Monday, March 31, 2008

का हो दादा बड़ा सुनर लागा ता हो भैवा......

ये हैं भडास के मोडेरेटर यशवंत सिंह.बेगुसराय के अनेक मित्रों ने कहा था की यार ज़रा यशवंत दादा का एगो फोटो लगा दो तो आज लगा ही दिया.अब भाई-बहिन लोग जी भर कर हिबो अपने सुनर दादा को....

आशीष महर्षि ने लिया यशवंत दादा का साक्षात्कार :बोल हल्ला का यह प्रयास सचमुच है सराहनीय

आज से हम हर सप्ताह एक चर्चित ब्लागर का इंटरव्यू प्रकाशित करेंगे और शुरुआत इस समय के सबसे चर्चित ब्लाग भड़ास के माडरेटर और स्वामी भडा़सानंद यशवंत सिंह के इंटरव्यू के साथ। वामपंथी आंदोलन में होलटाइमरी के बाद पत्रकारिता की एबीसीडी सीखी और थोड़े ही दिनों में शिखर पर पहुंच गए। ट्रेनी से एनई तक की यात्रा करने के लिए छह शहर और दो अखबार बदले, और आठ साल खपाये। बाद में मीडिया के संपादकीय सेक्शन को को छोड़कर प्रबंधन में हाथ आजमाने में जुट गए हैं। आजकल वे एक मोबाइल मीडिया कंपनी में बतौर वाइस प्रेसीडेंट काम कर रहे हैं। उनकी आगे इच्छा है, खुद को एक सफल मीडिया उद्यमी के रूप में स्थापित करना। अपनी भदेस और सहज अभिव्यक्तियों के लिए जाने जाने वाले यशवंत का ब्लाग भड़ास अब पौने दो सौ लोगों की सदस्य संख्या वाला कम्युनिटी ब्लाग बन चुका है, जो हिंदी ब्लागिंग में अब तक का रिर्काड है। पेश है यशवंत जी से आशीष महर्षि के टेढ़े टेढ़े तीन सवाल और उनके खरे खरे तीन जवाब....यशवंत जी , आप पर आरोप है कि आप तानाशाह किस्म के आदमी है, किसी की सुनते नहीं, अपनी पेले रहते हैं, मन में आया तो भड़ास शुरू कर दिया, मन में आया तो भड़ास को डिलीट कर दिया...ये तानाशाही कब खत्म होगी ?हां, हूं, तो? वैसे, आपको पता होना चाहिए, कि हर आदमी में कई कई आदमी होते हैं। और मेरे में भी तानाशाह, राक्षस, देवता, लोकतांत्रिक, समाजवादी, फासिस्ट, सामंती, दयालु, मददगार, भावुक, बौद्धिक, हिप्पोक्रेट, सहज, सरल....जाने कौन कौन सा आदमी छिपा है। कभी कोई सिर उठा लेता है तो कभी कोई। हालांकि बुरे आदमी को हम लोग सायास कम करने, दबाने, निकलने न देने की कोशिश करते लेकिन कई बार किन्हीं खास मनःस्थितियों में यह निकलकर बाहर भी आ जाता है। हो सकता है, जो आप कह रहे हैं, वो सब उन्हीं किसी एक बुरे राक्षसत्व की स्थिति में हुआ हो और इस बातकी कोई गारंटी नहीं दे सकता कि उसके जीवन में हर तरह के शेड्स नहीं आएंगे। ये शेड्स और इन्हें संजोना ही तो ज़िंदगी की लय, सुर-ताल बनाती है या बिगाड़ती है। नेक्स्ट क्वेश्चन प्लीज?भड़ास पर अक्‍सर यह आरोप लगता है कि इस ब्‍लॉग की भाषा आपतिजनक है क्‍या आप मानते हैं कि वाणी और लेखनी पर संयम नहीं होना चाहिए। क्‍या यह लांग टर्म में नुकसानी दायी नहीं। और कहा तो यह भी जाता है कि भड़ास से जुड़े अधिकतर लोग कहीं न कहीं अवसाद से पीडि़त हैं, क्‍या कहेंगे इस पर आप ?कौन साला कह रहा है कि भड़ास की भाषा आपत्तिजनक है? जो लोग ये आरोप लगाते हैं वे अपने निजी जीवन में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं कि उसे बताते हुए भी उन्हें शर्म आएगी। लेकिन हम लोग जो निजी जीवन में इस्तेमाल करते हैं उन्हें ही भड़ास पर इस्तेमाल करते हैं क्योंकि भड़ास बौद्धिक बाजीगरी के लिए नहीं बल्कि दिल और मन हलका रखने के लिए है। और हम जो लिखने पढ़ने वाले लोग हैं उनका मन अपनी बात लिखकर या कहकर ही मन हलका हो पाता है। तो एक तरह से यह डस्टबिन है, उगालदान है, संडास है, बकवास है......। और आप चाहेंगे कि डस्टबिन में कचरा न पड़े, उगालदान में कोई उलटी न करे, संडास में कोई निपटने नहीं...। हम तो शुरू से कह रहे हैं कि भड़ास को सीरियस मत लो। भड़ास निकालो। उलटी करो। कई बार लोगों को लगता है कि सही उलटी किया है, कई बार लगता है कि गंदा उलटी किया है। लोग हैं, लोगों का काम है कहना.....आप पत्रकारिता से लंबे समय तक जुड़े रहें हैं ऐसे में जल में रहकर मगर से बैर कितना सही है, आख्रिर भड़ास के माध्‍यम से आप क्‍या करना चाहते हैं और हर म‍ीडियाकर्मी को क्‍यों भड़ास का सदस्‍य बनना चाहिए ?भड़ास का मकसद हिंदी मीडिया कर्मियों का भला करना है, बिगाड़ना नहीं। इसीलिए मैं भड़ास पर किसी मीडिया हाउस या कंपनी या अखबार का नाम लेकर सही या गलत लिखने को प्रोत्साहित नहीं करता। इसे हतोत्साहित करने के लिए ही मैंने भड़ास पर एक नहीं दो दो पोस्टें लिखीं, जल में रहकर मगर से बैर शीर्षक से और एक की हेडिंग ध्यान नहीं आ रही। कुछ भड़ासी साथी भड़ास को क्रांतिकारी मंच बनाना चाहते हैं, ये उनकी मर्जी है पर निजी तौर पर मैं भड़ास को कुंठित और दबे-कुचले रखे गए हिंदी मीडियाकर्मियों को थोड़ी सी राहत और खुशहाली प्रदान करने का मंच मानता हूं। और यह राहत या खुशहाली आपको तभी आती है जब आप ढेर सारे घंटे सीरियस काम में, अखबार के काम में, मीडिया के काम में बिताने के बाद कुछ घंटे उलजुलूल काम में बिताएं। और भड़ास इसीलिए है। जो मन हो सो लिखिए।हर मीडियाकर्मी को नहीं, सिर्फ हिंदी मीडियाकर्मी को भड़ास का मेंबर इसलिए बनना चाहिए ताकि वे पहले तो आनलाइन माध्यम से जुड़ेंगे, दूजे आफिस के बाहर हिंदी टाइप करना सीखेंगे, तीजे अपने व्यक्तित्व को एक्सपोजर देखेंगे, चौथे खुद का ब्लाग बनाना सीखेंगे, पांचवें हमारी ताकत दिखेगी, एकजुटता दिखेगी, छठवें जो बात किसी से कह नहीं पाते, कहीं उगल नहीं पाते, उसे सबके सामने अपनी स्टाइल में रख सकेंगे......अगर गिनाने लगूं तो सौ कारण गिना सकता हूं लेकिन फिलहाल इतना ही। आपने मुझे इतना देर झेला, इसके लिए धन्यवाद। जय भड़ास!!! at 11:04 AM Labels: 14 आपकी राय: आशीष महर्षि said... बोल हल्‍ला पर अभी किसी पापड़ी और नरेश जी के नाम से दो व्‍यक्ति ने अपनी अपनी राय दी। दोनो की राय कहीं न कहीं यशवंत जी पर सीधा व्‍यक्तिगत प्रहार था। बोल हल्‍ला समूह का मानना है कि आप अपनी राय जरुर दें लेकिन खुद के नाम से। बोल हल्‍ला पर बेनामी राय के लिए कोई स्‍थान नहीं है। 25 January, 2008 12:57 PM कमल शर्मा said... यशवंत जी की बोल हल्‍ला पर हुई इस बातचीत पर मैंने भी सुबह पापड़ी और नरेश की टिप्‍पणियां पढ़ी थी जिन्‍हें लगता है आशीष भाई आपने अब हटा दिया है। निजी टिप्‍पणियां नहीं करनी चाहिए बल्कि आपके ब्‍लॉग पर जो बातचीत आई है उस पर टिप्‍पणिया दी जानी चाहिएं। निजी मामले को दूसरे माध्‍यम या मंच पर निपटाना चाहिए। साक्षात्‍कार शुरु कर आपने अच्‍छा किया है और उम्‍मीद है देश विदेश के बेहतर ब्‍लागरों के इंटरव्‍यू हर सप्‍ताह पढ़ने को मिलेंगे। 25 January, 2008 1:16 PM आशेन्द्र सिंह said... जय भड़ास !बात तो सही है यशवंत भाई के भीतर तानाशाह, राक्षस, देवता, लोकतांत्रिक, समाजवादी, फासिस्ट, सामंती, दयालु, मददगार, भावुक, बौद्धिक, हिप्पोक्रेट, सहज, सरल....समेत कई तरह के आदमी विराज मान हैं. इन सब के बावजूद भी हम उन के लिये भारत रत्न की मांग नहीं कर रहे ...इस का मतलब है की यशवंत भाई ने अपने अन्दर के कुछ आदमी हम लोगों के भीतर भी प्रेषित कर दिए हैं. फिर ये आदमी भावुक भी हो सकता है और तानाशाह भी... 25 January, 2008 1:24 PM विनीत कुमार said... इस तरह से छिछा - लेदर न करें, किसी के निजी मामले में टिप्पणी करने से बचा जाना चाहिए। बाकी इंटरव्यू वाला मामला जारी रखें। 25 January, 2008 2:01 PM सिरिल गुप्ता said... आपकी बातें इमानदारी भरी लगीं. 25 January, 2008 2:15 PM जलज कुमार said... क्‍या आशीष भैया, सवेरे सवेरे लगी टिप्‍पणियां काहे हटा दी। इ लोकतंत्र की जमात में शामिल हो जाओ कामरेडपना छोड़कर। सब को अपनी बात रखने दो मंच पर। 25 January, 2008 3:49 PM राजीव जैन Rajeev Jain said... एक नया सिलसिला शुरू करने के लिए शुक्रिया। और यशवंतजी ने इतनी बेबाकी से अपनी बात कही काबिलेगौर है। जो भी है आज नेट यूज करने वाला लगभग हर पत्रकार भडास के बारे में जानता है। यही उनकी सफलता है। 25 January, 2008 3:59 PM Ramkrishna Dongre said... niral haiashish jee ka andaz...aapke is silsile ka koi javab nahin. yashvant jee kahte vahi hai jo dil me hota hai. unme sahajta bhi hai aur bebaki bhi... bahut hi aachchha laga... badhai 25 January, 2008 4:13 PM Dr.Rupesh Shrivastava said... सुंदर है यशवंत दादा जैसे मस्त कलंदर का साक्षात्कार ;उनका फ़क्क्ड़पन ही उनकी खूबसूरती है। 25 January, 2008 4:14 PM Dr.Rupesh Shrivastava said... अत्यंत सुन्दर है यह साक्षात्कार कुल मिला कर । 25 January, 2008 4:15 PM अंकित माथुर said... आशीष के अनूठे अंदाज़ का तो मै काफ़ी समयसे कायल हूं ही, साथ ही नये आईडियों कोविज़ुअलाइज़ करने के बाद उन्हे मैटीरियलाईज़कर के इम्प्लीमेण्ट करना वाकई तारीफ़के काबिल है। इन्टर्व्यू की पहली कडी़ बेहद पसंद आई, आशा है, आगे भी आपअपने मनोरथ में सफ़ल हों।और आशीष भाई, जो दो विवादास्पद टिप्पणियांआपने हटा दी थीं उनका मजमून क्या था?धन्यवाद...अंकित माथुर... 25 January, 2008 7:27 PM अविनाश वाचस्पति said... बोल हल्ला अपनेनाम को सार्थककरने के लियेजो कुछ कर रहा है वो तोउसका नामभी कह रहा है.पर ये हल्ले वालालल्ला कहीं मुझपर ही हल्ला नबोल दे बोल दे तो बोल देकोई गल न ?मुझे तो टिप्पणी के लिये इस समयकोई और तुक नमिली, बजरंगवलीकरेगा भली. 25 January, 2008 10:32 PM neelima sukhija arora said... ashish is naye style ke liye badhai. 29 January, 2008 8:06 PM neelima sukhija arora said... ashish is naye style ke liye badhai.

आइये हम संगीता की ऐसे मदद करें....

संगीता बहन तुम्हे तुम्हारी खुशी छीन कर देंगे हम...हिम्मत रखो सब साथ हैं. भडासी सथिओं,वरिष्ठों,विश्व के सबसे बड़े हिन्दी कम्यूनिटी ब्लॉग''भडास'' पर पधारे तमाम बुद्धिजीवी पाठकों। संगीता की कहानी उसी की जुबानी को आप तक पहुंचाने का उद्देश्य उसे न्याय दिलाने की एक सामुहिक कोशिश ही नही बल्कि समाज के समक्ष एक उदाहरण भी प्रस्तुत करना था। पंकज पराशर सर ने सूचित किया की इस सम्बन्ध में उन्होंने व्यक्तिगत रूचि ले कर किरण बेदी को भी वस्तुइस्थिति से अवगत करवा दिया है और महिला आयोग को भी जानकारी दे दी गयी है। संगीता को सम्मानजनक जिन्दगी कैसे लौटाया जाए इस प्रश्न की ओर हम सबों को अपना ध्यान आकृष्ट करना चाहिए। संगीता से वार्तालाप के दौरान उसकी पुरी व्यथा-कथा सुनने के बाद जी में आया की इस नारी को सलाम करूँ,हिन्दुस्तान की सभ्यता संस्कृति को अपने आँचल के छाँव में छिपाए इस जीवंत देवी के चरण स्पर्श कर लूँ, इसकी सहनशीलता से प्रेरणा लूँ,इसके धैर्य को धारण करूँ। जिस पति ने अपने हाथ से मांग में लगे सिंदूर को धो दिया ,जिस पति ने जीते जी विधवा बनने का दृश्य दिखा दिया देखिये इस भारतीय नारी के समर्पण को आज भी अपने मांग में उसी पति के सुहाग को लगा कर आयी है ,पतिपरायानता के इस नमूने ने हिला कर रख दिया। हिम्मत रखो संगीताबहन ,कलम की कसम तुम्हे तुम्हारा हक़ हम जरुर दिलवाएंगे। अब तनी टेरेक चेंज करते हैं। रात में खा-पी कर अखबार ले कर बैठे थे की मोतिहारी की एक ख़बर ने चौंका दिया और पढने के बाद लगा की संगीता को न्याय जरुर मिलेगा,बस हम सारे भडासी को एक साथ जोर लगा देना है। तो ख़बर इ था की पाँच बच्चों का एक बाप चुतिया साला ,ढकरा हाई स्कूल का एगो मास्टर छौरी के पढाते-पढाते कामसूत्र पढा दिया। अब दे दादा की ले दादा॥ देखो इस गुरु को ...इस मास्टर को देखो इ का देश के लिए अनुकरण पेश करेगा ,इ सार लोग गांड मार रहा है संस्कार और इज्जत के माप दंडों को। इ का देश के लिए ,शिक्षा के लिए काज करेगा ,ऐसन दोग्लिस मानसिकता की शिनाख्त कर इनको सजा जरुर मिलनी चाहिए.इ भोंसरी लोग दु इंची के फेर में सब परिवार,समाज का जीना हराम कर देते हैं। दु इंची के फेर में ऐसे लोग सब कुछ चौपट कर देते हैं ये साले लोग तो इनको गाली क्या सामने आयें तो गांड में कदीमा ठोंक देना चाहिए इनको। लेकिन चंदेषर वाले मामले में पुलिस की सक्रियता के बाद संगीता के लिए एक उम्मीद जगी है,वैसे किरण बेदी क्या पहल करती हैं इसका आभास मुन्नवर आपा ने पहले ही दे दिया है। संगीता की तरह उस मास्तार्वा की पत्नी किशोरी देवी एक विकलांग पुत्र और चार जवान बेतिओं को लेकर परित्यक्त सी जिन्दगी जीने को विवश थी,किशोरी देवी कब तक ऐसी जिन्दगी का बोझ उठाती,पहुँच गयी बाल बच्चों संग मोतिहारी के एस पी सुनील कुमार झा के पास । एस पी ने महिला की व्यथा कथा सुनकर त्वरित कार्रवाई की,अभी उ मास्टर जेल में चक्की में लण्ड घुसा रहा है बुरल ...हे रे कल उ छौरी के जेल भेज दीहें,मस्तारवा के मिजाज बमक बम बोल होए रिया होगा। तो ऐसे विक्षिप्तों को उसके करतूतों की सजा मिलना तो चाहिए ही पीड़ित को उचित न्याय और सम्मानजनक जीवन लौटाना भी हमारी प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। संगीता के मामले में पंकज दा ने तो ऊपर के अधिकारिओं तक बात पहुंचा ही दी है,डाक्टर साहब के आदेशानुसार परसों मैं संगीता को ले कर बेगुसराय के आरक्षी अधीक्षक अमित लोधा के पास जा रहा हुं । मैंने अन्तिम बार संगीता से कहा की दीदी इ घर का मामला है,हम लोग मिल बैठ कर निपटा लेते हैं,आना थाना ,पुलिस ,कोर्ट कचहरी क्या जाओगी,जानते हैं मित्रों बमक गयी थी संगीता,उसकी आंखों में ज्वाला धधक रही थी,ऐसा लगता था जैसे वह महिला सचमुच दर्द के गर्म सलाखों से दाग दी गयी लगती थी। उसने बार-बार यही दुहराया की उस रावण को मैंने और मेरे अबोधों ने बार-बार झेला है,बुरी तरह झेला है...मुझे और कुछ नही चाहिए भैया बस मेरी औलाद को जीने का हक़ ला कर दे दो। मैं भीख मांग कर भी इन बच्चों का परवरिश कर लुंगी लेकिन उस रावण की लंका में कदम नही रखूंगी। वार्ता लाप के दौरान ही संगीता ने बताया की उसके ससुर तिल्रथ के रतन सिंह के पुरोहित भी हैं। उनके यहाँ पूजा पाठ कराने जाते हैं। रतन सिंह बेगुसराय की बड़ी शाख्शियत हैं,साम-दाम-दंड-भेद सब निति पर चलने वाले पूर्व जिला परिषद् अध्यक्ष रतन सिंह के गाँव से जुडा मामला होने के कारण उन्हें भी इस मामले में व्यक्तिगत रूचि लेकर सामाजिक स्तर पर सुलझाने का प्रयास जरुर करना चाहिए। आप तमाम भडासी साथिओं से अपील है की कृपया संगीता और उसके अबोध बच्चे के लिए सिर्फ़ एक छोटा सा काम कर दो। बस आपको करना यह है की निचे जो इ मेल एड्रेस दिया गया है उस पर अगर दो सौ साथी भी संगीता की सहायता के लिए सिर्फ़ यह लिख कर भेज दो की ''इस सुहागिन विधवा की मदद कीजिये एस पी साहब। तो देख लेना हिन्दुस्तान की धरती पर यह भी एक इतिहास बन जाएगा की न जान न पहचान लेकिन ग़मों के दौर में हम कैसे दिल में समा जाते हैं। तो भाडासिओं आओ एक जोर लगाओ अन्याय और अत्याचार की इमारत ख़ुद बा ख़ुद गिर जाएगी,इस कम्यूनिटी ब्लॉग के माध्यम से शासन -प्रशासन को दिखला दो अपनी ताकत,अपना वजूद। एक उदाहरण दो दुनिया को की हम दूर रहकर भी सचमुच कितने पास हैं। इस प्रक्रिया के बाद हम संगीता के बच्चों के लिए और उसके पुनर्वास के लिए किसी संस्था से सम्पर्क करेंगे। फिलहाल संगीता की यह मदद तो कीजिये हुजुर..... email:-sp-begusarai-bih@nic.in amitlodha7@rediffmail.com जय भडासजय यशवंतमनीष राज बेगुसराय Posted by MANISH RAJ 3 comments: GARGI SINGH said... ham sab sangita ke sath hain. 30/3/08 1:13 PM GARGI SINGH said... ham sab sangita ke sath hain. 30/3/08 1:13 PM रजनीश के झा said... MAnish Bhai mail to hum karenge hi karenge or abhi kar rahe hain, parantu or bhi seva ke liye satat tatpar hain, didi ko insaf milna hi chahiye.Jai Bhadas

Sunday, March 30, 2008

गुड मोर्निंग मैडम तनी हमको कम्पूटर सिखाओ न

संगीता की मदद के लिए ये लोग खुलकर सामने आए.....

12 comments: Anonymous said... mera koi blog account nahi hai.begusarai ka hun,bhadas ko roj padhta hun.manish ji ki bebak lekhni ko varshon ko janta hun .yhan bhi garda chhora die hain bhai ji.divakar sharmabarauni,begusarai 28/3/08 1:34 PM suresh neerav said... मनीष राज आपका रिपोताज पढ़ा। समाज का बेहद कड़वा और जघन्य सच जिस बेबाकी और निडरता के साथ आपने उघाड़ा है,वह काबिले तारीफ है। भाई मेरी बधाई।सुरेश नीरव 28/3/08 3:41 PM हरे प्रकाश उपाध्याय said... yar gajab hai...batana bhaee kya kiya jae..? 28/3/08 4:25 PM Pankaj Parashar said... बेहद हौलनाक। हिलाकर रख देनेवाला ऐसा सच जो फिल्म की तरह आंखों के आगे चलता रहा और रौंगटे खड़े हो गए। बताइए कि ऐसा क्या जाए जिससे यह मामला बेहतर और सम्मानजनक ढंग से हल हो। 28/3/08 4:34 PM MANISH RAJ said... ISI SAMASYA KA HAL HI TO KHOJ RAHA HUN PANKAJ DADA,HARE BHAIYAA ,NIRAV DA SAHIT SABHI BHADASI JARUR EK NISHKARSH TALAASHEIN.KYUNKI VAH MAHILA AUR USKE BACHCHE KI JINDGI KO SACHMUCH SAHAANUBHUTI KI JARURAT HAI. 28/3/08 6:27 PM डा०रूपेश श्रीवास्तव said... मनीष भाई,संगीता बहन से कहिए कि अब वो किसी हाल में अपने आप को अकेला न महसूस करें हम सब उनकी इस लड़ाई में उनके साथ हैं और उन्हें किसी सिम्पैथी,एलोपैथी या होम्योपैथी की जरूरत नहीं है बल्कि उनके साथ जाइए और जिले पुलिस उच्चाधिकारियों को साथ लाकर उस हरामी के पिछवाड़े में खजूर और ताड़ के पेड़ घुसा दीजिये बांस के मान का नहीं है वो सुअर का पिल्ला । अगर पुलिस साथ आने में आनाकानी करे तो खुद ही कलम कागज एक किनारे रख कर पहले उसे लतिया दीजिये तब तो पुलिस आयेगी हां होगा बस इतना कि झगड़ा संगीता बहन की तरफ़ से मुड़कर आप की ओर आ जायेगा पर इसकी परवाह मत करिये । पिछले तीन दिन से यशवंत दादा और हम लोग मुम्बापुरी के हरामियों से(सज्जनों से भी)मिल रहे थे तो समय नहीं मिला कि नेट पर आ सकूं हमारी तो भविष्य की योजना ही यही है कि एक भड़ासी-ट्रबल-शूटर कम्युनिटी बनाई जाए कि अगर स्याही से लिखने से काम न चले तो स्याही थूथुन पर पोत दी जाए और अगर इससे भी काम न चले तो पिछवाड़े कलम घुसा दी जाए और अगर इससे भी काम न हो तो खुद सिर में तेल लगा कर उसके पीछे घुस जाएं और साले का वजूद आत्मा तक हिला कर आएं ताकि अगले कई जन्मों तक याद रहे कि भड़ासियों से पंगा लिया था । भड़ास के स्पोक्सपर्सन की हैसियत से आपको यह भी अधिकार है भाई कि आप यह सब कर सकें, हम हाथों से लिखते हैं और लातों से समझाते हैं। उस भाभी के भड़वे को भी जरा समझा दीजिये। मनीषा दीदी कह रही हैं कि अगर फिर भी न समझे तो वो उसे लाकर अपनी जमात में शामिल कर लेंगी और उसकी सुरसा भाभी को WWF के पहलवानों के पास भिजवाने के लिये चंदा करेंगी ताकि प्यासी आत्मा की प्यास पूरी तरह मिट जाए ।जय जय भड़ास 29/3/08 10:40 AM विनीत उत्पल said... manishjee, aap kiran bedi se sampark kar sakte hain. unhone is mamale me aik website bhee shuru kiya hai. vah jarur is mamle me aapko satik dish dengee. 29/3/08 11:19 AM sushant jha said... दिल दहलानेवाली घटना है...हम संगीता के साथ हैं... 29/3/08 12:32 PM Pankaj Parashar said... प्रिय भाई, मैंने किरण बेदी जी और केंद्रीय महिला आयोग को इस मामले की जानकारी दी है, राज्य महिला आयोग, पटना को भी इसके समाधान के तुरंत इनीशियेटिव लेना चाहिए। मुझे उम्मीद है इस समस्या का जरूर अच्छा और सम्मानजनक हल निकलना चाहिए। 29/3/08 12:57 PM मुनव्वर सुल्ताना said... मनीष भाई,इस देश में अनगिनत संगीताएं हैं क्या महिला आयोग में सब सूरदास और गांधारियां ही हैं ? इन संगीताओं को मदद के लिये भड़ास की शरण में क्यों आना पड़ता है ? ऐसे आयोग और अधिकारी आम जनता के लिए सुलभ क्यों नहीं हैं ? मुख्य समस्या तो ये है कि कानून है उसका पालन करने वाले और करवाने वाले लोग नहीं हैं वरना सब ठीक रहे । देखिए किरण बेदी क्या करती हैं.....भड़ास ज़िन्दाबाद 29/3/08 6:42 PM DEEPAK said... manish ji kya karoon . khagaria jaise jila men jahan internet sixty rs per hour aur vo bhi akela nahin chalane ka sart khair maine aapkee report ko padha aur man to kiya ki us aavara pati ko turat parbhaw se jail men band karvane ki muhim suroo karoon. lekin is ek sarabi pati ko sudharne se kam nahin banega . hamen us madhyayugin samajik mansikta se jakre samaj ko jagana hoga jahan pati ko parmeshwar ke nam par aurat ke saath kuchh karne ki aajadi hoti hai. aab yah chalne wala nahin. is larai ko aap aage badhain main saath hoon. kuchh bhraston ko pardaphas karna hai khagaria men jahan yojnaon men loot maacha hai. 29/3/08 9:30 PM rakhshanda said... Sangeeta ki aap beeti padh kar aankhon mein aansu aa gaye,ye kisi ek aorat ki daastaan nahi hai,village women ki zindgi aaj bhi jaanvaron se badtar hai...khuda kare usey jald insaaf mil sake...ek baat jo main Manish bhaiyaa se specially kahna chaahungi..aapke dil mein aisi bebas aor dukhi aorton ke liye jo dard hai wo taareef ke kabil hai,usey sataane vaalo ke liye dil betahasha gusaa aor nafrat mahsoos hoti hai lekin kya us ke zaroori hai ki ham aisi lang ka prayog karen?aap se request hai ki pls aisi bhasha se parhez karen...i know ki main aapki kaabliyat ke samne kuchh bhi nahi lekin main apne bhai se ek request to kar sakti hun na? 30/3/08 12:11 PM Post a Comment Newer Post Older Post Home Subscribe to: Post Comments (Atom)

यशवंत भइया की पहली हवाई यात्रा ,पहली मुलाकातें,उनकी बातें,वो ढेर सारी यादें उनकी ही जुबानी

दिल्ली-अहमदाबाद-मुंबईः पहली जहाज यात्रा, पहली मुलाकातें, उनकी बातें, वो ढेर सारी यादें...... तीन चार दिनों की यात्रा के बाद आज दोपहर दिल्ली पहुंचा तो भड़ास पर अंदर बाहर ढेर सारा पानी बह चुका था। अंदर माने इनबाक्स में मेल सैकड़ों की संख्या में पड़े थे और बाहर माने भड़ास पर ढेर सारी चीजें लिखी पढ़ी कही जा चुकी थीं। मनीष की संगीता पर पोस्ट और उस पर प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि भड़ास दरअसल अब वाकई एक वैकल्पिक मीडिया का रूप लेता जा रहा है। पारंपरिक मीडिया जिन मुद्दों और बातों को छू तक नहीं सकता, भड़ास जैसे कम्युनिटी ब्लाग पर वे बातें पूरी बेबाकी से आती हैं और लोगों को सोचने व करने पर मजबूर कर देती हैं। लगे रहिए दोस्तों, ऐसे ही छोटी चीजें कभी बड़ी बना करती हैं और ऐसे ही छोटी चीजें कभी बड़े आंदोलन का रूप ले लिया करती हैं। इस दौरान मुश्किलें भी हजार आती हैं लेकिन अगर माद्दा है तो फिर फौलादी सीने तूफानों से टकराया करते हैं। कीप इट अप। मनीष से प्रेरणा लेकर हिंदी के ढेर सारे पट्ठों, शेरों, शूरवीरों, बहादुरों को अपनी चुप्पी तोड़कर हिंदी के विजय के इस दौर में आनलाइन माध्यम में हिंदी में लिखना और अपनी न कही गई बातों को प्रकाशित करना शुरू कर देना चाहिए। भड़ास आपकी मदद के लिए तैयार है। मैंने अपनी पहली हवाई यात्रा उसी रोमांच के साथ की जिस रोमांच के साथ मैंने जीवन में पहली बार साइकिल चलाना सीखा था। जहाज पर बैठने के बाद मेरी गुर्दन मुड़ी ही रही, नीचे धरती को एकटक देखता और निहारता रहा। किस तरह धरती की हर चीज धीरे धीरे छोटी होते होते एकदम से अदृश्य हो गईं और बादलों का संसार धरती पर कब्जा जमाए दिखा। बड़े बड़े शहर यूं नजर आए जैसे चींटी। नदियां, पहाड़, शहर, गांव सब एक ऊंचाई पर आने के बाद एकाकार हो गए और सब कुछ धुआं धुआं बादल बादल धूसर धूसर मिट्टी मिट्टी पानी पानी प्रकाश प्रकाश आसमान आसमान के रूप में दिखने लगा। मुझे जो निजी तौर पर दिक्कतें आईं उसे जरूर बताना चाहूंगा। मैं सीट बेल्ट बांध नहीं पाया। जिधर से बांधने की कोशिश कर रहा था वो उल्टा वाला साइड था। आखिरकार पसीना पोंछते हुए मैंने अपने पड़ोसी से पूछा...भइया, इ बेल्टवा कइसे बांधा जाता है...। उस उन बंधु ने अपने चेहरे पर बिना यह शो कि लगता है तुम देहाती हो, पूरे सम्मान के साथ फटाक से मेरा बेल्ट बांध दिया और इस कदर फिर अपने काम में डूब गये जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। मैं अपेक्षा यह कर रहा था कि वो थोड़ा मुस्करायेंगे, पूछेंगे, समझायेंगे....पर ऐसा कुछ न हुआ। शरीफ आदमी थे। दूसरी दिक्कत ये रही कि सुबह पांच छह गिलास पानी पीने के आदत के चलते जब एयरपोर्ट पर पहुंचा तो सू सू करने की स्थिति बन गई थी लेकिन मैं इसलिए ज्यादा दाएं बाएं नहीं घूमा टहला कि कहीं कोई समझ न ले कि इ ससुरा पहली बार आया लगता है...बोले तो मन ही मन तय कर लिया था कि अबकी एक अच्छे देहाती की तरह चुपचाप सब भांपना देखना है और जहाज पर चढ़कर यात्रा कर के नीचे उतर लेना है। अगली बार दो कदम और आगे बढ़ेंगे और मूतेंगे भी। तो सू सू करने का जो प्रेशर बना था उसे हवाई जहाज में भी दबाए रहा। हालांकि मैं देख रहा था कि भाई लोग किस तरह उठ उठ कर टायलेट की तरफ जा रहे थे पर मैंने रिस्क नहीं लिया। दूसरे, उठने पर नीचे वाला सीन, धरती वाला दृश्य मिस करने का भी रिस्क था, सो अहमदाबाद में एरपोटर् के बाहर एक कोना पकड़कर हलका हुआ। अहमदाबाद में आफिस का काम निपटाने के बाद वरिष्ठ ब्लागर संजय बेंगाणी से मिलने उनके अड्डे पहुंचा। संजय और पंकज जी ने बेहद प्रेम से अपनी टिफिन से खाना खिलाया और देर तक बतियाये। मैं बेहद सहज और अपनापा महसूस करता रहा। लगा, जैसे कि अभी दिल्ली में ही हूं, अपने घर के आसपास। संजय जी ने कुछ बातें इस मुलाकात के बारे में अपने ब्लाग पर कहीं हैं जिसे आप पढ़ व देख सकते हैं। उन्होंने विस्तार से लिखने के बारे में मुझे कहा है पर मैं क्या लिखूं, कुछ सूझ नहीं रहा, सिवाय इसके कि हिंदी ब्लागिंग ने हम अपरिचितों को इतना परिचित करा दिया है कि अब कोई शहर बेगाना, अनजाना नहीं लगता। हर शहर में अपने लोग मिल जाते हैं। और ये अपने लोग ही हैं जो पूरी दुनिया में फैले हैं, बस संजय पंकज की तरह हम सभी अपनी हिंदी और अपने हिंदी वालों पर गर्व करना शुरू कर दें, लिखना शुरू कर दें, देखिए...जमाना अपना है। संजय जी से मिलने के बाद सुभाष भदौरिया जी का फोन नंबर पता कराया। और सफलता भी मिली। कानपुर आईनेक्स्ट के अपने दद्दा अनिल सिन्हा जी ने तुरंत मेरी मदद की और जाने कहां से डा. सुभाष भदौरिया का मोबाइल नंबर मुझे उपलब्ध कराया। डाक्टर साहब को फोन किया तो वे अहमदाबाद से बाहर एक कालेज में परीक्षा कराने में जुटे थे। उन्होंने वादा किया कि परीक्षा खत्म होते ही वे उस बस के पास पहुंच जाएंगे जिससे मुझे मुंबई जाना था। और डाक्टर साहब वादे के मुताबिक पहुंचे भी। डा. सुभाष भदौरिया, जिन्हें मुख्य धारा के ब्लागरों ने जाने क्या क्या कहा है और जाने किस किस तरीके से परेशान किया है, ये किस्सा पुराना है पर मैं तो हमेशा से डाक्टर साहब को एक बेहद सहज और सच्चा इंसान मानता रहा हूं। तभी तो डाक्टर साहब सच बोलकर जमाने भर के गम उठाते रहे हैं। डाक्टर साहब से पल भर की मुलाकात रही पर इस मुलाकात को जी लेने और कैद कर लेने की उनकी सहृदय बेचैनी ने मुझे भाव विभोर कर दिया। ये कैसे अनजाने रिश्ते होते हैं, जिनमें दो लोग अपने आप एक दूजे को चाहने लगते हैं। डाक्टर साहब ड्राइवर को पांच मिनट और रुकने की विनती करते रहे पर ड्राइवर किसी विलने की तरह ना में सिर हिलाकर गाड़ी बढ़ाने लगा, तब मुझे भी मजबूरन बाय बाय कहते हुए बस में घुसना पड़ा। डाक्टर साहब से पल भर की मुलाकात ढेर सारी यादें दे गईं। उनसे फिर मिलने का वादा है। मुंबई पहुंचा तो सीधे अपने अड्डे डाक्टर रूपेश के यहां पहुंचा। डाक्टर साहब ने अपनी फोटो तो कभी भड़ास या इधर उधर डाली नहीं सो उनकी शक्ल को लेकर मैंने ढेरों कल्पनाएं कर रखी थीं। पर वो तो निकले बेहद हैंडसम नौजवान। गठीला और योगीला शरीर। इलाके के यंग एंग्री मैन। कोई बार-वार नहीं चलना चाहिए। विकास की किसी योजना में कोई धांधली नहीं होनी चाहिए। ढेरों सच्चे पंगे ले रखे हैं डाक्टर साहब ने अपने इलाके में। पनवेल में उनके आवास पर रुका तो डाक्टर साहब के मुंबई भड़ासी ब्रांच के सारे कुनबे से मुलाकात हुई। बच्चों सी मुनव्वर आपा, कोमल हृदय और सुंदर व्यक्तित्व की स्वामिनी मनीषा दीदी, अनुभवों और सोच के धनी रूपेश जी के बड़े भाई भूपेश जी....। डाक्टर रुपेश के साथ ही मुंबई को छान मारा। वो भी लोकल ट्रेन के भीड़ भरे डिब्बे में नहीं बल्कि लोकल ट्रेन को चलाने वाले ड्राइवरों की केबिन में ससम्मान बैठकर। इसे कहते हैं डाक्टर रुपेश का जलवा। ड्राइवरों से डाक्टर साहब यूं मराठी में बतियाते कि जैसे कभी प्रतापगढ़ में पैदा ही नहीं हुए हों बल्कि जन्मना मराठियन महाराष्ट्रियन हों। डाक्टर रुपेश के साथ ही दो वरिष्ठ ब्लागरों लोकमंच वाले शशि सिंह और बतंगड़ वाले हर्षवर्धन से मुलाकात हुई। साथ में अपने आफिस के वरिष्ठ साथी रंजन श्रीवास्तव जी भी थे। लोवर परेल के कैफे काफी डे में हाट डाग रोल खाते और लेमन डेमन पीते हुए इहां से उहां तक खूब बतियाया गया। शशि सिंह आजकल वोडाफोन में मैनजेर हैं। मैं इस बात का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि चिरकुट माइंडसेट वाले पत्रकार जान लें कि हिंदी पत्रकार अब नाकाबिल नहीं रहा बल्कि वो अपनी काबिलियत सिर्फ कलम की कथित मजबूरी के जरिए नहीं बल्कि बिजनेस और मार्केटिंग जैसे आधुनिक दुनिया के रहस्यों को सुलझाने के जरिए कर रहा है। शशि सिंह हमेशा से मेरे लिए एक समझने वाली चीज रहे हैं, उत्साह से लबालब व्यक्तित्व ऊर्जा से भरी सोच, इंटरप्रेन्योर माइंडसेट का मालिक, कुछ अलग करने रचने जीने सीखने को हमेशा तत्पर रहने वाला युवा......। शशि सिंह से ये मेरी दूसरी मुलाकात थी और हर्षवर्धन जी से पहली। हर्षवर्धन जी के बारे में मेरी सोच ये थी कि वो दिल्ली में ही किसी न्यूज चैनल में कार्यरत हैं पर वो निकले मुंबइया। इन दोनों पूरबिहों से मिलने बतियाने के बाद अगले दिन एक भयंकर वाली ब्लागर मीट हुई। छात्र संगठन पीएसओ उर्फ आइसा के पुराने धुरंधरों दिग्गजों जिन्होंने अपने जमाने में संस्कृति से लेकर राजनीति तक को नए सिरे से समझने समझाने को क्रम को बखूबी अंजाम दिया था, अब मुंबई के भिन्न कोनों में रहते जीते लिखते सोचते हैं। इन सभी से एक साथ मुलाकात हो जाए, मैंने सोचा भी न था। इसके पीछे धारणा बस यही थी कि हम लंठ भड़ास वाले, कच्ची उम्र व सोच वाले, इन धुरंधरों के पासंग भी फिट नहीं बैठते तो ये लिफ्त क्यों मारेंगे। पर मेरी सोच मनगढ़ंत साबित हुई। वरिष्ट ब्लागर प्रमोद सिंह ने अभय तिवारी जी के घर मुलाकात तय कर दी तो मैंने लगे हाथ ढेर सारे परिचितों को वहां पहुंचने के लिए न्योत दिया। स्क्रिट राइटर सुमित अरोड़ा, डा. रुपेश और मैं तो उधर से अभय तिवारी जी, प्रमोद सिंह, अनिल रघुराज, बोधिसत्व, उदय यादव आदि थे। तीन बजे से बतकही शुरू हुई तो जाने कब पांच छह बज गया, पता ही नहीं चला। इतनी बड़ी मुंबई में एक जगह इतने सारे ब्लागरों और साथियों का इकट्ठा हो जाना मेरे लिए सपने सरीखा था। जीवन, दर्शन, हिंदी पट्टी, सोच, संवेदना, ब्लागिंग, एग्रीगेटर, निजी, सार्वजनिक, विवाद, मौलिकता, लेखन, व्यक्तित्तव, पहचान, हरामीपन...जैसे ढेरों विषयों से टकराते बूझते आखिर में भड़ास पर चर्चा ठहरी। साथी लोगों ने लतियाया, धोया, सिखाया, समझाया तो मैंने भी अपनी पेले रखी और उनकी सुनने समझने की मुद्रा बनाए रखी। इन लोगों की ढेर सारी बातों को मैं अमल करने लायक मानता हूं और इस पर कोशिश पहले ही शुरू कर दी गई है, आगे और भी कोशिशें होंगी। और हां, ये बता दूं कि मुंबई के इन सभी लोगों से मेरी पहली मुलाकात थी, सिवाय सुमित अरोड़ा के जो मेरठ से मेरे साथी रहे हैं। प्रमोद सिंह की क्या पर्सनाल्टी है भाई, यूं बड़ी बड़ी मूंछें, गब्बर सिंह माफिक, भर पूरा चेहरा, ठाकुर माफिक, देह पर कुर्ता पाजामा क्रांतिकारियों की माफिक....जय हो....:)। जब आप प्रमोद सिंह के लिखे को पढ़ेंगे तो दूसरी ही तस्वीर उभरती है जिसे लेकर मैं मुंबई पहुंचा था। अभय तिवारी जी, सबसे दुबले पतले, पर सबसे गुस्सैल, क्या क्लास ली भाई ने मेरी, भड़ास और ब्लागवाणी विवाद पर:)। बोधिसत्व जी...अरे बाप रे...छह फुटा आदमी, बिलकुल हष्ट पुष्ट जैसे राष्ट्रपति के प्रधान अंगरक्षक, जैसे सीमा सुरक्षा बल के कमांडर, जैसे दुष्टों के दलन को आए महामानव....कहीं से कवि नहीं नजर आए:)। अनिल रघुराज जी, सकुचाए, चुप्पा, विनम्र, सहज.....बोलेंगे तो धारधार वरना चुप रहेंगे:) और इन सभी की खबर ली डाक्टर रुपेश ने, नाड़ी नब्ज टटोलकर:) किसी की वात उठी हुई थी तो किसी की पित्त। अब ये भड़ासी डाक्टर और आयुर्वेद का मास्टर डाक्टर रुपेश श्रीवास्तव इन मुंबइया ब्लागरों की नब्ज हमेशा देखता रहेगा ताकि कभी उंच नीच न हो जाए:)उदय यादव जी के साथ मैं पार्टी के दिनों बनारस में काफी कुछ सीखा है, उनसे मिलना बारह पंद्रह साल बाद हो रहा था पर उदय भाई के व्यक्तित्व में कोई खास बदलाव नहीं। वही गठीला शरीर, वही मुस्कान, वही सहजता।पहली रात डाक्टर रुपेश के पनवेल वाले घर में गुजारी तो दूसरी रात सुमित अरोड़ा के यहां, लोखंडवाला इलाके में। डाक्टर रुपेश के यहां मनीषा दीदी ने बड़े प्यार से मछली पकाई थी। चूंकि डाक्टर साहब खुद शुद्ध शाकाहारी और मांस मदिरा से दूर रहने वाले प्राणी हैं तो मछली पकाने का उपक्रम मनीषा दीदी ने मुनव्वर सुल्ताना आपा के घर पर किया। दूसरी रात सुमित अरोड़ा के यहां पहूंचा तो भाई ने पृथ्वी थिएटर में लगातार बीमार नामक (अगर नाम न भूल रहा हूं तो) नाटक के शो के टिकट बुक करा लिए थे। इसी दौरान अजय ब्रह्मात्मज जी का फोन आ गया। यहां मैं बता दूं कि अभय तिवारी जी के यहां आने के लिए मैंने वमल वर्मा जी, आशीष महर्षि जी, अजय ब्रह्मात्मज जी को भी संदेश भेजा था पर ये तीनों अपनी व्यस्तताओं की वजह से समय नहीं निकाल पाए। तीनों ही लोगों के फोन या एसएमएस आए कि वे कोशिश करके भी उस टाइम पर उस जगह पहुंच नहीं पा रहे। तो अजय जी के फोन आने पर बात हुई तो पता चला कि सुमित के घर के ठीक सामने पत्थर मारने भर की दूरी पर (शब्द साभार अजय ब्रह्मात्मज) ही अजय जी का भी घर है। और जब मैं बीयर गटकने के बाद सुमित के बाथरूम से नहाधोकर निकला तो सामने अजय जी को सुमित व उनके दोस्तों से बतियाता पाया। धन्य हो मुंबई वालों का प्रेम। अजय जी से जानकारी मिली की वही नाटक देखने विभा भाभी जी भी जा रही है। अगली सुबह नाश्ते पर अजय जी के घर आने का वादा कर मैं सुमित के साथ नाटक देखने निकल गया। इंटरवल में विभा जी ने खुद ही पकड़ लिया, आप यशवंत जी हैं ना....। मैंने मसाला मुंह में घुलासा हुआ था और एक अपिरिचित जगह पर एकदम से किसी महिला के इस तरह मुझे पहचान लेने से एकदम अकबकाया मैं वो पूरा मसाला गटक गया और फिर तुंरत बोल पड़ा...जी मैं ही हूं। तब भाभी जी ने बताया कि वो विभा हैं और अजय जी ने उन्हें मेरी हुलिया फोन पर बता दी थी। और साहब, मालूम है, कपड़ा कौन पहना था, हरे राम हरे कृष्णा वाला कुरता जो ऋषिकेश में घूमने के दौरान खरीदा था। सो, उस दर्शक वर्ग में एकमात्र मैं आदमी थी जो एकदम से हरा हरा नजर आ रहा था। अगली सुबह देर से नींद खुली और देर से अजय जी के घर पहुंचे। तोसी कोसी का नाम ब्लागिंग के जरिए मेरी जुबान पर पहले से ही था। तोषी तो लाहौर में हैं, कोसी एकदिन पहले ही हाईस्कूल की परीक्षा देकर आजाद पंछी की माफिक मुस्करा रही थीं। विभा भाभी को प्रमोशन मिला था और उनका बर्थ डे भी था, अजय जी को पुरस्कार लेने का दिन भी वही थी, एक साथ एक ही दिन ढेर सारी खुशियां जश्न उत्सव मनाने का मौका....। ईश्वर ये खुशी बनाए रखे, सबको दे, इसी तरह। गरम गरम पूड़ियां और छोला और सब्जी और चटनी और पापड़ और .....। गले तक नाश्ता किया बोले तो पूरा भोजन ही कर लिया। इस चार दिनी यात्रा का वृतांत कमोबेश यही है। आशीष महर्षि ने संदेश भेजा कि मिलने के लिए समय न निकाल पाने के लिए वे माफी चाहते हैं.......अरे भाया, इसमें क्षमा जैसी क्या बात आ गई यार, जिंदी रहे तो जरूर मिलेंगे भाया, दिल तो अपन लोग का मिला ही हुआ है, फिजिकल डिस्टेंस का आज के युग में कोई मतलब नहीं है। तो डाक्टर रूपेश जी, मैंने यात्रा की समरी रख दी। कई चीजें छूट गई होंगी, कई नाम भूल गए होंगे, कई प्रसंग अनुल्लिखत होंगे.....प्लीज....उन कड़ियों को आप जोड़ दीजिएगा, एक नई पोस्ट डालकर। अंत में, आप सभी हिंदी ब्लागर दोस्तों को, जो भारत से लेकर दुनिया भर के देशों में फैले हुए हैं, दिल से आभार के कहना चाहूंगा कि आप और हम अलग अलग होकर भी जब मिलते हैं तो यूं परिचित लगते हैं जैसे कभी अपिरचय था ही नहीं। मैं इस पूरे घटनाक्रम से अभिभूत हूं। मुंबई जाने की सोचकर कभी फटा करती थी, वहां कौन है तेरा.....बर्तन माजना होगा, धक्के खाना होगा, कुचलकर मर जाएगा.....टाइप की बातें बताई जाती थीं। और जब पहली बार मुंबई गया तो लगा ही नहीं ये शहर दिल्ली से अलग है, परिचय के मामले में, जीने के मामले में, सहजता के मामले में, रिश्तों के मामले में...। और ये सब है हिंदी ब्लागिंग की बदौलत। मा बदौलत, यह दस्तूर कायम रहे.....।जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 2 comments Labels: , , , , , ,

Monday, March 17, 2008

डाक्टर रुपेश जी ने भडास पर यह खुश खबरी दी

खुश खबरी है भाडासिओं अरे खुशखबरी है सारे भड़ासियों के लिये । जिन्दगी भी कैसे-कैसे शेड्स दिखाती है हर पल कभी हम उनके प्रभाव में आकर रोते हैं दुखी होते हैं परेशान रहते हैं और वहीं अगले ही पल कुछ ऐसा हो जाता है कि बस बेज़ार बदरंग सी हुई जिन्दगी में इन्द्रधनुष उतर आता है । अरे साले सब सोच रहे होंगे कि क्या खुशखबरी है ये नालायक बताता भी नहीं ,अपने भयंकर भड़ासी भाई मनीषराज की मेहनत रंग लाई अभी उनसे बात हुई तो बताया कि १:४५ दोपहर में बिटिया हुई है । सारे भड़ास परिवार की ओर से बिट्टी रानी के आगमन की हार्दिक शुभकामनाएं । बिटिया और बहूरानी दोनो स्वस्थ हैं ,प्रसव सामान्य था ,गुड़िया का वजन पूछा कितना है तो मनीष भाई बोले कि अभी डाक्टर अंदर हैं पता नहीं तो मैंने कहा कि अरे अंदर घुस जाओ और उठा कर देख लो और डाक्टरों को बोलो कि सालों बीबी मेरी बच्ची मेरी तुम्हारा रोल पूरा हो गया अब भाग जाओ ,तब तक बहन ने बताया कि बिट्टो तीन किलो की है । अरे नाचने का मन कर रहा है मेरा नयी बिटिया की अगवानी में । हम सब उनके उत्तम स्वास्थ्य और भविष्य की प्रार्थना करते हैं ।. मैंने उसका नाम फाल्गुन माह में आने के कारण फाल्गुनी बताया है बाकी दकियानूसी अंदाज में पोथी खोल कर बैठता हूं तो समझ में आयेगा । जै हो जै हो जै हो....... होली के गुलाबी रंग की एक मुट्ठी तो परमात्मा ने हम सब पर उछाल दी है........होली है..... Posted by डा०रूपेश श्रीवास्तव Labels: , , 18 comments: चंद्रभूषण said... मुबारक हो भाई मनीष! 14/3/08 2:38 PM यशवंत सिंह yashwant singh said... वाह, बिटिया रानी आई हैं, किस्मत की कुंजी लाई हैं, मनीष को बधाई है..... 14/3/08 2:41 PM Sanjeet Tripathi said... बधाई!!! 14/3/08 3:01 PM आशीष said... badhai ho ji 14/3/08 3:43 PM अबरार अहमद said... बधाई मनीष भाई 14/3/08 4:33 PM MANISH RAJ said... AJEEB KHUSHI HO RAHI HAI BETI KE CHCHAON ....ITNI DUR RAHKAR BHI HAM DILVALE EK DUSRE KE KITNE KARIB HOKE SUKH-DUKH KO BAANT RAHE HAIN....SACHMUCH SACHCHI JINDGI SHAAYAD YAHI HAI.SACHMUCH HAMARA KUNBAA DILVAALON KAA KUNBAA HAI,MATVAALON KA KUNBAA HAI...SHABD NAHI MIL RAHE HAIN KI KAISE AAP SABON KAA SHUKRIYAA ADAA KARUN. 14/3/08 4:42 PM rakhshanda said... CAGRATULATIONS for a little sweet doll...give my love to her...God bless her.. 14/3/08 5:06 PM अनिल भारद्वाज, लुधियाना said... बधाई मनीष 14/3/08 5:35 PM Pankaj Parashar said... Mubark Ho. 14/3/08 5:53 PM Ravishekhar said... Mubark Ho 14/3/08 6:32 PM शशिकान्‍त अवस्‍थी said... गुडि़या के आगमन की हार्दिक बधाई स्‍वीकारे मनीष भाई । भाभी जी सेहतमन्‍द और सब कुछ अच्‍छे ढ़गं से पूर्ण हुआ इसके लियें बाबा आनन्‍देश्‍वर जी को धन्‍यवाद ।कानपुर से शशिकान्‍त अवस्‍थी 14/3/08 7:37 PM आनंद said... बहुत बहुत बधाई हो। अब आप बच्‍चे नहीं रहे, बाप बन गए हैं। यह प्रमोशन कैसा लग रहा है?-आनंद 14/3/08 8:22 PM मुनव्वर सुल्ताना said... मनीष भाई,मुबारक हो भड़ास परिवार में सबसे छोटी भड़ासिन आ गयी है ,उसे हम सब की तरह सहज और सरल बनाए रखना । अल्लाहतआला से बहू और बिटिया के अच्छे स्वास्थ्य की दुआ करती हूं... 14/3/08 9:18 PM Siddharth Bhardwaj said... BADHAI HO MANISH JI!! 14/3/08 9:45 PM अंकित माथुर said... मनीष भाई, बधाई हो,साक्षात देवी रूपा लक्ष्मी के आपके घर पर पधारनेपर हार्दिक शुभकामनायें।अब सभी भडासियों से कह कर बिटिया के लिये एक अच्छे से नाम पर भी बहस हो जाये।हा हा हा!!!अंकित माथुर... 14/3/08 11:29 PM MANISH RAJ said... THANK YOU ANKIT BHAIYAA....CHALIYE SABSE PAHLE AAP HI BITIYAA KAA NAAM BATAAIYE.CHACHA JO THAHRE TO NAAM BHI TO AAP HI NA RAKHENGE.DOCTOR DADA NE TO ''FALGUNI'' NAAM RAKHNE KO KAHAA HAI.AAP KYAA KAHTE HAIN BHAAI JAAN.HAM JITNE BHADASEE HAIN SAB ALAG-ALAG NAAM SE PUKARENGE BITIYA RANI KO.KYA? 15/3/08 12:37 AM हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said... मनीष भाई,फाल्गुनी के नाम पर बहस मत करवाइये वरना ढाई सौ नाम हो जाएंगे और भड़ासी उसकी शादी तक आपस में बहस ही करते रहेंगे.... 15/3/08 11:54 AM गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' said... sirf shubh kaamanaaen deron badaaiyaan 15/3/08 11:00 PM

Thursday, March 13, 2008

''भडास'' के मोडेरेटर यशवंत सिंह पर हुआ कातिलाना हमला

साभार:-अरविंद मिश्रा (नया बरिस्ता) कुछ लोगों ने मशहूर पत्रकार एंव भड़ास के संपादक यशवंत सिंह पर कायरता पूर्ण तरीके से हमला किया है। एक गाड़ी में भर कर आये आधा दर्जन से ज्यादा लोगों ने अकेले यशवंत भाई साहब को लहूलुहान कर दिया। हमला उस समय किया गया जब वह नोएडा के सेक्टर-१८ स्थित एक रेस्टोरेंट से खाना खाकर बाहर निकल रहे थे। हमेशा दूसरे के चेहरे पर हंसी बिखेरने वाले भाई साहब पर हमला करके उन लोगों ने हिजड़ई पूर्ण काम किया है, लेकिन वो ये जान लें कि हम भड़ासी डर कर दुबकने वालों में से नहीं है। भाई साहब हम सब आपके साथ हैं ।।। प्रस्तुतकर्ता Arvind Mishra पर 9:34 PM 13 टिप्पणियाँ: visfot ने कहा… दुखद है. लेकिन लहुलुहान वाली स्थिति नहीं है. March 12, 2008 10:09 PM बेनामी ने कहा… मनीषा ने तो हमला नहीं करवा दिया March 12, 2008 10:26 PM manisha ने कहा… अविनाश भी हो सकता है March 12, 2008 10:27 PM अफ़लातून ने कहा… इस कायरतापूर्ण कार्रवाई के पीछे जो लोग हैं , उन्हें बेनकाब किया जाना चाहिए। इस कृत्य की निन्दा करता हूँ । March 12, 2008 10:29 PM अनिल रघुराज ने कहा… ये हमला निंदनीय है। हमला करनेवालों को बेनकाब करके सबक सिखाया जाना चाहिए। March 12, 2008 10:50 PM अविनाश ने कहा… यशवंत एक बहादुर इंसान हैं। उन पर हमला करने वालों ने अपनी कायरता ही प्रदर्शित की है। हम सब इस हमले की घोर भर्त्‍सना करते हैं। March 12, 2008 10:53 PM अविनाश ने कहा… संजय तिवारी जी ने लिखा है कि दुखद है, लेकिन लहूलुहान वाली स्थिति नहीं है। तो सबसे यशवंत जी कार का नंबर लेकर अनाम हमलावरों के खिलाफ एफआईआर करानी चाहिए। या नहीं तो ब्‍लॉग के जो उनके साथी हैं, उन्‍हें आगे बढ़ कर ये काम कराना चाहिए। March 12, 2008 11:04 PM हरे प्रकाश उपाध्याय ने कहा… avinash g, blog ke unke sathi hi kyon, kya aap dushman hai...mtbhed alg bat hai....aur aise mauke alg bat...yshvant bhaee bahadyr hain....hm jroor kuchh krenge...pahle pta to chle ye hmlavr kaun the...chahte kya hain? March 12, 2008 11:23 PM avinash ने कहा… हरे प्रकाश जी, ये आप पता नहीं करेंगे। ये पुलिस ही करेगी। आपलोगों को जाकर एफआईआर जरूर कराना चाहिए। और हां, बात बहुत गंभीर नहीं है - इसलिए मुझे घोषित तौर पर दुश्‍मन ही रहना चाहिए। आप लोग आगे बढें। March 12, 2008 11:31 PM डा०रूपेश श्रीवास्तव ने कहा… लहुलुहान का क्या अर्थ होता है? क्या कोई दिल्ली वाला भाई या बहन उन्हें देखने गया है । विस्फ़ोट करने वाले भाई को बराबर खबर है कि लहुलुहान नहीं हैं यानि कि रात में बारह बजे यशवंत दादा की पत्नी का दिमाग चल गया था जो मुझे फोन करा कि किसी ने इन्हें प्यार कर लिया है और इस लिये नाक-मुंह से खून आ रहा है नाक से काफ़ी देर तक खून बंद नहीं हो रहा था तब मैंने चंदू भाई को फोन किया । ये सिर्फ़ डर गये लोगों की हरकत है और इससे ज्यादा वे कर भी क्या सकते हैं कि कई लोग एक अकेले को मार लें....रही बात अविनाश की तो वो मेरे लिये बस एक अलग विचारधारा के मानने वाले है लेकिन वो खुद को दुश्मन मनवाने पर तुले हैं और अगर खुद को दुश्मन ही कह रहे हैं तो संदेह तो इन जनाब पर भी है क्यों न रिपोर्ट में जिन लोगों पर संदेह है उनमें इनका भी नाम शामिल किया जाए ,इन्हें तो नाम से मतलब कहीं भी हो.... March 12, 2008 11:40 PM vijayshankar ने कहा… कायरतापूर्ण कार्रवाई का जवाब पुलिसिया कार्रवाई ही हो सकती है. वैसे यशवंत जी अब और पुख्ता ब्लोगर हो गए. 'लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स' वाले कई सबसे पहले घटित चीजों का रिकॉर्ड रखते हैं. पता नहीं उनका ध्यान इस ठोक-पीट की तरफ गया है या नहीं. मुझे यशवंत जी से ईर्ष्या हो रही है कि हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में सर्वप्रथम पिटने का श्रेय यशवंत जी ले उड़े. फिर भी अनेकानेक बधाइयां! यहाँ अपन अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं. यशवंत जी की पिटाई करने वालों से मेरी अपील है कि वे मुझे भी पीट कर धन्य करें. दिलचस्पी हो तो पता-ठिकाना भिजवाता हूँ. बताएं, कहाँ भिजवाना है? March 12, 2008 11:42 PM मोहम्मद उमर रफ़ाई ने कहा… बच्चे लोग गंभीरता से शायद इनका मतलब मरणासन्न होने या मर जाने से होगा ,अल्लाह्तआला से एक इल्तजा है कि ऐसे छोटे और हल्के फुल्के हादसे अविनाश और संजय के साथ रोज करा दिया करे तब समझ में आएगा कि क्या गम्भीर और क्या नहीं । यशवंत का यश और बढ़ेगा । बाकी लोग भी इस बच्चे जैसा जिगर रखें तो देखो क्या क्या होता है । March 12, 2008 11:49 PM चंद्रभूषण ने कहा… कूल डाउन प्लीज। यशवंत ठीक हैं और थोड़ी देर में अपनी खैर-खबर भड़ास पर खुद ही देंगे। March 13, 2008 1:16 AM

Friday, March 7, 2008

इ लिजिए भडासी गिफ्ट और मिलिए इन टॉप भडासी भीडू लोगों से

भडास बोले तो बिंदास,भडास बोले तो सरल सहज सोझ टेढ़,भडास बोले तो नो कास्ट,नो धरम,नो सम्प्रदाय ,नो मूरख,नो विद्वान सिर्फ़ मनुष्य और मनुष्यता ओनली चिक्कन लाइफ जिसमें सिर्फ़ जी लेने की चाहत,सम्पूर्ण हो जाने का जोर,खोने की खुशी, पाने का गम मतलब कोई बेरेकर नही ,लाइफ साली कौनो नखरा दिखाए भिडू लोग कर लो दुनिया मुट्ठी में टाइप लाइफ जीने में यकीन करता है। अब सामने वाला इस अंदाज को पागलपन कहे तो कहे अपन लोग का नेचर ''खड़े लण्ड पर धोखा दे दिया'' वाला नही है भले ही रोज ख़ुद नए नए हथियारों से धोखा खाते रहे। तो भाई बहिन लोग,आज हम आपसे मिलवाने आए हैं एक पीओर भडासी से जो सच्चे अर्थों में भडासी हैं,फकीर हैं,पागल हैं,खत्तम हैं,लेकिन दम है कुछ ख़ास है जो आपको भी सोचने को बाध्य कर देगा की भिडू इ कौन टाइप का प्राणी है। इस प्राणी का नाम है डाक्टर लाल जी प्रसाद सिंह ,पटना के अति व्यस्त बोरिंग रोड इलाके में ''लाल जी साहित्य प्रकाशन'' जो घुमंतू गुल्गुलवा के माफिक बिहार के गाँवों की गली-गली में स्वरचित,स्वसम्पादित,स्वप्रकाषित पुस्तकों को घर-घर पहुंचाने में संलग्न हैं। मेहनत कश किसान मजदूरों,जमीन पर की इंसानी जज्बातों को उकेरने ,सामजिक समस्याओं के प्रति प्रतिरोध ,विरोध का अथक स्वर,अंधविश्वास को भगाने की मुहीम में शामिल यह व्यक्ति वास्तव में अजीब है। बक्सर में पैदा लिए और बनारस हिंदू विश्व विद्यालय से एम् ए करने के बाद लाल जी ने मंहगे प्रकाशक,महंगे लेखक,महंगी किताबों के स्थापित मान्यताओं को तोड़कर अपना भडासी स्टाइल अपनाया। इस भीडू ने रिक्शा चलाने वाले,सब्जी फल अंडा बेचने वाले,गाँव के मजदुर किसानों तक अपनी लिखी हुई ,ख़ुद की प्रकाशित लगभग दो सौ उपन्यास को ख़ुद जा जा कर पहुंचाया...''हनुमान जी की मस्जिद'',रसूल मियाँ की दुर्गा जी'' ''जिंदा लाशों का शहर'' ''हिन्दी के तालिवानी'' और ''हिंदू कबूतर मुस्लिम कबूतर'' जैसे सस्ते मगर दमदारपुस्तकों के पाठक लाल जी को अपना आदर्श मानते हैं। महंगे किताब,इंटरनेट ,अखबार जैसे साधनों से दूर इन पाठकों से बात कर के तो देखिये ये मोदी और गुजरात पर भी उतनी दृढ़ता से राय रखते हैं जितना सरकार के नीती और योजनाओं पर,हाँ ये अलग बात है की वे कर कुछ नही पाते हैं वैसे कर कौन रहा है जी>>>>> ''लाल जी प्रकाशन'' घूम घूम कर गाँव गाँव जा कर गरीबों में चेतना जगा रहा है ,सीधा सोझ भाषा में बता रहा है की देश इतना आगे जा रहा है,तुम लोग भी कोहबर से बाहर आओ ,शिक्षित बनो,मजबूत बनो,अंधविश्वास भगाओ मुख्यधारा में आओ। भले लाल जी के पेट में एक रोटी नही हो लेकिन उनका यह अभियान थकता नही है। वह कहते हैं की मेरी सामजिक दिलचस्पी के कारण माँ -बाप ,परिवार और रिश्तेदार नाराज रहते हैं फ़िर भी उत्साह बोले तो भडासी एस्टाइल रुके तो आख़िर कैसे? वे पटना में लगने वाले पुस्तक मेला में १९९६ से लगातार आ रहे हैं और पाठकों के प्रेम से अभिभूतबकौल लाल जी नफ़ा नुकसान उनके प्रेम और समर्पण के सामने कोई मायने नही रखता है। ऐसी बात नही है की देश में लाल जी ही अकेले ऐसे हैं,दिल्ली में रहने वाले जानते होंगे की वहाँ एक चाय वाला ख़ुद उपन्यास लिखता है और अपने निर्धारित पाठकों के बीच फेमस भी कम नही है। झारखंड के दुमका में ६८ वर्षीय गौरी शंकर जो पेशे से धोबी है और पिछले २१ वर्षों से ''दीन-दलित'' नामक अखबार निकाल रहा है ,लोगों को जगा रहा है,चिल्ला रहा है .वह इस्तरी के पैसे से परिवार चलता है और देखिये कार्य के प्रति समर्पण और कुछ हट के करने की उत्कट अभिलाषा की उसी आय में से पैसे बचाकर समाज को आलोकित करना चाहता है,प्रकाशित करना चाहता है। चित्रकूट और बांदा की दलित,कोल समुदाय की औरतें जो न तो स्कूल का मुंह भी देखि हैं और न ही किसी तरह की तालीम भी पायी है का जज्बा तो देखिए ये सब मिल कर ''ख़बर-लहरिया'' नामक अखबार वर्ष २००० से ही निकाल रही हैं .इनके कार्यों को प्रोत्साहित करते हुए इनमे से तीन को दलित फेल्लोशिप भी प्रदान किया गया है। तो मित्रां.... कैसा लगा भडासी गिफ्ट ...अभी दिया कहाँ रे भाई निचे दिया है .....कैसे कैसे अजीब लोग हैं यहाँ जिन्हें न तो टी आर पी की चाहत है न प्रशंशा पाने का उधम करते हैं ये ...सचमुच सच्चे अर्थों में अच्छे लोग हैं ये जो सचमुच भारत को बदलना चाहते हैं,ये उन दुरिओं को पाटना चाहते हैं जो आदमी को आदमी से दूर करता है। इन लाजबाब कोशिशों के पीछे शामिल आदमी-औरतों को भडास का बुलंद सलाम। आप लोगों से भी एक अनुरोध की अगर ऐसे भडासी टाइप लोग आपके मोहल्ले शहर में भी हों तो इस मंच पर जरुर लाइए ताकि दुनिया इनके उत्साह को इनके संघर्ष को देख सके ,कुछ मदद कर सके ताकि क्रांति लाने वाले इन कुकुरमुत्ते (जैसा अप्पनको एंटी लोग बोलता है) को लगे की मेरी आवाज में दम है। तो प्रस्तुत कर रहा हुं डाक्टर लाल जी की यह छोटी किंतु पीओर भडासी रचना:- हे माँ सरस्वती आप विद्या की देवी मानी जाती हैं पर ये कैसा रहस्य की आपके पिता ब्रह्मा ने आपके रूप यौवन पर मोहित हो कर आपके साथ बलात्कार किया? उन्हें आपने श्राप दिया की धरती पर सिर्फ़ एक जगह ''पुष्कर'' में ही आपकी पूजा होगी । बलात्कारी बाप को कहीं किसी एक जगह भी पूजा क्यों? दंड क्यों नही? अब बलात्कारी बाप के प्रति भावुकता और रहम का अंजाम तो देखिए आप के अधर्मी,कुकर्मी और दुष्कर्मी बाप से प्रेरणा लेकर कितने ही बाप अपनी बेटिओन से बलात्कार करते पाए जाने लगे........ (साभार सीटू तिवारी सरस सलिल) जय भडास जय यशवंत मनीष राज बेगुसराय

Tuesday, March 4, 2008

बेगुसराय में शिक्षा को प्रोत्साहित करने के मुहीम में जुटे हैं जिलाधिकारी लेकिन इन सडकों का कौन रखवाला है?

शायद इसी रास्ते से गए होंगे हंस साहब
भगवानपुर प्रखंड के दामोदरपुर में मुख्यमंत्री समग्र विकास योजनान्तर्गत भवन व पुस्तकालय के शिलान्यास समारोह को संबोधित जिलाधिकारी संजीव हंस
जिला परिषद् सदस्य रजनीश कुमार ने भी समारोह को संबोधित किया
पूर्व जिला परिषद् अध्यक्ष रतन सिंह ने भी उदगार व्यक्त किए

विकास की बात तो सही है किंतु हर क्षेत्र में प्रगति की संभावनाएं दिखना चाहिए। लेकिन वाकई ऐसा लगता है की बस औपचारिकताएं निभाई जा रही हैं। अब आप ख़ुद देख लीजिये ऊपर के चित्र बहुत कुछ कह रहे हैं।

(तस्वीर:-राजीव नयन)

भडास ने गुंगो को आवाज और लंगरों को बैशाखी का सहारा दिया है.

*आंचलिक क्षेत्र के युवा ले रहे गहरी अभिरुचि
*विभिन्न वर्ग,जाती,सम्प्रदाय के लोगों ने 'भडास' को वंचितों,शोषितों का मंच बताया
*प्लान मैन मीडिया एवं आई आई पी एम् थिंक टैंक के प्रधान संपादक अरिंदम चोधरी के सम्पादन में प्रकाशित''द सन्डे इंडियन'' ने बताया की ऑनलाइन विरोधों ने वैश्विक स्तर पर स्थानीय मसलों को बुलंद आवाज दी है।
भडास और भडास से हाल के दिनों में जुड़े ग्रामीण पृष्ठभूमि के शिक्षित एवं बुरबक लोगों को इस थिंक टैंक के ताजा आलेख के बारे में जान कर उत्सुकता तो बढ़ी ही होगी ,आलेख उनको स्पंदित तो जरुर किया होगा ,खास कर हमारे नए युवा भडासी साथी जो सचमुच जमीन की जिन्दगी जीते हैं और अपने आस पास के बेचैनी को शिद्दत से महसूस करते हैं उन्हें थोरा सुकून जरुर मिला होगा। उन्हें यह याद आ गया होगा की बिहार का सबसे पिछडा जिला खगरिया की जद इउ विधायक पूनम देवी यादव के निजी सचिव के रूप में कार्यरत रहने के दौरान स्थापित किए गए''वीर-बंधू'' संस्था के द्वारा ''ब्लॉग बोले तो वंचितों का सहारा'' परिचर्चा का आयोजन करवाया था जिसमें यह रण निति बनी थी की उत्तर पूर्व बिहार बाढ़ के कारण भयंकर बर्बादी के चपेट में है ,प्रत्येक वर्ष सरकार बाढ़ के समय में ही सक्रीय होने का नाटक करती है भले ही उन्मूलन शब्द उनके शब्दकोष में नही हो। इसलिए हम लोगों ने तय किया था की इस मसले को इंटरनेट के जरिये दुसरे देशों के लोगों तक पहुंचाएंगे और अपील करेंगे की वे किसी भी रूप में हमारी मदद करें और प्राकृतिक विपदा के शिकार इस आबादी को विलुप्त होने से बचाने में हमारी मदद करें। इतना ही नही हम लोगों ने अन्य सामाजिक मुद्दे पर भी विचार किया था की वास्तव में इस आबादी का भला कैसे हो। लेकिन कोई ऐसा मंच मिल नही रहा था जहाँ पर खड़ा हो कर चिल्लाया जा सके लेकिन देखिये मेहनत कभी बेकार नही जाती है और आज हम लोगों को भडास के रूप में एक भगवान् ही मिल गया है जो हमे अपने अधिकार दिलाने के लिए हमसे कहीं ज्यादा सक्रीय है। अब हम अपने समाज के एक एक बिन्दु को इस वैश्विक मंच पर लाएंगे...बहस करेंगे...चुप..स्स्ल्ला...बहस विमर्श....ऐसे बोल न की जमीन पर ठोस काम कर के दिखाएँगे। तो कहीं कुछ नही ''द सन्डे इंडियन'' का पृष्ठ १६ पढ़ें और लेखक अकरम हक़ साहब को दिल से बधाई दें की उन्होंने यह आलेख लिख कर हम वंचितों,पीडितों,उपेक्षितों को वैश्विक बुलंदी प्रदान की है,हमें रास्ता दिखाया है इस के लिए हम उनको सलाम करते हैं। हमारे ढेर सारे भडासी साथी हमसे इतने दूर हैं ,विपरीत कष्ट्जन्य स्थिति में जीने को अभिशप्त हैं,वर्तमान सामाजिक ढांचा से उब कर ताजगी की ताज़ी हवा में साँस लेना चाहते हैं,तो भैओं ,साथिओं सही वक्त तो अब आया है स्वयं को साबित कर के दिखलाने का,एकजुटता का परिचय देकर दिखला दो की हम गूगल के कार्यालय की तो बात छोरिये हम संयुक्त राष्ट्र का ध्यान अपनी और खिचेंगे ,अपनी वेवश पड़ीं आबादी का नंगा सच दुनिया के सामने लायेंगे उन्हें बताएँगे की हमारे खून पसीने की कमाई खाने वाले हमारी थाली में एक रोटी देने के वजाए हमारे सारे परिवार का भोजन क्यों छीन लेते हैं,नसबंदी से ले कर जाती,आवासीय एवं विभिन्न सरकारी प्रमाण पत्र के साथ साथ अन्य कार्यों में हम गरीबों का कागज़ धन के अभाव में दस्तबिन की शोभा क्यों बन कर रह जाता है? प्रकृति की क्रूरता तो हमें तबाह कर ही रही है,इन शुद्ध मनुष्यों की पाशविक प्रवृति से क्यों हम रोज तबाह बरबाद हो रहे हैं? जानते हो ,विश्व के विभिन्न हिस्सों के उपेक्षितों ,वेवाशों ने अपने वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ी को सुरक्षापूर्ण जीवन एवं गौरवमयी विरासत देने हेतु इसी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है तो हम भोंसरी के बुरबक हैं का....चलो अगली योजना तो बाद में बनायेंगे पहले इस ताजा ख़बर को मन लगा कर चाव से संभावनाएं तलाशते हुए पुरी गंभीरता से पढो:- तकनीक का कमाल विरोध का कारगर हथियार बनता इंटरनेट ऑनलाइन विरोधों ने वैश्विक स्तर पर स्थानीय मसलों को भी दी बुलंद आवाज ''वह एक ब्रिटिश नागरिक था.नाम टीम बर्नर्स ली। खोज १९९० के दशक में इंटरनेट की। शायद उन्होंने कभी सोचा भी नही होगा की उनकी संकल्पना एक दिन सामाजिक,राजनितिक और पर्यावारानिया गतिविधिओं का सबसे बड़ा केन्द्र बन जाएगी। सचमुच एक ऐसे युग में जब न्याय,अधिकार और सत्य के लिए आवाज उठाने वालों की जुबान क्रूरता पूर्ण तरीके से दबा दी जाती है,सौभाग्य या दुर्भाग्य से सभी कल्पनाओं और बाधाओं के परे इंटरनेट ने इस वैश्विक दुनिया में स्थानीय हितों को पुरी शिद्दत से उठा दिया है। इसने सभी सीमाओं के पार के लोगों में जाग्रति और संदेश का प्रचार किया है.यह पुरी तरह से नए तरीके और गतिशीलता के साथ होता है। जी हाँ,हमें यह भी पता चलता है की वर्ल्ड वैद वेभ किस तरह से वैश्विक स्तर पर मसले को उठाता है। मक्सिको की कम जानी मानी जन जाती जप तिस्ता पिछले पन्द्रह सालों से अपनी जमीन की लड़ाई लड़ रही है। हालांकि उनके संघर्ष ने तब नयी शक्ल अख्तियार कर ली जब उन्होंने इंटरनेट के जरिये संचार शुरू किया। उनके लगातार मेलो एवं आलेखों ने लाखों लोगों का दिल जीत लिया.उनकी पीडा पुरी दुनिया में महसूस की गयी। लोगो ने उनके संघर्ष को भली-भांति जाना और समर्थन व्यक्त करने की होड़ मच गयी। उनको काफी सहानुभूति ही नही मिली बल्कि हजारों लोग उनके मसले के लिए लड़ने के लिए तैयार हो गए। यह देखना सचमुच दिलचस्प रहा की धरती के दुसरे कोना में बैठा कोई इंटरनेट को हथियार बना कर इनकी और से लड़ने को तैयार था।'' तो और ढेर सारी बातें बताया गया है इस पत्रिका में जो बल देते हैं ,क्रांति की मशाल को अपने आँचल का छाँव देते हैं, इसलिए उन तमाम शुभ चिंतकों को वास्तव में वंचितों की लड़ाई लड़ने वाले हजारों लाखों युवाओं को बधाई देते हुए एक आह्वान की कमर कस कर सामने आओ,बक्चुद्दी मत करो सिर्फ़ समस्या का समाधान खोजो,उनके आँखों की आंसू को पोंछो जो सचमुच जमीन पर दर्द में कराह रहे हैं तो साथिओं वह वक्त बिल्कुल देखने लायक होगा बल्कि साबित करने वाला होगा ख़ुद को,ख़ुद की उर्जा को। जय भडास जय यशवंत मनीष राज बेगुसराय Posted by MANISH RAJ 2 comments Links to this post

भड़ास की सदस्यता के लिए नई शर्त जरा ध्यान दें

रमेश शर्मा नामक सज्जन ने जिस तरह रेशमा और मोइन की नंगी सेक्स स्टोरी को बेहद अश्लील तरीके से लिखकर भड़ास पर प्रकाशित किया, उससे यह जाहिर हो गया कि कुछ लोग जान बूझकर भड़ास को बदनाम करने के लिए किसी भी हद तक साजिश करने के लिए उतर आए हैं। मुझे तुरंत ही इस पोस्ट को डिलीट करना पड़ा और इन सज्जन की मेंबरशिप को हटाना पड़ा। इससे पहले इन साजिशकर्ताओं की तरफ से ही किसी एक सज्जन ने अनाम नाम से एक सीनियर महिला ब्लागर का नाम लेकर उनके खिलाफ भड़ास के चैट बाक्स पर अश्लील कमेंट लिख डाले। मुझे तुरत फुरत बिना देर किए उस चैट बाक्स को ही लेआउट से रिमूव करना पड़ा। उपरोक्त दोनों ही कारनामों के दौरान संयोग ये था कि मैं खुद आनलाइन था और मेरी नजर तुरंत इन जगहों पर पड़ गई। ऐसे में इन साजिशों को देखते हुए मुझे भड़ास की सदस्यता के लिए आनलाइन ओपेन इनविटेशन देने के बजाय मांगने पर सदस्यता देने का निर्णय लेना पड़ा ताकि सदस्यता देने से पहले संबंधित सज्जन के बारे में पड़ताल की जा सके। अब भड़ास का सदस्य बनने के लिए किसी को भी अपना मोबाइल नंबर व नाम लिखकर yashwantdelhi@gmail.com पर भेजना पड़ेगा। उनसे बातचीत के बाद ही उनकी सदस्यता एप्रूव की जाएगी। मुझे उम्मीद है कि जितने भी लोग इस वक्त भड़ास के सदस्य हैं, उनमें जिन लोगों को मैं निजी तौर पर उनके लेखन, उनके ब्लाग, उनसे परिचय होने के नाते जानता हूं, उनके अलावा जो लोग हैं, वे संयम बरतते हुए कुछ भी ऐसा नहीं लिखेंगे जिससे किसी ब्लागर या किसी पाठक को कोई कष्ट हो। भड़ास आज भी अपने मूल मंत्र पर कायम है कि अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिए, मन हलका हो जाएगा....इस मूलमंत्र से जाहिर है कि वही बात लिखिए जो आपके जीवन व विचारधारा के सुख दुख से जुड़ी हो और जिसे आप अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे हों। इसमें अश्लील बातें भी आ सकती हैं लेकिन उनका एक सामाजिक संदर्भ व संदेश व निजी जीवन से कोई मतलब होना चाहिए। सिर्फ काल्पनिक व गपोड़ी सेक्स कहानियों को भड़ास के मंच पर डालना आपराधिक कृत्य होगा। उम्मीद है मौके की नजाकत को देखते हुए आप सभी लोग भड़ास जैसे सबसे बड़े हिंदी ब्लाग की व्यवस्था बनाए रखने में मदद करेंगे और इसे बढ़ाने में दिल ओ जान से प्रयास करेंगे। जय भड़ासयशवंतyashwantdelhi@gmail.com Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 5 comments Links to this post

विवाद के अंत के बादः कुछ झलकियां

-जिन दिनों भड़ास पर पाबंदी लगाने की कुछ साथियों ने साजिश रची थी और भड़ास ने उनको करारा जवाब देना शुरू किया, तो उन दिनों विवाद के केंद्र में रहे भड़ास और एक अन्य ब्लाग की टीआरपी कुछ इस कदर बढ़ी कि एडसेन्स खाते में डालरों की बरसात हो गई। ये बरसात आम दिनों के मुकाबले कई गुना ज्यादा था। ये मैं भड़ास के माडरेटर के बतौर निजी अनुभव के आधार पर कह रहा हूं क्योंकि उन दिनों पेज इंप्रेसन जबर्दस्त रूप से बढ़ चुका था। यही हाल उस दूसरे ब्लाग का भी था। मेरे लिए यह पहला अनुभव था कि विवाद होने से दाम ज्यादा मिलते हैं। इसी के चलते कुछ लोगों ने लिखा भी कि विवाद पैदा कराकर टीआरपी हासिल करने के साथ ही कमाई करने का यह फार्मूला है। उनकी बात कतई गलत नहीं है। इसलिए ये जान लीजिए कि कुछ कुख्यात ब्लागर जो लगातार विवाद पैदा करते रहते हैं उसके केंद्र में सिर्फ और सिर्फ कमाई करना होता है, इसीलिए अपने को गरियाकर या दूसरे को बेइज्जत कर, विवाद करिये और डालर कमाइए। भड़ास को यह ज्ञान इस जबरन दिलाए गए अनुभव के बाद पहली बार हुआ है। ईश्वर न करें, दाम के लिए हमें यह नीच हरकत करने की आदत लगे। हम तो खुद को जिंदा रखने के लिए पैना लेकर मैदान में उतर आते हैं ताकि दुश्मन के हाथों हलाल होने की बजाय लड़ते हुए बहादुरों की तरह मरें या फिर जिंदा बच गए तो जश्न मनाएं। इस बार तो जश्न वाले ही हालात हैं। -विवाद खत्म करने के ऐलान के बाद भी कई ब्लागरों को लगातार उल्टियां हो रही हैं। ये उल्टियां स्वाभाविक उल्टियां नहीं हैं बल्कि उल्टी करने वालों को लाइव देख कर आ रही उबकाई के चलते हो रही उल्टियां हैं। सो, कुछ महिला ब्लागर व कुछ पुरुष ब्लागर लगातार भड़ास निकाल रहे हैं, अपने अपने ब्लागों पे, विवाद खत्म होने के बाद भी। उम्मीद है कि उनका बलगम वगैरह साफ हो जाएगा। कुछ लोग जो कुतर्क रूपी पुरानी रणनीति के जरिए अपने को साफ फाक होने करने की बात कह रहे हैं, तो इसके चलते उनका असली चेहरा और सामने आ जा रहा है, इससे सभी लोगों को यह समझने में सुविधा रहेगी कि आखिर रंगा सियार कौन है, और हालात बदलते ही किस तरह की भाषा बोलने लगा है। -कुछ लोगों से फोन कर मैंने उनसे अपना गुनाह जानना चाहा तो उन लोगों ने वो वो कारण बताए जिसे सुनकर मैं दंग रह गया। मसलन, तुमने कई महीनों से तेल नहीं लगाया, फोन नहीं किया, हाल खबर नहीं ली...आदि आदि। अरे भइया, पहले इशारा कर दिये होते कि अगर गुट से दूर रहने का यह नतीजा होता है कि आप गला ही दबा दोगे तो सच्ची कह रहा हूं कि जरूर दुवा पल्लगी लगातार कर रहा होता। असली वजह पूछने पर बोले कि फोन पर नहीं मिलने पर बताएंगे। तो भइये, वैसे तो मिल लेता, लेकिन अब इस तरह के कुकृत्य करने के बाद मिलने में अपन का कोई इंटरेस्ट नहीं है। न तो तुम मेरे यहां राशन पहुंचा रहे हो और न मैं तुम्हारे लिए कुछ भला करने की सोच रहा हूं। मैं तो यही कहूंगा कि साजिशें रचना जारी रखो, कभी तुम जैसे शेरों को भड़ास जैसा सवा शेर भी मिलेगा तो अपने आप औकात पता चल जाएगी। -भड़ासियों को इस विवाद से लाभ ही लाभ मिला है। एक तो कथित दोस्तों के चेहरे में छिपे दुश्मनों और दोस्ती के लबादे में छिपे अवसरवादियों की शिनाख्त हो गई है, साथ ही भड़ास का अपना खुद का घर भी सुधारने का मौका मिल गया है। सो, हम तो यही कहेंगे कि अगर ऐसी बलाएं लगातार आती रहें तो शायद भड़ास वाकई बिलकुल फिट दुरुस्त होकर एक स्मार्ट ब्वाय की तरह हो जाएगा। वैसे तो बाकी दिनों में जब कोई टोकता रोकता नहीं है तो भड़ासी बिलकुल अराजक होकर अल्ल बल्ल सल्ल करने लगते हैं, और मैं भी टुकुर टुकुर देखते हुए इन्हें नादान मानकर माफ करता रहता हूं। सो प्यारे भड़ासियों, क्या यह जरूरी है कि हम लोगों को रास्ते पर लाने के लिए कोई भाई लोग पैना लेकर गांड़ खोदें, तभी चेतेंगे। यार, इससे अच्छा तो है कि हम खुद ही सुधर जाएं और ये जो साले लगातार आरोप लगा रहे हैं कि हम लोग चूतिये टाइप लोग हैं तो इस लांछन को हटा देना ही अच्छा है। बोले तो भड़ास धीरे धीरे निकालो, उल्टियां रुक रुक कर करो ताकि इन लोगों को हम लोगों की लगातार होती उल्टियां देखकर उबकाई न आए और ये खुद उल्टी न करने लगे। वैसे, अगर सुधरने का मूड नहीं है तो कोई बात नहीं क्योंकि मैं खुद ही आज तक नहीं सुधरा तो दूसरों को क्यों सुधरने का उपदेश दूं। -इस विवाद के बाद मैंने खुद तीसरी कसम खा ली है। किसी भोसड़ी वाले पर कभी भरोसा न करो। जो करना है अपने दम और बल पर करो। जो अच्छे और अपने माने जाते हैं, वो मौका आने पर सबसे पहले दुश्मनी कर लेते हैं, और जो अजनबी व बुरे लोग कहे जाते हैं, वही मुश्किल में काम आते हैं। अच्छे लोग तो केवल मीठी मीठी बातें करते हैं और मौका मिलने पर गांड़ काटने के लिए तैयार रहते हैं। और ये दिल्ली नगरी की दास्तान है जहां रहने वाला कोई भी शख्स कुछ ही दिनों में संवेदनहीन होकर सोकाल्ड प्रोफेशनल हो जाता है और लगता है आत्मकेंद्रित व अवसरवादी तरीके से सोचने। तो ऐसे में अगर इन अवसरवादियों के झांसे में आकर इन्हें दोस्त वोस्त मान लिया तो फिर समझो को हम दिल वालों को हो गया बेड़ा गर्क। तो भइये, अपनी कश्ती खुद खेवो, किसी को साथी मानकर चप्पू उसके हाथ में न थमा देना वरना वो तुम्हारी ही नैया डुबो देगा और खुद तैराकी के लंबे अनुभवों का इस्तेमाल कर पार निकल लेगा। -जो लोग विवाद इसलिए करते हैं कि उन्हें विवाद से फायदा होता है तो उन्हें इस बार समझ में आ गया होगा कि दूसरों के घर में आग लगाने वालों के घर भी कभी कभी जल जाया करते हैं और उस भगदड़ में उनके अपने भी साथ छोड़ जाते हैं। या यूं कहें कि जो लोग अपना मानकर उस घर में रह रहे होते हैं उन्हें उसी दौरान पता चलता कि वो तो दरअसल जिस आग बुझाने वाले के घर में रह रहे थो वो दरअसल किसी दंगाई का घर था, और इतना पता चलते ही बोरिया बिस्तर उठा कर भाग रे भाग रे कहते हुए भाग लेते हैं। -और जब विवाद हो रहा होता है तो कुछ लोग इसलिए सक्रिय हो जाते हैं कि उन्हें विवाद में इधर और उधर लगाने बुझाने में मजा आता है और इसी दौरान वे अपनी भी मार्केटिंग करने में लगे रहते हैं। तो ऐसे मिडिलमैनों ने इस बार भी खूब बहती गंगा में हाथ धोया और वो भी गंदा ये भी गंदा कहकर खुद को सबसे बड़ा अच्छा साबित करने में लगे रहे। ऐसे लोगों के लिए अगर एक बात कही जाए तो वो अनुचित न होगा कि अगर विवाद न हों तो ये लोग तो जीते जी मर जाएं और खुद का दर्शन कहीं न पेल पाएं, सो इन लगाई बुझाई करने वालों को इंतजार है कि देखो, अगला विवाद कब होता है ताकि खुद खाने पकाने का मौका मिलि जाए।....जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 3 comments Links to this post Labels: , , , ,

अमर उजाला में ब्लागिंग पर कवर स्टोरी पूरी यहां पढ़ें

अमर उजाला ने इस बार के रविवार को अपने साप्ताहिक फीचर परिशिष्ट संडे आनंद में कवर स्टोरी के रूप में हिंदी ब्लागों की कहानी अपने पाठकों तक पहुंचाई। मुंबई समेत देश के कई शहरों के भड़ासियों का कहना है कि उन्हें यह स्टोरी पढ़ने को नहीं मिली क्योंकि वहां अमर उजाला का प्रकाशन नहीं होता है, सो उनके अनुरोध पर अमर उजाला डाट काम के सौजन्य से स्टोरी को आनलाइन पढ़ाने की व्यवस्था कर रहा हूं, आप नीचे दिए लिंक को क्लिक करें और पूरी स्टोरी पढ़ लें.....अमर उजाला संडे आनंद में ब्लाग राग ((उपरोक्त लिंक पर क्लिक करने के बाद कुछ कंप्यूटरों पर फांट की समस्या भी आ सकती है जिससे आप उपरोक्त लिंक वाले पेज पर उपर दिए गए फांट डाउनलोड के आप्शन को क्लिक करके व इंस्टाल करके निपट सकते हैं))जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 0 comments Links to this post Labels: , , , , ,

Monday, March 3, 2008

एक आम आदमी के हैसियत के करीब है भड़ास

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जनपदीय सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ कवि अशांत भोला और वर्ष ०७ के साहित्य अकादमी अवार्ड से पुरस्कृत प्रदीप बिहारी
''भड़ास'' पर आज हम आपको दो ऐसी शाख्शियत से रु-ब-रु कराने जा रहे हैं जिन्होंने उत्तर पूर्व बिहार को उपेक्षित कह कर खारिज करने वालों के कथित मिथक को तोड़ कर बुलंदी की एक नयी नींव डाली है जिसकी बुनियाद की ताकत लिए हम युवा समाज को कलम के माध्यम से एवं संगठन के माध्यम से अपने-अपने स्तर से दूर रह कर भी संवेदनाओं को झकझोरते हैं,निदान तलाशते हैं और कहीं जा कर हम संतुष्ट होते हैं। राष्ट्रकवि दिनकर जनपदीय सम्मान प्राप्त अशांत भोला .....न सिर्फ़ मुख्यालय बल्कि आंचलिक क्षेत्र के जनप्रिय ,वरिष्ठ,संवेदनशील,सरल,सहज,फकिराना ख्याल और सारगर्भित मंतव्यों से लबरेज कविवर को बेगुसराय की नयी पीढ़ी के संरक्षक के रूप में ''गुरुदेव'' के रूप में चर्चित यह व्यक्ति अपने जीवन में किए गए संघर्षों एवं उत्कट जीवत के लिए किसी प्रेरणास्रोत से कम नही है। अपना सर्वस्व न्योछावर कर साहित्यिक विरासत को सहेजने की मंशा लिए यह शख्स शोषितों,पीडितों एवं वंचितों को अपने कलम से जागरूकता का पाठ पढाने के लिए तो क्रित्संकल्पित है ही इस व्यक्तित्व को बेगुसराय की नयी पत्रकार पीढ़ी को मार्गदर्शन देने का भी गौरव प्राप्त है। प्रदीप बिहारी.......भारतीय स्टेट बैंक में वारिस्थ सहायक के तौर पर कार्यरत श्री बिहारी और उनकी अर्धांगिनी मेनका मल्लिक की साहित्यिक सेवा से कहीं ज्यादा सामाजिक सरोकार एवं जुझारू व्यक्तित्व की प्रवृति के कारण इस वर्ष के मैथिली साहित्य में विशिष्ट योगदान एवं ''सरोकार'' पुस्तक के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इस व्यक्ति की रचनाएँ तल्ख़ सच्चाई को स्वाभाविक रूप से उकेरती नजर आती है तो प्रत्येक पंक्ति के शब्द सर्वहारा वर्ग को संबल,सुकून और प्रेरणा देता प्रतीत होता है। हम सभी भडासी बेगुसराय के इन गौरवों को ह्रदय से बधाई देते हुए उनके जीए गए पलों से कुछ सिखने की प्रेरणा लेने का शपथ लेते हैं ताकि जो जहाँ हों वहीं अपनी उर्जा से विकृत समाज को सार्थक स्वरुप प्रदान करने की मुहीम चलाया जा सके। तो प्रस्तुत है गुरुदेव अशांत भोला की यह रचना जो एक आम आदमी की हैसियत को इस रूप में व्याख्या करता है:-
आम आदमी की हैसियत टूटी हुई चारपाई पर औंधा पडा उन्घ्ता हुआ वह बुढा आदमी मेरा अपाहिज बाप है जो दमे से हांफता रात-रात भर जागता बलगम के चकते थूकता खांसता रहता है .......................... ओसारे पर एक कोने में मैले-कुचले वस्त्रों से लिपटी दुबकी बैठी औरत मेरी माँ है जिसके सूखे ताल की तरह गढ़धे में धंसी आंखों की रौशनी छीन गयी है मोतियाबिंद की मरीज है .................................... दरवाजे पर उदास-उदास खडा पूरे पाँच फीट नौ इंच का लंबा चौरा मायूस नौजवान वह मेरा बेरोजगार बेटा है जो सुबह से शाम तक नौकरी की टोह में मारा-मारा फ़िर रहा है ............................ आँगन में सलीके से बैठी अपनी मासूम उन्ग्लिओं के सहारे रोज-रोज सुई धागों से दुपट्टे पे पैबंद तान्क्ती अपने उघार जिस्म को धांकने का असफल प्रयास करती झील सी बड़ी-बड़ी आंखों वाली वह खूबसूरत लड़की मेरी कुँवारी बेटी है जो दहेज़ के आभाव में आज कई वर्षों से मेरे सर पर बोझ सी पड़ी है ................................................ घर की चाहरदीवारी में कैद अभावग्रस्त नियति को झेलती बासी रोटी की तरह रूखे-सूखे चेहरे पर ताजा होने का एहसास दिलाती तार-तार और तंग साडी वाली वह मासूम महिला मेरी बीबी है जो टी बी की मरीज होते हुए भी बगैर इलाज जीने को विवश है ........................................... अब मैं अपने बारे में सोचता हुं टटोलने लगा हुं अपना वजूद और पाता हुं अपने को एक आम आदमी की हैसियत के करीब ..................................................... जय भडास जय यशवंत मनीष राज बेगुसराय Posted by MANISH RAJ 3 comments Links to this post