Friday, January 4, 2008

यशवंत सिंह की आन्तरिक प्रतिक्रिया

आइए उसको विदाई दें साथियों !!! वो गया। दिल को छलनी करके। बस, इतना कहकर कि शायद नशे में तुम जैसा होता हूं, नशे के बाद तुम मुझे कुत्ता समझते हो। जाते हैं। बहुत लोग। पर इतना साफ कहकर कौन जाता है। उसकी साफगोई। नशे वाली। लुभाती है। जब वो सुबह और शाम को मिलता है तो बेहद विनम्रता से। सारे नार्म और फार्म निभाते हुए। जब पी लेता है तो हर पैग के बाद मनुष्य होने लगता है। पहले पैग पर उसके चेहरे पर रौनक आने सी लगती है। दूसरे पर वह बातों को बीच में ही काटकर अपनी बात शुरू कर देता है। तीसरे पर वो खुद की बात पूरे दावे और दम से कहने लगता है। तीसरे पर वह सुनाने लगता है, बचपन से जो भी गाना सुनता आया है। चौथे पर वह खड़ा हो जाता है, पूछते हुए कहते हुए किसे पीटना है, किसे प्यार करना है, किसके लिए जीना है, किसके लिए मरना है। पांचवें पर वह बड़बड़ाने लगता है....इ कउन लाइफ है यार, बिना दिल और दिमाग के। जहां दिमाग लगाओ वहां दिल नहीं, जहां दिल लगाओ वहां दिमाग नहीं। जहां दोनों हैं वहां भयंकर स्वार्थ है। कैसे जिया जाय। और अगर छठवां पैग पी लिया तो फिर कयामत है। सामने वाले की। जिसने उसे बिठाया और पिलाया। वह बतायेगा कि दरअसल वो जो सामने वाला है सबसे बड़ा चूतिया है और सबसे समझदार होते हुए भी अपनी समझदारी का उत्कृष्ट इस्तेमाल नहीं कर रहा है। वो मेरा मित्र गया। सब छोड़कर। अपने देस। कह के तो गया है कि फिर नहीं लौटेगा। लेकिन जब उसे घर की दिक्कतें पीटेंगी तो वह फिर तड़पड़ायेगा और आयेगा। यहीं मरने। तेरे मेरे जैसे कुत्तों के बीच।क्या फरक पड़ता है कि वो जो गया है उसका नाम क्या है, किस कंपनी में काम करता था, क्या पद था, उम्र क्या था,दिमागी हालत क्या थी, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या थी। इन सब सवालों का यही जवाब है कि वो मेरे तेरे जैसे कुत्तों, चूतियों से तो अच्छा ही था। आइया उसका वेलकम करें। और उसके आने पर फिर जश्न दें, बर्बादी की दुनिया में लौटने के लिए।आइए उसको विदाई दें, अपनी मनुष्यता को अब तक जी पाने के लिए। कल पता नहीं, वो मनुष्य बनने आए या तेरे मेरे जैसा कुत्ता या भेड़िया.....। चीयर्स....।जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह 1 comments: Gulshan khatter said... माफ़ करना यशवन्त भाइलगता हे इस जालिम दुनिया ने आप को बहुत सताया हे जो इतनी तिखी भडास पडने को मिल रहीहे