादी ने बैनर,पोस्टर और पर्चा के माध्यम से जिला में दहशत का माहौल कायम कर के रख दिया था। तिलारथ रेलवे पटरी को बम से उराकर अपनी सशक्त उपस्थिती दर्ज कर मओवादिओं ने अपनी विध्वंशक मंशा प्रकट कर दी थी। लेकिन प्रशासन अपेक्षित सफलता हासिल नही कर पाई। पुनः तिलकनगर से होते ही मवेशी अस्पताल तक दीवारों पर नारे लिखे पर्चे चस्पा कर मओवादिओं ने अपनी उपस्थिती दर्शाने का प्रयास किया है। अहले सुबह तक पर्चे चस्पा परे थे,लोगो की भीड़ कुतुहल्वश आकर्षित हो रही थी। प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कैमरे पर्चे को कैद कर रहे थे। पुलिश अब तक नही पहुँची थी और यह समाचार आप तक पहुंच गया ,यही है ब्लॉगर की ताकत और तकनीक का कमाल।
लेकिन जिला प्रशासन के साथ-साथ राज्य प्रशासन को गंभीर होती जा रही नक्सली व माओवादी समस्या के उन्मूलन के लिय ठोस प्रयास की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

Monday, January 28, 2008

नर्सरी टीचर्स प्रशिक्षण केन्द्र का उदघाटन समारोह सम्पन्न

कार्यक्रम की रूपरेखा बताते श्री चौधरी उधामिता विकास संस्थान बिहार के निर्देशन में आज बेगुसराय स्थित जुदिसिअल कोलोनी मुन्गेरीगंज में नर्सरी टीचर्स प्रशिक्षण केंद्र का विधिवत उदघाटन उद्योग विभाग के महाप्रबंधक श्री आई बी चौधरी के द्वारा किया गया। उन्होने अपने संबोधन में बताया कि बेगुसराय में प्रारंभ किये गए इस प्रशिक्षण की अवधि छः माह की होगी,जिसमें प्रशिक्षु लाभान्वित होकर आत्मनिर्भर बन पायेंगे। इस अवसर पर प्रशिक्षु महिलाओं की काफी भीड़ जुटी थी। कार्यक्रम के संबंध में विस्त्रीत जानकारी देते हुए कार्यक्रम के प्रभारी निखिल कुमार ने बताया कि बिहार के हर ज़िले में यह कार्यक्रम आयोजित की जा रही है,और लोग लाभान्वित भी हो रहे हैं। इस कार्यक्रम के अवसर पर उद्योग विकास पदाधिकारी श्री के पी शर्मा के साथ-साथ एनी गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन श्री राजेश कुमार ने किया। गौरतलब हो कि बेगुसराय जैसे ज़िले में इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को संचालित करवाने में श्री संजीत कुमार उर्फ़ अप्पू राज़ की भूमिका अहम रही.

Saturday, January 26, 2008

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

''अक्षर-जीवी'' ब्लोग राइटर्स असोसिएसन की तरफ से बेगुसराए समेत सभी जगहों के पाठकों को गणतंत्र दिवस के ५९ वीं वर्षगांठ पर हार्दिक शुभेश्नाएं।

ए हमार छब्बीस जनवरी

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के बीच कुछ प्रश्न कुलबुला रहे हैं जिसका जबाब वर्षों से तलाशने की कोशिश जारी है। लेकिन न तो जबाब मिल पाया है और न ही कोई नया प्रयास दीखता है वही विपन्नता,वही हाथों में कटोरे, पेट भरने की आस में सत्ता के झंडे लेकर हांफने वाला यह वर्ग कब हकीकत से रू-बरू हो पायगा ,कब जागेगा आत्मविश्वास, यह इस्तेमाल करने वाले हरामिओं को कब उसकी औकात बताय्गा । वैशाली और लिछ्छ्वी के गणतंत्र के धरोहर से सम्पन्न इसकी वर्त्तमान हाल पर आंसू बहाने की ज़रूरत नही बल्कि परिवर्तन के शंखनाद की ज़रूरत है। गणतंत्र दिवस पर टीवी पर पैरेड देखने के बाद ब्लोग में कुछ खास तलाशने बैठा तो संयोग से आप पाठकों के लिए एक सुन्दर उपहार मिल गया,सोचा परोस ही दूँ। ''भोजपुरिया'' नाम से एक ब्लोग्साईट अभी चर्चा में आया ही है,भोजपुरी भाषा की लोकप्रियता के कारण लोग इसे पढ़ भी रहे हैं ,उसी पर यह कविता थी ,एक नज़र ज़रूर डालिए:- ए हमार छब्बीस जनवरी आइ गइलू न, फिर अटकत-मटकत...ए हमार छब्बीस जनवरीअबहिन बाकी बा कुछ अउरी?त आवा तनी गोरख बाबू के सुर में इहो कुल सुनले जा कि तोहके चूमे-चाटे वाले, सलूट मारै वाले का-का करत हउवैं....रउरा सासना के बाटे ना जवाब भाई जीरउरा कुरसी से झरेला गुलाब भाई जीरउरा भोंभा लेके सगरो आवाज करीलाहमरा मुंहवा में लागल बाटे जाब भाई जीरउरे बुढिया के गलवा में क्रीम लागेलाहमरी नइकी के जरि गइलें भाग भाई जीरउरे लरिका त पढ़ेला बिलाइत जाइ केहमरे लरिका के जुरे ना किताब भाई जीहमरे लरिका के रोटिया पर नून नइखेंरउरा चापीं रोज मुरगा-कबाब भाई जीरउरे अंगुरी पर पुलिस आउर थाना नाचे लाहमरे मुअले के होखे न हिसाब भाई जी। प्रस्तुतकर्ता भोजवानी पर 3:19 AM

Thursday, January 24, 2008

एक अनोखा प्रयास: आपकी प्राथमिकी पुलिस नहीदर्ज कर रही है, आप पुलिसिया कहर के शिकार हैं, फिक्र मत कीजिए किरण वेदी आपके साथ हैं।

यह संस्था किरण बेदी ने प्रारंभ किया है। संस्था का मुख्य उद्देश्य उन को न्याय दिलाने की कोशिश करना है जिनकी आवाज़ पुलिस नही सुन रही है ,जिनकी प्राथमिकी दर्ज नही हो पा रही ,सामाजिक स्तर से थक चुके हैं।
अविलम्ब संस्था से सम्पर्क करें। पता है: www.saferindia.com

डर

अखिल गोयल ने वर्त्तमान हालत को ''भडास'' पर पूरे फट पड़ने के अंदाज़ में डाला है,आप भी निकालिए अपनी भडास पता में देता हुं:www.bhadas.blogspot.comआज भी, आज़ादी के साठ साल बाद भी हम यानी के एक आम नागरिक डर के जीने को मजबूर है। क्या है यह डर?डर है -नेताओं कि दादागिरी काइस प्रदेश में नेताओं का ही बोलबाला है इन नेताओं पर कोई भी कानून लागू नही होता है। सड़क के बीच में अपनी गाड़ी खडी कर के हथियारों को हाथ में लेकर आम नागरिकों पर रॉब जमाना, किसी भी पुलिस वाले को चांटा मारना, कुछ भी कर सकते हैं ये । जो कुछ भी करते हैं अच्छा नही kar सकते। सत्ता में आते ही इनके चेहरे बदल जाते हैं। पुलिस व प्रसाशन सिर्फ नेताओं कि ही भाषा समझता है।क्या यही हमने पढाई करी है।डर है- पुलिस काइस प्रदेश में शायद पुलिस शरीफ और पढेलिखे नागरिको के लिए ही है। ये पुलिस वाले किसी को भी कही भी पकड़ कर झूठा केस बनाकर बंद कर सकते हैं। अफीम, चरस, गंझा, रिवोल्वर इत्यादी रखकर और झूठा केस बनाकर बंद कर देंगे। और एक काम वाला इंसान जो इस देश को तरक्की के रस्ते पर ले जाना चाहता था वो अब कोर्ट कचहरी के चक्करों में पड़कर अपने जीवन को कैसे इन पुलिस वालों (देह्शात्गर्द) से बचे इसी में उलझ कर रह जाता है। प्रदेश के थानों का बड़ा ही बुरा हाल है। बिना रिश्वत के कोई भी कार्य संभव नही है। १०० में से ९५ केसों में ले दे कर निपटारा करना मजबूरी हो जाता है। हर थाने का एक कार्य-खास होता है जो इस कार्य को करता है।क्या यही है मेरा भारत महान ?डर है - प्रशाशन काये प्रशाशन के अधिकारी, बाबु, कर्मचारी इत्यादी न जाने अपने आप को क्या समझते हैं। कभी भी अपनी ड्यूटी पर समय पे आना इन्हों ने सीखा ही नही है। कोई भी कार्य ये समय सीमा के भीतर नही करते। सबसे बड़ी बात ये है कि इस प्रदेश में किसीभी अधिकारी कि कोई जिम्मेदारी नही है। आज तक कोई भी काम समय सीमा के भीतर इन्होने नही किया। और आज तक किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को उसकी सेवाओं से बेदखल नही किया गया। कितनी गर्व कि बात है के पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी पर लगकर ये सब लोग सिर्फ पैसे कमाने और सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं किसी को भी इस देश का ख्याल ही नही है। रोज़ कंही न कही हर ऑफिस में अधिकारी या कर्मचारी अपनी पोस्ट का डर दिखाकर आम नागरिक को डरा कर अपना उल्लू सीधा करने में लगें हैं।क्या यही है मेरा आज़ाद भारत देश । क्या हमने इसी रिश्वतखोरी, दादागिरी, गुंडागर्दी, नेतागिरी, इत्यादी के लिए आज़ादी पाई है। क्या एक आम नागरिक इस डर के साये से आजाद हो पायेगा। क्या हम इस प्रदेश व देश में कभी अच्छा व स्वस्थ जीवन जी सकेंगे या फिर इस डर के साये में ही घुटकर मर जायेंगे ।बचपन से जवानी तक सिर्फ डरपहले स्कूल में मास्टर का डरजवानी में नौकरी का डरनौकरी नही मिली ये अच्छा हुआलेकिन अब बिजनेस का डरबिजनेस करने लगे तो सरकारी अधिकारियों का डरवाहन लिया तो सड़क पर पुलिस व नेताओं का डरबच्चे हो गए तो अपहरण का डरक्या ये सारे डर हमारे हिस्से मैं ही आएंगे या हम भी इस देश के लिया कुछ

पत्रकार होने की मिली सज़ा :क्या हो गया है देश को?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक पत्रकार ने सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग के आला अफसरों से त्रस्त होकर राष्ट्रपति से आगामी 26 जनवरी, 2008 तक परिवार सहित इच्छामृत्यु की अनुमति माँगी है, ताकि गणतंत्र दिवस के पवित्र दिन वह सुकून के साथ सपरिवार अपनी जान दे सके। मनोरमा कंपाउंड, सिंधुनगर (लखनऊ) निवासी पत्रकार शीलेश त्रिपाठी ने महामहिम राष्ट्रपति को गत 28 दिसंबर को पत्र लिखकर बताया है कि उसने वर्ष 2003 में राज्य के नागरिक उड्डयन विभाग में कथित देशद्रोह और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ पत्रिका 'प्रेडीकेट मीडिया' में अभिलेखीय साक्ष्य सहित समाचार प्रकाशित किया था, जिसके बाद विभाग के आला अधिकारियों ने संगठित होकर अपने प्रभाव व धन-बल के बल पर शासन, प्रशासन एवं अन्य अधिकारियों से साँठगाँठ कर पत्रकार एवं उसके परिवार के लोगों का उत्पीड़न शुरू कर दिया। उल्लेखनीय है कि राजकीय उड्डयन विभाग का यह अधिकारी अब सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान है।त्रिपाठी ने अपने पत्र में लिखा है कि सरकार के उच्चाधिकारियों ने पुलिस एवं माफियाओं से भी उसे परेशान कराना शुरू किया और गलत तरीके से उसके ऊपर कानपुर जिले में मुकदमे दर्ज कराकर एकपक्षीय कार्रवाई कराते हुए मानवाधिकारों का हनन कर पुलिस के माध्यम से वह लोग प्रताड़ित करा रहे हैं। इन्हीं अधिकारियों के इशारे पर पिछले दिनों उसे पकड़वाकर जेल भिजवाया गया। अब इस पत्रकार का कहना है कि अब उसको सपरिवार जान से खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है।राष्ट्रपति को भेजे पत्र में त्रिपाठी ने लिखा है कि वह न्याय पाने की आशा में लखनऊ, कानपुर की जिला अदालतों एवं उच्च न्यायालय की इलाहाबाद एवं लखनऊ खंडपीठ में भी गया किन्तु उसे न्याय नहीं मिला। त्रिपाठी का कहना है कि जबसे उसने राज्य के नागरिक उड्डयन विभाग से संबंधित समाचार छापा एवं विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जाँच हेतु सीबीआई को प्रमाण सहित अभिलेख प्रेषित किए तभी से उसके एवं परिवार के लोगों का लगातार पुलिस, माफियाओं, शासन, प्रशासन के अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न कराया जा रहा है। शीलेश ने आशंका व्यक्त की है कि यह लोग किसी भी क्षण किसी घटना या दुर्घटना की आड़ लेकर उसे एवं उसके परिवार के लोगों की हत्या अवश्य करा देंगे।शीलेश ने पत्र में लिखा है कि वह एवं उसका परिवार तड़प-तड़पकर मरना नही चाहता। उसने न्यायहित में राष्ट्रपति से अपील की है कि वह दया करते हुए उसे एवं उसके परिवार के लोगों को ससम्मान सुकून से प्राण त्यागने हेतु इच्छामृत्यु की अनुमति प्रदान करने की कृपा करें। त्रिपाठी ने लिखा है कि वह एक देशभक्त तथा भारतीय लोकतांत्रिक गणराज्य के संविधान एवं न्यायपालिका में पूर्ण आस्था और श्रद्धा रखने वाला नागरिक एवं पत्रकार है। उसके परिवार के लोग आत्महत्या करने का विधिविरुद्ध आपराधिक कृत्य नहीं करना चाहते, इसलिए उसे एवं उसके परिवार के लोगों को 26 जनवरी तक दया करते हुए विधिसम्मत तरीके से इच्छामृत्यु की अनुमति दी जाए।शीलेश त्रिपाठी ने यह भी लिखा कि वह और उसके परिवार के लोग 26 जनवरी के पवित्र दिवस को सुकून के साथ सपरिवार प्राणोत्सर्ग को तैयार हैं।( लखनऊ से अरविन्द शुक्ला, गुरूवार, 17 जनवरी 2008. वेबदुनिया ने इस खबर को छापी है। )

शीलेश की ज़िंदगी के लिए हम सब एकजुट हैं

लखनऊ के शीलेश के बारे में जो खबर भड़ास पर आई है, दरअसल वो नई नहीं है। जिन हालात में हम हिंदी पत्रकार जी रहे हैं, उनमें तनिक भी रिस्क लेने वाले की हालत यही होती है। डा. मांधाता सिंह ने शीलेश के बारे में जो खबर दी है, उसे पढ़कर पहले पहल तो सदमा लगा लेकिन बाद में एहसास हुआ कि क्या हम हिंदी मीडिया वाले इतने मर चुके हैं कि किसी हरामजादे, कुत्ते, सूअर टाइप के अफसर से निपटने में पूरी तरह अक्षम हो गए हैं। इन भ्रष्ट अफसरों के बारे में कौन नहीं जानता, पहले पहल तो ये चाहते हैं कि पत्रकार ही भ्रष्ट हो जाए, बाद में जब मालूम होता है कि पत्रकार भ्रष्ट नहीं होना चाहता तो उसे वह दरकिनार करना शुरू करते हैं, जब पत्रकार उसके खिलाफ कुछ तथ्यपरक लिखता है तो उसे वह भुगत लेने की धमकी देता है और कई बार कर भी दिखाता है। लगता है, इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है, पर सच्चाई जानने की हम प्रतीक्षा करेंगे। पत्रकारिता के सिद्धांतों में एक यह भी है कि दोनों पक्षों की सुनी जाय। लखनऊ और कानपुर के मित्रों से अनुरोध है कि अगर वो शीलेश का मोबाइल नंबर मुझे उपलब्ध करा दें, तो महती कृपा होगी। शीलेश के मामले में अगर डा. मांधाता सिंह की सूचना पर भरोसा करें तो शीलेश उड्डयन विभाग के किसी अफसर से त्रस्त होकर आत्महत्या करना चाहते हैं। पहले पहल तो हम शीलेश से अनुरोध करेंगे कि वो न्याय के लिए अकेले जंग लड़ने की बजाय अपने पत्रकार दोस्तों-साथियों को इकट्ठा करें। भड़ास उनके संग है। दिल्ली आएं और हम सब मिलकर कुछ कर गुजरा जाए। दोस्तों-साथियों-शुभचिंतकों को एकजुट किया जाये। कई तरीके हैं न्याय पाने के। अगर न्याय नहीं मिल रहा तो पहले खुद क्यों मरे, उसे निपटा दिया जाये, परेशान किया जाये, खबरदार किया जाये, जिससे दिक्कत है। बाद में जो होगा देखा जायेगा। भड़ास में ही एक साथी ने डर नामक एक पोस्ट में इस लोकतंत्र की जो हालत बयां की है, उसे पढ़कर मैं सचमुच सिहर गया। मैंने वहां कमेट भी लिखा। कई बार ब्लागिंग करते हुए लगता है कि दरअसल अकेले-अकेले जीने से हम समझदार और ईमानदार और संवेदनशील लोग जो कुछ खो रहे हैं, शायद वे सब एक मंच पर आकर हासिल कर सकने की सोच सकते हैं। मेरा हिंदी मीडिया के सभी पत्रकार मित्रों के अनुरोध है कि वे इस मामले पर संजीदगी दिखाएं। खासकर लखनऊ वाले पत्रकार साथियों से यह कहना चाहूंगा कि वे शीलेश को लेकर दिल्ली आ सकें तो हम यहां उनके साथ एक नई रणनीति बनाकर न्याय पाने की जंग छेड़ेंगे। भड़ास इस मुहिम में साथ है। बस, देर केवल इस बात की है कि जब तक इस लोकतंत्र के पायों को हिलाया न जाये, न्याय नहीं मिल सकता। भड़ास के लिए शीलेश की ज़िंदगी एक चुनौती है। हमें इस भाई और साथी को बचाना होगा। लखनऊ कानपुर के अपने सभी साथियों दोस्तों से अनुरोध करूंगा कि वे इस मामले की अद्यतन रिपोर्ट भड़ास में प्रेषित करें। आगे की समुचित कार्रवाई जल्द की जायेगी। जय भड़ासजय शीलेशयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh

Tuesday, January 22, 2008

कादम्बिनी का प्रतिफल है अक्षर्जीवी

विवेक विकलांग सह जन उत्थान संस्थान ने विकलांगों को सामग्री उपलब्ध करवाया

विवेक विकलांग सह जन उत्थान संस्थान के सहयोग से तेघरा प्रखंड कार्यालय परिसर में विकलांगों के बीच तीन पहिया ,वील चेयर ,४० बैसाखी सहित कई सामानों का वितरण किया गया। लगभग ५२ तीन पहिया ,१५ वील चेयर ,४० बैसाखी,२० एल्बो स्टिक १५ भ्रमण छड़ी, और बारह एयर फोन बांटा गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष मनोज कुमार के द्वारा की गयी। मौक़े पर उपस्थित संस्था के सचिव डाक्टर नागेन्द्र पोद्दार कोषाध्यक्ष डाक्टर सरोज झा,विजय कुमार सिंह, विकास रंजन, तथा अन्यों ने वितरण में सहयोगी भूमिका निभाई। इस अवसर पर जिला पार्षद रौशन देवी,मृत्युंजय गौतम,लालन कुमार,मधुराभाशिनी देवी, शालिनी देवी,डाक्टर दीपक सिंह,डाक्टर जे डी एस पांडा, डाक्टर डी आर मोहन्टी सहित तेघरा एस डी ओ गौरीकांत तिवारी ,बी डी ओ कौशलेन्द्र कुमार इत्यादी कई गणमान्य लोग मौजूद थे। ..................राजीव नयन (ब्लोग-लेखक)

एक विद्यालय ऐसा पास में पैसा हालत श्मसान जैसा

भगवानपुर प्रखंड के लखनपुर पंचायत अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय चुरामनाचक के शिक्षा समिति अध्यक्ष श्री निर्वाण प्रसाद यादव ने बताया कि यह विद्यालय वर्षों से उपेक्षा के दंश को झेलने को विवश है। विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वित होने के वावजूद भी इस विद्यालय को एक अदद भवन भी मयस्सर नही हो पाया है। अभी भी छात्र छात्रों को भवन विहीन परिसर में पढ़ने की मजबूरी है। १९९६ में एक कमरा का निर्माण ग्रामीणों द्वारा चन्दा कर के किया गया था,जो कब गिर जे कहना मुश्किल है.इतना ही नहीं अन्य समस्याओं के मकड़जाल में जकडे हुए इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक बलाकिशुं महतो का जबाब भी निराला है। वे बताते हैं कि विद्यालय निर्माण हेतु प्राप्त राशी के उपयोग हेतु उनका बेटा प्रयत्नशील है और उच्च अधिकारिओं पर निर्भरता के कारण योजना अधर में अटका पड़ा है। श्री यादव ने जिलाधिकारी, शिक्षा पदाधिकारी बेगुसराय और राज्य स्तरीय संबंधित अधिकारिओं से गुजारिश की है कि वे शिक्षा संस्थान की बदहाली को अविलम्ब दूर करें। ........................राजीव नयन (ब्लोग-लेखक)

हादसा का गवाह बन कर रह गया है भगवानपुर से संजात जाने वाली मुख्य पथ

कुशाशन की असहनीय पीडा को झेलकर बिहार के निवासिओं को ''सुशासन'' के दौर ने थोडी राहत तो जरूर दी है,किन्तु आम-अवाम अभी भी मूलभूत समस्याओं के आगोश में जकडा उद्धारक की तलाश में स्वप्निल ख्वाब देख रहा है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं, उत्तर भारत के उत्तर बिहार के उत्तर पूर्व जिला बेगुसराय की जहाँ की एक बड़ी आबादी आज भी मौलिक संसाधनों के लिय तरस रही है लेकिन कथित सुशासन की सरकार उनकी समस्याओं के प्रति आज भी सम्वेदानाशुन्य बनी है,फलतः लोगों का आक्रोश भी झेलना पड़े तो कोई नई बात थोडे ही होगी। जिला मुख्यालय से लगभग ३० किलोमीटर भगवानपुर प्रखंड आज भी अनगिनत समस्याओं के दौर से गुज़रने को विवश है,बदले में आश्वासन की झूठी कहानी गढ़ने वाले उन तथाकथित नेताओं और सरकारी महकमाओं के कान पर जू तक नही रेंगती है। स्वास्थ्य की समस्या हो या बिजली ,करोरों रूपए की लागत से बनने वाला नलकूप योजना हो भगवानपुर विकास के हर पायदान पर पीछे खडा है।इतना ही नही अन्य सवाल भी मुँह बाय खडा है जिसका उत्तर तो फिलहाल दिख नहीं रहा है। भगवानपुर को संजात से जोड़ने वाली मुख्य सड़क पर अगर नीतिश जी को यात्रा करने का मौका मिल जाये तो उन्हें ''सुशासन'' की परिभाषा मिल जायगी। वर्षों से उपेक्षित पडी इस सड़क पर जब केन्द्र सरकार मेहरबान हुई तो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योज़ना के अंतर्गत इसकी स्वीकृति मिल गयी लेकिन प्रशासनिक सम्वेदंशुन्यता ने इरादों पर पानी फेर दिया। संवेदक अवधेश सिंह उर्फ़ लोहा सिंह की हत्या ने इस योज़ना पर ग्रहण लगाने का काम किया लेकिन अब तक कोई विशेष पहल नहीं दिख रही है। समस्या जस का तस बना हुआ है, कई महत्वपूर्ण नेताओं का गृह क्षेत्र तक जाने वाली यह सड़क कब अपना अस्तित्व वापस ला पाती है यह तो भविष्य के गर्भ में है,लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि पूर्व मंत्री सह पूर्व सांसद एवं वर्त्तमान विधायक रामदेव राय ,वर्तमान प्रखंड प्रमुख ओरशील पासवान ,पूर्व प्रमुख कृष्ण कुमार राय ,जिला जनता दल(U) के महासचिव गुंजन कुमार और न जाने कितने महत्वपूर्ण लोगों को मुख्यालय से जोड़ने वाली यह सड़क कब अपना अस्तित्व वापस ला पायेगी? ............चंदन प्रसाद शर्मा (ब्लोग-लेखक)

Sunday, January 20, 2008

नगर परिषद द्वारा कम्बल वितरण कार्यक्रम प्रारंभ

नगर परिषद बेगुसराय द्वारा मुख्य पार्षद पुष्पा शर्मा की अध्यक्षता में प्रत्येक वार्ड में कम्बल-वितरण कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ वार्ड ३० से प्रारंभ किया गया। इस अवसर पर नगर पार्षद विपिन पासवान,अभय कुमार शर्म ब्रजेश कुमार ''प्रिंस'', विशेश्वर पासवान,मनोरंजन प्रसाद मुन्ना,चितरंजन प्रसाद के साथ-साथ अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

गायत्री महायज्ञ प्रारंभ कलश यात्रा ने अनुपम छटा बिखेरी

स्थानीय आई टी आई मैदान में आज २० जनवरी से गायत्री महायज्ञ प्रारंभ हो गया। सुबह के ९ बजे एक भव्य कलश यात्रा निकाला गया जो शहर के विभिन्न भागों से गुज़रते हुए यज्ञ स्थल पर यज्ञ का रूप धारण कर लिया। अध्यात्मिक माहौल में प्रारंभ इस यज्ञ से आस-पास के क्षेत्रों के लोगों में धार्मिक माहौल बना है,महिलाएं और गायत्री परिवार से जुडे आस्थावानों के आवाजाही ने धार्मिक वातावरण निर्मित कर दिया है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक यज्ञ २३ जनवरी तक चलेगा जिसमें अनेक वक्ता भाग लेंगे।

Thursday, January 17, 2008

बेगुसराय एस पी के मनोरंजक प्रयास ने पुलिस बल में उर्जा का किया संचार

अगर लगन हो और कुछ विशेष करने की चाहत तो कोई भी व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। प्रेरणा बनने के लिए प्रेरक तत्वों को आत्मसात करना ही पड़ता है। कुछ ऐसा ही बेगुसराय के एस पी के क्रिया कलापों को देख कर लगता है। अपने नालंदा कार्य काल के दौरान अमित लोधा पुलिस महकमे में ''संभव'' नामक संस्था की स्थापना कर आश्रय हीन बच्चों को सहानुभूती देने का नायाब उदाहरण प्रस्तुत कर रहे थे तो बेगुसराय में पदस्थापन के बाद से कुशल प्रशासनिक माहौल निर्मित करने के साथ-साथ पुलिस बलों में नवीन उर्जा के संचार के लिए प्रसिद्धि प्राप्त कर रहे हैं।
हाल के दिनों में उन्होने बेगुसराय पुलिस को चुस्त-दुरुस्त करने के ख्याल से क्रिकेट टूर्नामेंट का अयोज़ं करवाया है, जिसमें अनुमंडल स्तरीय पुलिस पदाधिकारी के साथ पुलिस बलों को पुलिस लाइन के मैदान में खेलने के लिए उतारा गया।टूर्नामेंट के दूसरे दिन सदर अनुमंडल बनाम बलिया अनुमंडल के बीच मैच खेला गया जिसमें बलिया ने बाजी मार ली। इस मैच में सबसे अच्छा प्रदर्शन एक चौकीदार का भांजा सैफुल्ला ने किया जिसके आक्रामक पारी के बल पर बलिया ने मैच का रुख अपनी तरफ मोड़ लिया। मैच से संबंधित तस्वीर यहाँ उपलब्ध है।

वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह का लम्बी बीमारी के बाद निधन

बेगुसराय ही नही बल्कि राज्य स्तर के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन कल लम्बी बीमारी के बाद हो गया। वे एक निजी चिकित्सा संस्थान में भर्ती थे। उनकी मृत्यु के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने शोक संदेश के माध्यम से उनके परिज़नों को सांत्वना दी। श्री वशिष्ठ नारायण सिंह बेगुसराय जिला पार्षद के अध्यक्ष के साथ-साथ राज्य स्तरीय कांग्रेस कमिटी के deleget भी थे और अपने जीवन काल में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए जन सेवा को अपना उद्देश्य बना कर अनवरत संघर्षशील रहे।
आज सुबह फूल मालाओं से उनके शव को सजाकर शवयात्रा निकाला गया,जिसमे जिला के विभिन्न राजनीतिक दलों के लोगों के साथ साथ आम एवं खास वर्ग के लोगों ने भी सहभागिता दर्ज कर अश्रु पूरित नयनों से अपने प्रिय नेता को अन्तिम विदाई दी।

Tuesday, January 15, 2008

बेगुसराय एस पी अमित लोधा के द्वारा नवादा के कार्यकाल में स्थापित ''sambhav'' संस्था पर आउटलुक के फैजान अहमद की रिपोर्ट

In a small town in Bihar, classrooms in police stations have gone a long way in bridging the community Peep inside the main police station in Nalanda district’s Biharsharif town, and you’ll see a group of street children squatting on the verandah. Juvenile delinquents? No, the kotwali is just doubling up as a casual school, and the policeman standing over them is not planning some atrocity, he’s only playing teacher. The same scene is evident in some half a dozen other thanas here. Credit goes to the SP, Amit Lodha. "I was deeply impressed with Kiran Bedi’s book It’s Always Possible," says Lodha, who nudged his men towards community work. It was with Lodha’s initiative that Sambhav was launched. The police force in our country has often faced allegations of abuse. In fact, there happens to be a fundamental distrust between the citizenry and the cops. Lodha saw the need to bridge this gulf of suspicion. Literacy centres intended for poor children were part of his strategy to give the police a clearer community orientation. The move was also intended to humanise the force. The SP also asked other police stations to invite intellectuals, doctors, academicians and youths for brainstorming sessions to sort out the problems of the locality. Today, Sambhav organises medical camps and even distributes clothes among the poor. It also holds quiz, sports, antakshari, drama and dance competitions. "The spontaneous participation in each programme surprised me," says Lodha. The move has also enthused the force. "We’re proud that our cops are sparing two hours everyday to teach slum children," says inspector Vijay Kumar Yadav. His post is school to over 50 children. Neha Nishant, a BSc student, trained by a Delhi-based organisation, Prayas, comes to teach here. When Neha is away, a policeman dons the teacher’s mantle. Asked how the cops manage to spare time from their hectic schedule, Yadav grins disarmingly, "Our constables have plenty of time. They utilise it in teaching kids." Parents of the children who attend the "police school" are too poor to send them to the regular ones. "We are looking for sponsors to admit these children to mainstream schools once they are ready," says Neha. A trickle of goodwill has started. The SBI, Power Grid Corporation and local traders have come forward to help. And citizens have also chipped in with books, stationery, uniforms and meals. For now, the kids are taught textbooks prescribed for first and second standards. With good reason. Renuka, 10, had never been to school, neither had her 8-year-old brother. A few months ago, their father Prakash Yadav, a cart puller, was brought to the kotwali by a complainant. He was let off after a warning. Before releasing him, the inspector asked if he was sending his kids to school. "No," came the answer. Yadav was told to meet Sambhav activists who convinced him to send his two children to the police school. The transformation in Yadav is apparent: a man who would earlier flee on seeing cops now does rounds of the thana to enquire about his children’s progress. The interaction with the community has undoubtedly helped in policing, says Lodha. But he does not want to take too much credit. "I didn’t expect a revolution but just wanted to change the mindset of the people and the force. I’ve not done anything, just a few small initiatives," he says. Contact Sambhav at: c/o S.P. Nalanda, Biharsharif, Nalanda district, Bihar. e-mail: amitlodha7@rediffmail.com. Tel: 06112-225206/225207. —Faizan Ahmad

ब्लोग विधा और २००७ की यात्रा पर संजय तिवारी की प्रतिक्रिया

साल 2007 हिन्दी ब्लागिंग के लिहाज से बहुत महत्व का था फिर भी ऐसा कुछ नहीं हुआ है जिसे उपलब्धि मानकर समीक्षा की जाए. कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं जिनका आगामी सालों में हिन्दी की इस नयी विधा पर बहुत अच्छा असर पड़ेगा. संवाद तो हुआ ही विवाद भी खूब हुए. ब्लागरों की सक्रियता देखिए कि किसी पोस्ट या ब्लाग पर कुछ लिखा गया तो उस पर इस तरह से प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी मानों देश में दूसरा कोई मुद्दा है ही नहीं. साल की शुरूआत में कुल जमा 100-125 हिन्दी ब्लागरों का समूह साल के अंत तक हजार का आंकड़ा पार गया. यानी 10 गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई. इसी अनुपात में ब्लागों के पाठक भी बढ़े हैं. एक-दूसरे के ब्लाग पढ़कर वाहवाही और निंदा का दौर पीछे छूट गया है. अब कम ही सही मुद्दे की बात पर बहस होती है. कई सारे लिक्खाड़ पत्रकार नियमित रूप से ब्लाग लिखने लगे हैं. लेकिन सबसे सुखद पहलू है बड़ी संख्या में पत्रकारिता के नवागंतुक और पढ़ाई करनेवाले युवकों द्वारा ब्लाग लिखना. आज जितने लोग नियमित ब्लाग लिख रहे हैं उनमें अधिकांश लिखने-पढ़ने के पेशे से जुड़े हुए हैं. उन्होंने ब्लाग को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना लिया है और वे सफल हैं क्योंकि आखिरकार बेबाक राय की अहमियत तो होती है. हिन्दी ब्लागिंग की कई सारी खासियतें हैं जो बाकी हिन्दी समाज से इसे अलग करती है. यहां एक अघोषित सह-अस्तित्व है. हो सकता है बौद्धिक लोगों की भीड़ बढ़ने से इसमें थोड़ी कमी आये लेकिन शुरूआती दौर के ब्लागरों की आलोचना करें कि वे परिवारवाद की शैली में ब्लाग चला रहे थे तो यह उनकी खूबी भी थी. मसलन जिस तकनीकि के बारे में बहुत सारे डेवलपर भी नहीं जानते हिन्दी ब्लागर उसका धड़ल्ले से उपयोग करते हैं. देखने में यह बात भले ही छोटी लगती हो लेकिन है बहुत महत्वपूर्ण. क्योंकि इंटरनेट पर सक्रियता के लिए आखिरकार आपको तकनीकिरूप से समृद्ध होना ही पड़ता है. यह शुरूआती ब्लागरों का बड़प्पन है कि उन्होंने हिन्दी प्रेम के वशीभूत नवागन्तुकों को वह सब जानकारी उपलब्ध करवाई जिसके बारे में अच्छे-खासे वेब डिजाईनर और डेवलपर भी नहीं जानते. यहां सब कुछ मुफ्त है और आपके लिए सहज उपलब्ध है. इसका परिणाम यह हुआ है कि आमतौर पर तकनीकि पृष्ठभूमि से न जुड़े होने के बावजूद हिन्दी ब्लागरों को तकनीकि के कारण कभी मन मारकर नहीं बैठना पड़ा. कारंवा निरंतर बढ़ रहा है, और यह सब उन शुरूआती ब्लागरों का बड़प्पन है जिन्होंने कहीं से व्यावसायिक मानसिकता नहीं अपनाई. इसी का परिणाम है कि ब्लाग की दुनिया में व्यावसायिक मानसिकता को कहीं कोई जगह नहीं है. इसको और सरलता से समझना हो तो देख सकते हैं कि दो एग्रीगेटर गैर व्यावसायिक मानसिकता से शुरू किये गये और दो व्यावसायिक दृष्टिकोण से. एग्रीगेटर ही वह माध्यम होता है जहां जाने के बाद आप हिन्दी के अधिकांश चिट्ठों तक आसानी से पहुंच सकते हैं. वनइंडिया और ब्लाग अड्डा दो व्यावसायिक एग्रीगेटर आये और उनको ब्लागरों ने कोई महत्व नहीं दिया. लेकिन चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी नाम के एग्रीगेटर साल में मध्य में ब्लागरों के बीच आते हैं और देखते ही देखते हिन्दी ब्लाग्स के सबसे सशक्त माध्यम बन जाते हैं. आज अधिकांश हिन्दी चिट्ठे इन दो एग्रीगेटरों पर ही रजिस्टर्ड हैं. पहले से चले आ रहे दो एग्रीगेटर नारद और हिन्दी ब्लाग्स भी एग्रीगेटर के रूप में यथावत सक्रिय हैं. यह गैर-व्यावसायिक शुरूआत का नैतिक दबाव ही है कि हिन्दी ब्लागिंग में एग्रीगेटर किसी प्रकार का कामर्शियल स्वरूप नहीं अख्तियार कर पा रहे हैं. हिन्दी भाषा के सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को देखते हुए सेवा का यह तरीका निसंदेह स्वागतयोग्य है. हमें उन गिने-चुने लोगों का धन्यवाद करना ही चाहिए जिन्होने हिन्दी ब्लागिंग को व्यवसाय के नजरिए से नहीं देखा. इस साल कई विवाद हुए. लेकिन हर विवाद से कुछ न कुछ सार्थक ही निकलकर आया जो आखिरकार हिन्दी ब्लागरी को मदद कर रहा है. मसलन साल की शुरूआत में कैफे हिन्दी चलानेवाले मैथिली गुप्त ने कुछ ब्लागरों के लिखे को अपने यहां प्रकाशित किया और दावा किया कि ऐसा करने से पहले उन्होंने ब्लागरों से अनुमति ले ली थी. लेकिन विवाद हो गया. इस विवाद का परिणाम यह हुआ कि मैथिली गुप्त ने ब्लागवाणी नाम से अपना खुद का एग्रीगेटर शुरू कर दिया. इसी तरह विपुल जैन और आलोक कुमार ने भी मिलकर चिट्ठाजगत नाम से एक एग्रीगेटर शुरू किया. सालभर हिन्दी ब्लागरों ने कभी जाति व्यवस्था पर बहस की तो कभी रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित राष्ट्रगान की उस पंक्ति पर की भारत का भाग्यविधाता कौन है? ऐसी अनगिनत बहसों से हिन्दी ब्लागर आनेवाले लोगों के लिए एक अघोषित गाईडलाईन बनाते जा रहे हैं जिसका परिणाम तो होगा ही. आप कह सकते हैं कि एक अरब लोगों के देश में तीन-पांच हजार लोगों के समूह की सक्रियता पर इतनी बढ़-चढ़कर बात करना क्या ज्यादती नहीं है? हां ज्यादती होती अगर यह समूह इंटरनेट पर ब्लागरों का न होता. हम ब्लाग्स पर इतनी बात कर रहे हैं इसीमें इसकी संभावनाओं का सूत्र छिपा हुआ है. यह वो पगडंडी है जो जल्दी ही सुपर एक्सप्रेसवे में बदलने जा रही है. ब्लागों के कारण हिन्दी की मानसिकता में बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है, थोड़े ही दिनों में इसके उदाहरण दिखने लगेंगे. आज तक वैकल्पिक मीडिया के नाम पर जो बहस होती रही है, ब्लाग्स के रूप में उस वैकल्पिक मीडिया का आगाज हो चुका है. यह ब्लाग समीक्षा समकाल, वर्षः1, अंकः19. विदा 2007 अंक में प्रकाशित हुई है. Posted by संजय तिवारी 11:00 AM 9 comments Links to this post

ब्लोग की टी आर पी कैसे बढाए

आज निधि जी के चिठ्ठे चिन्तन पर टी आर पी बढ़ाने संबधित लेख पढ़ा। चुँकि निधि जी चिठ्ठाकारी के क्षेत्र में नयी हैं ( अब हम कौन हड़्ड़पा और मोहन जोदड़ो के जमाने के है) परन्तु उनके इस लेख ने कई पुराने चिठ्ठाकरों के लेखन की गुणवत्ता को चुनौती दे दी है। अब आते हैं मूल विषय पर कि अपने ब्लॉग की टी आर पी कैसे बढ़ायें?तो पेश है जनाब कुछ नुस्खे हर एक चिठ्ठे पर जाकर टिप्पणी दें कुछ समीर जी और सागर चन्द की तरह । टिप्पणी कैसे दें यहाँ सीख सकते हैं। वैसे खुछ खास नहीं करना है समीर जी के लेख की टिप्पणीयाँ सेव कर लें बाद में बस copy, pest ही करते रहें। किसी के चिठ्ठेपर टिप्पणी करें तब अपने चिठ्ठे का लिन्क देना ना भूलें। परिचर्चा के ज्वलन्त मुद्दे वाले थ्रेड में जाकर किसी विषय पर सारी टिप्पणियों के विपरित टिप्पणी दें, वहाँ भी अपने हस्ताक्षर के साथ अपने चिठ्ठे का लिन्क अवश्य दें। व्यंगात्मक टिप्पणी दो लोग बदला लेने आपके चिठ्ठे पर जरूर आयेंगे। आमिर खान, नरेन्द्र मोदी और नर्मदा जैसे विषयों पर लेख लिखो, जिसमे नरेन्द्र मोदी, भाजपा, नर्मदा का फ़ेवर हो और महेश भट्ट, शबाना आज़मी, आमिर खान, तिस्ता सेतलवाड आदि का विरोध । अपने धर्म के बारे में अनर्गल लिखो। टाईटल एक दम कुछ हटके रखो जैसे अलविदा चिठ्ठा जगत , अपने चिठ्ठे का टी आर पी कैसे बढ़ायें? और अपना ब्लाग बेचो, भाई एवं आप सब बुद्धिजीवियों से ये उम्मीद ना थी! आदि........पाठकों को कैसे पकायें? जैसा टाईटल कभी ना रखें। समय समय पर लोगों को अपना स्टार्ट काऊंटर का अंक बताते रहो कि अब मेरे १००० हिट पूरे हुए अब मेरे १००१ हिट पूरे हुए। कुछ इस तरह। कुछ पहेली शहेली भी कभी कभार अपने चिठ्ठे पर लिख दो, जिसका हल आपको भी ना आता हो। एन आर आई पर उनके देश प्रेम के प्रति संदेह व्यक्त करते हुए लेख लिखो। भले ही वह झूठ ही क्यों ना हो। कुछ बेतुकी रोमान्टिक कविता लिखो ( आईडिया सौजन्य: ई-स्वामी जी) समय समय पर सन्यास लेने की धमकी देते रहो, वीरू प्राजी की तरह टंकी पर चढ़ कर ! और हाँ सागर की तरह भी,लोग बाग मौसी जी की तरह डर कर आपको मनाने जरूर आयेंगे । यह सब से कारगार नुस्खा है अपने चिठ्ठे का टी आर पी बढ़ाने का। मुफ़्त के जुगाड़ ढूंढ कर अपने चिठ्ठे पर उनका लिन्क दो। कुछ नई खोज और नयी वैज्ञानिक क्रान्ति के बारे में लिखो। अपने चिठ्ठे पर लेख लिख कर पुराने चिठ्ठा लेखकों से बेवजह पंगा लेते रहो । अंत में यहाँ और बहुत सारे आईडिया है सारे क्या मैं ही बताऊंगा क्या आप कुछ नही करोगे । सौजन्य मेरा पन्ना प्रस्तुतकर्ता Sagar Chand Nahar पर 7/08/2006 03:14:00 अपराह्न

पुलिस को मिली फिर एक सफलता

बेगूसराय। मुफस्सिल थाने के एक व्यवसायी से रंगदारी के लिये गोलीबारी करने व ठेला चालक से एक हजार छिनतई के बाद सक्रिय हुई पुलिस ने नगर थानेदार संजीव कुमार व मुफस्सिल थानेदार रंजीत कुमार के नेतृत्व में छापेमारी कर लोहियानगर के नवीन सिंह उर्फ कारु को एक स्वचालित पिस्टल व दो गोलियों के साथ धर दबोचा। जानकारी के अनुसार, गिरफ्तार अपराधी पूर्व में भी आधा दर्जन से अधिक आ‌र्म्स एक्ट, गोलीबारी जैसे संगीन मामले का आरोपी रहा है। गुरुवार की शाम इसने मुफस्सिल थाना क्षेत्र के व्यवसायी सहदेव साह के घर पर रंगदारी न देने के कारण गोलीबारी कर लूटपाट का प्रयास किया था। वहीं अयोध्याबाड़ी निवासी ठेला चालक बालेश्वर साह से भी 186 रुपये छीन लिये थे जिसे पुलिस ने उसके पास से बरामद किया है। गोलीबारी के बाद मुफस्सिल व नगर थाना पुलिस ने संयुक्त छापेमारी में उक्त सफलता हासिल की है।

अक्षर्जीवी ब्लोग परिचय प्रयोगंक २००८ के रचनाकारों की सूची

चंदन प्रसाद शर्मा
संवाददाता नवबिहार
ब्लोग लेखक
अक्षर्जीवी ब्लोग लेखक संघ बेगुसराय

शुभकामनाएं जो दिल से निकलती हैं............

शिव जी सिंह (पूर्व जिला पार्षद ) साहेब पुर कमाल यह जानकर प्रसन्नता हुई कि बेगुसराय जैसे जिले में ब्लोग लेखन का प्रारंभ हो गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पर्याय बन कर ब्लोग लेखन विश्व स्तर पर नाम कमा रहा है। मैं मकर संक्रंती के पावन पुण्य अवसर पर बेगुसराय के बाहर विदेशों में रहने वाले लोगों को हार्दिक बधाई देता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि बिहार के विकास में विदेशी भारतीय महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उनके पास उन्नत सोच का जादू है, नवीनतम तकनीक से लैस हो कर वे विश्व स्तर पर भारत का नाम रौशन कर रहे हैं। बेगुसराय के युवाओं को ये पैगाम देना चाहता हूँ कि वे मेहनती बनें और जिला को विश्व फलक पर ले जाने के ल;इये अथक प्रयास कर सपनों को साकार करें। आज कई ब्लोग लेखक सिर्फ अपनी अभिव्यक्ति को ही सब कुछ समझ कर कुछ भी लिखने को स्वतंत्र हैं, किन्तु ''अक्षर्जीवी'' आज बेगुसराय का नाम ऊँचा कर रहा है।मैं पत्रकारिता के इस नवीन शैली का स्वागत करते हुए इसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।

लोक जन शक्ति पार्टी द्वारा बछवारा विधानसभा स्तरीय पार्टी संगठन की चुनावी समीक्षात्मक बैठक सम्पन्न

पार्टी द्वारा प्रदेश संगठन सचिव विनय कुमार सिंह के आवास पर बछवारा विधानसभा स्तरीय पार्टी संगठन चुनाव की समीक्षात्मक बैठक सम्पन्न हुई।इस बैठक को संबोधित करते हुए जिलाध्यक्ष प्रदीप राय ने बताया कि चुनावी प्रक्रिया पूरा करने के लिए जिला स्तर पर एक जिला निर्वाची पदाधिकारी उमेश राय की की नियुक्ति राज्य पार्टी द्वारा किया गया है। इतना ही नही जिला में पार्टी के विकाश के लिए अन्य मुद्दों को य्तालाश कर युध्ह स्तर पर काम किया जाएगा । पूर्व प्रदेश संगठन सचिव विनय कुमार सिंह ने बताया कि पार्टी को धारदार व मजबूत बनने के लिय कुशल नेत्रित्वकर्ता की जरूरत होती है,इसलिय हम प्रारम्भिक प्राथमिकता ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले व्यक्ती को देंगे। इस बैठक की अध्यक्षता अमरजीत राय ने किया। इस अवसर पर बलिया सांसद प्रतिनिधि राजेश कुमार तुन्ना सहित विभिन्न समाचार पत्रों के पत्रकार उपस्थित थे। सभी पत्रकारों को कलम और डायरी से सम्मानित किया गया। उपस्थित पत्रकारों में सरज़मीन के ब्यूरो चीफ प्रभाकर ,अक्षर्जीवी के भगवानपुर संवाददाता राजीव नयन के साथ-साथ अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
..........यह समाचार ''अक्षर्जीवी'' के बेगुसराय संवाददाता चंदन प्रसाद शर्मा के द्वारा लिखा गया है। समाचार संकलन में राजीव नयन की भूमिका भी उल्लेखनीय रही।

Monday, January 14, 2008

शुभकामनाएं

मकर संक्रान्ती के अवसर पर बरौनी थाना क्षेत्र के निवासिओं के साथ साथ बेगुसराय के तमाम वर्गों को हार्दिक शुभकामनाएं।
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विनोद कुमार {थाना प्रभारी}
बरौनी

शुभकामनाएं

मकर संक्रान्ती के पावन-पुण्य अवसर पर फुलवरिया थाना क्षेत्र के निवासिओं के साथ-साथ बेगुसराय के अमनपसंद नागरिकों को हार्दिक शुभकामनाएं।
विश्वरंजन सिंह {थाना-प्रभारी}
फुलवरिया
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मुझे हार्दिक ख़ुशी हो रही है कि बेगुसराय जैसे जिले में ब्लोग लेखन की शुरुआत हो गयी है। पत्रकारिता के इस नवीन शैली को प्रारंभ करने वाले बेगुसराय के युवा निश्चित ही बधाई के पात्र हैं। देश से बाहर रहने वाले लोगों तक बेगुसराय की खबरें अब निरंतर पहुंचेगी,विचारों का आदान प्रदान होगा, तकनीक की इस आधुनिक सोच को आगे बढाने के लिए मेरी शुभकामनाएं उन तमाम ब्लोक लेखकों के साथ है।
मैं ''अक्षर्जीवी'' को हार्दिक बधाई देता हूँ।

शुभकामनाओं का अंतहीन सिलसिला

मकर संक्रान्ती के अवसर पर बेगुसराए के सभी वर्गों के साथ-साथ साहेबपुर कमाल थाना क्षेत्र के निवासिओं को हार्दिक शुभकामनाएं।
रंजन कुमार {थाना प्रभारी}
साहेबपुर कमाल ,बेगुसराए ,बिहार
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जी हाँ ,बेगुसराई के आरक्षी अधीक्षक अमित लोधा के विश्वसनीय अधिकारिओं में रंजन कुमार का नाम परिचय का मोहताज नही है। चकिया थाना प्रभारी के रुप में श्री कुमार ने अपनी कुशल प्रशासनिक क्षमता के बल पर वहाँ के निवासिओं का दिल इस रुप में जीता कि तीन-चार अपराधिओं को मुठ्भेर में मारने के उपरांत एक टीवी चैनल के कर्मी की बेहूदी हरकत ने उन्हें निलंबन का रास्ता दिखा दिया था लेकिन जब आम जनता उक्त टीवी चैनल के विरोध में 'मुर्दाबाद' की तख्तियाँ लेकर श्री कुमार के निलंबन का विरोध करने लगी तो मामला गर्म हो गया और अमित लोधा को विवश होकर श्री कुमार को निलंबित करना पडा।
वक्त अपने पुराने अंदाज़ में आगे बढ़ता गया लोगों की आलोचनाओं के दौर से गुजरते हुए विभिन्न अनुभवों से दो-चार होते हुए श्री कुमार को पुनः पदस्थापित किया गया.आज की तारिख में श्री कुमार सहेबपुर कमाल थाना क्षेत्र के थाना प्रभारी के रुप में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं.विभिन्न मुद्दों को सामाजिक स्तर पर सुलझाने का प्रयास हो या विवादों को दूर कर स्वच्छ समाज की स्थापना का मामला हो श्री कुमार क्षेत्र के लोगों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता अर्जित कर रहे हैं.अपराध उन्मूलन के प्रति गंभीर रुख रखने वाले रंजन कुमार अपन्ने 'बॉस' अमित लोधा के साथ बेगुसराए को अपराध्मुक्त बनाने का जो प्रयास कर रहे हैं वह काफी काबिले तारीफ है।
''अक्षराजीवी'' प्रशासन के इस भूमिका को सलाम करते हुए उनके कार्यशैली को जनप्रिय होने की शुभकामनाएं देता है।

Thursday, January 10, 2008

टाटा ने सूरत बदल कर रख दी ज़मीनी सोच की

''यही है एक लाख की कार''

कुछ कर गुजरने की चाहत और उद्देश्यपूर्ण प्रयास असंभव को भी संभव बना देती है। कुछ ऐसा ही प्रयास का नायाब नमूना प्रस्तुत किया है रतन टाटा ने।

Wednesday, January 9, 2008

''अक्षरजीवी ब्लौग परिचय प्रयोगांक २००८'' के प्रकाशन हेतू ब्लोग रचनाकारों की सूची

राजीव नयन (भगवानपुर संवाददाता)
अक्षर जीवी ब्लोग लेखक संघ, बेगुसराय

Friday, January 4, 2008

बस इतना ही काफी है।

दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।जायेगा जब यहां से कुछ भी न पास होगा॥कंधे पर धर ले जायें, परिवार वाले तेरे।यमदूत ले पकड कर डालेंगे घेरे घेरे॥पीटेंगे छाती अपनी, कुनबा उदास होगा।दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा।चुन चुन के लकड़ियों मे रख दें तेरे बदन को।आकर झट उठा लें श्मसानी तेरे कफ़न को।देवेगा आग तुझमे बेटा जो खास होगा॥दो गज कफ़न का टुकडा तेरा लिबास होगा।मिट्टी मे मिले मिट्टी, बाकी ना कुछ भी होगा।सोने सी तेरी काया जल कर के खाक होगी।दुनिया को त्याग, तेरा मरघट में वास होगा।दो गज कफ़न का टुकडा तेरा लिबास होगा॥हरी का नाम लेके, भव सिन्धु पार होते।माया के मोह में फ़ंसकर, जीवन का मोल खोते॥प्रभु का नाम जप ले, बेडा जो पार होगा।जायेगा जब यहां से कुछ भी ना पास होगा॥धन्यवादअंकित माथुर...

यशवंत सिंह की आन्तरिक प्रतिक्रिया

आइए उसको विदाई दें साथियों !!! वो गया। दिल को छलनी करके। बस, इतना कहकर कि शायद नशे में तुम जैसा होता हूं, नशे के बाद तुम मुझे कुत्ता समझते हो। जाते हैं। बहुत लोग। पर इतना साफ कहकर कौन जाता है। उसकी साफगोई। नशे वाली। लुभाती है। जब वो सुबह और शाम को मिलता है तो बेहद विनम्रता से। सारे नार्म और फार्म निभाते हुए। जब पी लेता है तो हर पैग के बाद मनुष्य होने लगता है। पहले पैग पर उसके चेहरे पर रौनक आने सी लगती है। दूसरे पर वह बातों को बीच में ही काटकर अपनी बात शुरू कर देता है। तीसरे पर वो खुद की बात पूरे दावे और दम से कहने लगता है। तीसरे पर वह सुनाने लगता है, बचपन से जो भी गाना सुनता आया है। चौथे पर वह खड़ा हो जाता है, पूछते हुए कहते हुए किसे पीटना है, किसे प्यार करना है, किसके लिए जीना है, किसके लिए मरना है। पांचवें पर वह बड़बड़ाने लगता है....इ कउन लाइफ है यार, बिना दिल और दिमाग के। जहां दिमाग लगाओ वहां दिल नहीं, जहां दिल लगाओ वहां दिमाग नहीं। जहां दोनों हैं वहां भयंकर स्वार्थ है। कैसे जिया जाय। और अगर छठवां पैग पी लिया तो फिर कयामत है। सामने वाले की। जिसने उसे बिठाया और पिलाया। वह बतायेगा कि दरअसल वो जो सामने वाला है सबसे बड़ा चूतिया है और सबसे समझदार होते हुए भी अपनी समझदारी का उत्कृष्ट इस्तेमाल नहीं कर रहा है। वो मेरा मित्र गया। सब छोड़कर। अपने देस। कह के तो गया है कि फिर नहीं लौटेगा। लेकिन जब उसे घर की दिक्कतें पीटेंगी तो वह फिर तड़पड़ायेगा और आयेगा। यहीं मरने। तेरे मेरे जैसे कुत्तों के बीच।क्या फरक पड़ता है कि वो जो गया है उसका नाम क्या है, किस कंपनी में काम करता था, क्या पद था, उम्र क्या था,दिमागी हालत क्या थी, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या थी। इन सब सवालों का यही जवाब है कि वो मेरे तेरे जैसे कुत्तों, चूतियों से तो अच्छा ही था। आइया उसका वेलकम करें। और उसके आने पर फिर जश्न दें, बर्बादी की दुनिया में लौटने के लिए।आइए उसको विदाई दें, अपनी मनुष्यता को अब तक जी पाने के लिए। कल पता नहीं, वो मनुष्य बनने आए या तेरे मेरे जैसा कुत्ता या भेड़िया.....। चीयर्स....।जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह 1 comments: Gulshan khatter said... माफ़ करना यशवन्त भाइलगता हे इस जालिम दुनिया ने आप को बहुत सताया हे जो इतनी तिखी भडास पडने को मिल रहीहे