Wednesday, February 20, 2008

भडास पर व्यक्त हुई मेरी पीड़ा कुछ ऐसे

रुपेश जी के सक्रिय ब्लॉग लेखन से कहीं ज्यादा उनके सेवा भाव ,करुना को बाँटती उनके आँचल के छाँव तले पीड़ित भारत चंगा हो रहा है, ऐसा सुना, काफी खुशी हुई । समय ,समाज,परिस्थिति को यही चाहिए भी। हजारों,लाखों,करोरों मतलब हर घर में रुपेश जी जैसी मनोवृति पनप जाए तो समझो सड़ी सभ्यता का एक हिस्सा ख़ुद-ब-ख़ुद गुनगुनाने लगेगा। रुपेश भाई ने एक जगह लिखा था की''क्या हुई जो सांझ निगल गयी''शब्द में इतने आदर,सम्मान,आमंत्रण और आशीर्वाद के छंद मिले की उन्हें पंक्तिबद्ध करने से ख़ुद को रोक नही सका और आज की शाम कुछ इस रूप में हाजिर हुं।आपकी बौधिक जुगाली का एक मात्र अंश बनने का आकांक्षी .......मनीष राज डॉक्टर साहब, सांझ ने नही झूठ के आवरण में लिपटे सच और परिवेश के आदरणीय कठोड़,बर्बर,रूढ़,तथा कथित आडम्बरों की जीवंत प्रतिमाओं ने निगला है हम जैसे अंकुरित हो रहे नवंकुरों की कोमल पत्तीओं को अपने जड़ सिध्हंतो एवं बोझिल परम्पराओं के साथ मिलकर कुचला है हमे। आपके द्वारा निर्मित किए गए समाज,परिवेश और उनमें रहनेवाली उपेक्षित प्रजाति को शिद्दत से महसूस करते हैं हम,उनके दर्द,उनकी बेचैनी,उनका उत्साह,उनकी उद्दंडता ,उनकी हँसी,उनका रुदन,उनकी आशाएं ,उनकी निराशाएं,सबों की इन अनुभुतीओं से रोज साक्षात्कार होती है हमारी। उनके जीए गए पलों की तासीर इतनी गहरी है की उनको उपेक्षित करने की कल्पना से सिहर उठती है आत्मा हमारी॥ कोर्पोरेट वर्ल्ड और एल्लो कल्चर को नंगा होते देखता हुं यहाँ जब ''मनुष्य'' की इस उपेक्षित प्रजाति की वेवाशी के करीब होता हुं,उनके नंगे बदन और भूख से बिलबिलाते याचना के स्वर में अपनी मज्बुरिओं के स्वर मिलाकर मुठिआं भींच कर रह जाता हुं । जब देखता हुं की ये उपेक्षित माँ परसौती गृह से निकले बच्चे को चावल का मांड पिलाकर पोषण देती है तो सारे कम्प्लान और होर्लिक्स की एड लाइनों की चमक फीकी दिखती है मुझे॥ झाड़ झंकड़ के धुएं को अपने कलेजे में भर कर हांफती माओं,चाचिओं को देख कर आपके देश का सेंसेक्स हांफता नजर आता है मुझे । मुझे पीपल के पेड़ के नीचे बैठे असहाय,वक्त के गुलाम बने ताश की पत्तीओं की उलट फेर में अपना भविष्य तलाशते युवाओं को देख कर ''रोजगार परक सरकार देने का वादा'' करने वाले नीति-नियंताओं के दोहरे चरित्र पर शक और जकड कर अपनी नींव मजबूत करता दिखता है मुझे॥ मुझे रोज आत्महत्या कर रहे किसान की जवान बेतीओं के मर्मस्पर्शी उदगार और उसके परिवार में बचे रह गए अबोधों की आंखों की गहराई में कुछ चुभते प्रश्न कलेजा चीर कर रख देते हैं जब देखता हुं गाँव का कोई दबंग हमारे घर से अपने बकरी के लिए घास धुन्धने गयी जवान बहनों को फानका बहियार में बाजार कर दबंगई ,मर्दानगी का नंगा नाच दिखाता है॥ आठ वर्ष के बच्चे को निम्मक,मिर्चाई के साथ तेरह रोतिआं गिलते देखता हुं तो पिज्जा,बर्गर के स्वाद पानी से फीके दिखते हैं मुझे। हगने,मुटने वाला पेंदी लगा लोटे जिसे अभी गली का कुत्ता मुंह लगा कर गया है में पूरे संतोख के साथ पानी पीनेवाले अपनों को देखता हुं तो एक्वागार्ड और हेमा मालिनी मुंह चिधाती नजर आती है मुझे॥ मैं देखता हुं रोज आपकी आतिश बाजिआं , आँखे फाड़ कर आपको देख रही इस उपेक्षित आबादी में से एक बहन का परिवार बस जाएगा आपकी बीयर की बोतलों के चियर्स से गिरने वाले श्वेत फेनों के पैसों से.... मैं रैली में पधारे नेताओं के चक चक सफ़ेद कुर्तों और आश्वाशन भरी बातों और धुल उडाती ,लैंड करती हवाई जहाज के घिर्निओं को नही,मेरी निगाहें हैली पेड पर चुना छिड़क रहे घुठो काका की मज्बुरिओं पर टिकती है और कह जाती है आपका खोखला सच...... आठ वर्ष के बच्चे को निम्मक,मिर्चाई के साथ तेरह रोतिआं गिलते देखता हुं तो पिज्जा,बर्गर के स्वाद पानी से फीके दिखते हैं मुझे। हगने,मुटने वाला पेंदी लगा लोटे जिसे अभी गली का कुत्ता मुंह लगा कर गया है में पूरे संतोख के साथ पानी पीनेवाले अपनों को देखता हुं तो एक्वागार्ड और हेमा मालिनी मुंह चिधाती नजर आती है मुझे॥ मैं देखता हुं रोज आपकी आतिश बाजिआं , आँखे फाड़ कर आपको देख रही इस उपेक्षित आबादी में से एक बहन का परिवार बस जाएगा आपकी बीयर की बोतलों के चियर्स से गिरने वाले श्वेत फेनों के पैसों से.... मैं रैली में पधारे नेताओं के चक चक सफ़ेद कुर्तों और आश्वाशन भरी बातों और धुल उडाती ,लैंड करती हवाई जहाज के घिर्निओं को नही,मेरी निगाहें हैली पेड पर चुना छिड़क रहे घुठो काका की मज्बुरिओं पर टिकती है और कह जाती है आपका खोखला सच...... मैंने भुगता है हर कदम पर दंश झेली है पीडा .....रोज भुगतता हुं,रोज झेलता हुं इन दर्द के ह्रदय विदारक क्षण को अभी भी जी कर आया हुं.....इस की बोर्ड पर थिरकती मेरी उंगलियाँ प्रत्यक्ष गवाह हैं मेरी तल्ख़ सच्चाईओं की की इन्ही हाथों से गोबर उठाकर, परा पारी को सानी पानी लगा कर ,इन्ही हाथों से आये हैं आप बुधिजीविओं ,विद्वानों की दुनिया में वक़्त के बेरहम कपाल पर अपनी उत्कट जीजीविषा और अभिलाषाओं की मुहर लगाने... हम इन उपेक्षितों,अपनों की वेव्शी में शामिल हो जाते हैं ,उनके साथ हंस लेते हैं,उनके साथ गा लेते हैं,उनके साथ रो लेते हैं,लेकिन जब कभी अकेले होते हैं तो छलछला जाते हैं हम अपनी मज़बूरी के आगोश में जकड़े ''उपेक्षित'' हम आपकी गगनचुम्बी इमारतों में बन रही योजनाओं का हिस्सा नही बन्ना चाहते हैं,और न ही चाहते हैं की आप भद्र आस के बीच हास्य का पात्र बनाना या क्रंदन हृदय्वेधि चीख से आपकी सोई आत्माओं के दरवाजे को खुलवाना...... हमे चाहिए भी नही आपका संबल ,क्योंकि हमने अब अपना रास्ता खुद चुन लिया है ....वर्षों के अथक अनवरत परिश्रम और मंथन के बाद सृष्टि-सागर में मेरी तरह उपेक्षित पडी ''गाली'' का साथ मिल गया है हमें॥ हम महात्मा की संतानें हैं,बुधः की भूमि के उपज हैं ॥अहिंसा से आपका ध्यान खीचेंगे अपनी तरफ....हमे गोलिओं का शोर पसंद नही..हमने देखा है हजारों मरती आत्माएं,अव्यक्त अभिव्यक्तीओं को इन गोलिओं के शोर में दबते देखा है हमने....विद्वानों,जरा सुनो स्वतंत्रता का अतिक्रमण उछ्रिन्न्ख्लता है तो अहिंसा की हद गाली ही हो सकती है। आप बुध्हिजिवी ही तय करें ''गोली और गाली'' क्या हो उचित इस व्यवस्था से त्राण पाने के लिए ?निश्चित ही संधिस्थल साबित होगी हमारी गाली तो बस इसी नजरिये से दीजिये न विमर्श को आधार ...प्रश्न बनाइये न '''गोली और गालीक्या हो विकल्प ? और जिस दिन गाली हमारी सामुहिक आवाज बन जायेगी विधान सभाओं क्या संसद की छाती पर चढ़कर,ताल थोक करअपने हक़ हुकुक को लेंगे हम कमीने,जलील,काहिल,उपेक्षित,हरामी,कुत्ते,भौन्सरी,जूठन,भादासी.....हाँ ,हम उपेक्षित आबादी भादासी हैंजे भडास जे यशवंत मनीष राज बेगुसराय Posted by MANISH RAJ 0 comments Links to this post

Tuesday, February 19, 2008

प्रेम नारायण मेहता की पुण्य तिथी कवि सम्मेलन के साथ हुई संपन्न

सिटी न्यूज़ के ब्यूरो चीफ सुमीत वत्स ने भी शब्द पुष्प अर्पित किए
संपादक अशांत भोला संबोधित करते हुए
बेगुसराय के प्रखर नेताओं में शुमार ,हिन्दी साप्ताहिक ''सरज़मीन'' के प्रकाशक प्रेम नारायण मेहता की पुण्य तिथी स्थानीय लहेरी धर्म शाला के प्रांगन में एक भव्य कवि सम्मेलन के बाद संपन्न हुआ। अपने तेज़ और ओज के लिए चर्चित स्वर्गीय मेहता को याद करते हुए जिले के वरिष्ठ साहित्यकार कस्तूरी झा कोकिल की आंखों से बरबस आंसू के दो बूंद छलक आए। ग़मगीन माहौल में प्रारम्भ हुए इस समारोह की अधक्ष्ता करते हुए ''सरज़मी'' के सम्पादक अशांत भोला ने उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालते हुए आमंत्रित कविओं ,और श्रोताओं को श्री मेहता के जीवन से प्रेरणा लेने की अपील किया। इस अवसर पर ब्यूरो चीफ प्रभाकर के अलावे जिला के हर मीडिया कर्मी मौजूद थे। आयोजित कवि सम्मेलन में शिरकत करने वाले कविं ने अपनी रचनाओं से आम लोगों का मन मोहा। इस अवसर पर विजेता मुद्गाल्पुरी,कैलाश झा किंकर,रामदेव भावुक, छान्द्राज,नंदेश निर्मल,पुष्कर जी ,राजेंद्र राजन,दीनानाथ सुमित्र के साथ अन्य गन मंत्य व्यक्ति उपस्थित थे।

Monday, February 18, 2008

साथी मनीष राज..........बेगुसराय वाले हम हार कर भी जीतेंगे.....

जी संबल,सहारा शायद इसी को कहते हैं,कोई दूर बैठा वैचारिक दोस्त आज मेरे नाम संबोधित पत्र में कुछ कहना चाहता है ....कुछ सलाह देना चाहता है, कुछ सिखाना चाहता है ताकि तुम इस अनजानी दुनिया में संभल-संभल कर चल सको.........धन्यवाद यशवंत भाई...... साथी मनीष राज, बेगूसराय वाले.....हम हार के जीतेंगे !!! मनीष राज जी, बेगूसराय वाले....आपने जो ये वाली पोस्ट डाली है, जिसे हटाकर मैं ये सब बातें लिख रहा हूं, वो हम भड़ासियों के बीच ही विवाद पैदा करने वाली है। इसीलिए बतौर माडरेटर व एडमिन, मैं इसे हटा कर आपके नाम एक प्यारा से ये खत लिख रहा हूं।आपसे आज फोन पर बतियाकर अच्छा लगा। इतने दूर होकर भी आप भड़ास से जिस कदर जुड़े हुए हैं, जितने उत्साह व आत्मा से अपनी बात रखते हैं, मैं उसका कायल हूं। बात करते हैं भड़ास की दशा-दिशा संबंधी विवाद पर, जिसके एक पक्ष को मैं और आप आवाज देते हैं और दूसरे पक्ष का डा. रुपेश, पूजा समेत ढेर सारे साथी प्रतिनिधित्व करते हैं।मैं और आप न तो पूजा की बात के खिलाफ हैं, न डा. रुपेश जी के। दरअसल, देखा जाए तो ये विवाद कोई विवाद नहीं बल्कि भड़ास को सार्थक बनाने की पहल का है। और इसी तरह के अनवरत मंथन से अमृत निकलेगा। हम सब अलग-अलग सोच, बैकग्राउंड, शहर, मजबह, पेशे....के होने के बावजूद आत्मा से भड़ासी हैं। सरल सहज लोग हैं। और ये गुण सारे भड़ासियों में है, तभी वो भड़ास के सदस्य हैं। ये अलग बात है कि मात्रा किसी में कम या ज्यादा हो सकती है। अगर मंजिल एक है तो रास्ते अलग अलग भी हों तो क्या दिक्कत है। आत्मा एक है और शरीर अलग अलग है तो क्या दिक्कत है। पूजा ने जो कहा है, और उनके समर्थन में जो साथी हैं, वो भी उतने ही सच्चे भड़ासी हैं, जितने कि मैं और आप जो भड़ास पर अपने तरीके से लिखना जीना चाहते हैं। और ये जो एकता में विभिन्नता है, यही तो रंग बिरंगे फूलों के गुलशन की नींव है। अगर सब एक तरह के हो जाएं, एक तरह से सोचें, एक जैसा ही लिखें तो फिर मामला एक रस नहीं हो जाएगा? डा. रुपेश जी हम लोगों से काफी बड़े हैं, काफी अनुभवी हैं, वो सच्चे मायने में भड़ासी हैं क्योंकि हम लोग तो नौकरी वौकरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं, वो तो झोला उठा कर झुग्गी झोपड़ियों और गरीबों के बीच घूम कर उन्हें न सिर्फ मुफ्त इलाज देते हैं बल्कि उन्हें संगठित करने उनके हक के लिए लड़ते हैं। वो सच्चे अर्थों में सच्चे मनुष्य हैं। वो एक तरह से हम भड़ासियों के गार्जियन भी हैं। अगर वो किसी भड़ासी का कान उमेठते हैं तो ये उसे-हमें अपना सौभाग्य मानना चाहिए।मनीष जी, मुझे ये पोस्ट हटाने के लिए माफ करेंगे क्योंकि दरअसल इस पोस्ट में पूजा की पोस्ट के कमेंट थे और आपने बस उपर एक लाइन और नीचे एक लाइन लिखा था, जो मेरे हिसाब से इसलिए आपत्तिजनक है क्योंकि इससे भड़ासियों की एकता में दरार पैदा हो सकती थी, ऐसी मेरी आशंका थी। हो सकता है मेरी आशंका गलत रही हो लेकिन मुझे इस पोस्ट को हटाने का निर्णय लेना पड़ा। मनीष जी, भड़ास को अभी लंबा रास्ता तय करना है सो एकता बहुत जरूरी है। यह एक बड़ा परिवार है, औघड़ों का परिवार है, बंजारों का परिवार है, सच्ते दिलों का कुनबा है। और जब इतने बंजारे, आवारे, औघड़ एक जगह इकट्ठे हों तो वहां हंगामा तो बरपेगा ही। तो इसमें जरूरी यह है कि हम हर स्थिति में मुस्कराते रहें और एक दूजे को सम्मान देते रहें। आपका भड़ासी साथीयशवंत सिंह Posted by MANISH RAJ 0 comments Links to this post

Sunday, February 17, 2008

''भडास'' नामक ब्लॉग के डॉक्टर रुपेश की प्रतिक्रिया के साथ ही १००० पोस्ट का मालिक बना भडास :१०००वे पोस्ट की एक झलक

मैंने यह सोच कर बेगुसराय में गंभीर ब्लॉग लेखन प्रारंभ नही किया था की आने वाले दिनों में मुझे कोई फायदा हो,बस इंटरनेट से लगाव और पत्रकारिता पेशे के कारण अभिव्यक्त करने का नया हथियार खोज़ने की तलाश में अचानक ''ब्लॉग'' की असीमित दुनिया से मुलाक़ात हुआ,मजा तो तब आ गया जब ''भडास'' नामक ब्लॉग से जुड़ा ,फ़िर अन्य ब्लॉग की रचना धर्मिता से प्रभावित होकर ऐसा लगा की यार जिसकी तलाश थी वह तो आज पुरी हो गयी। फ़िर ''अक्षर-जीवी'' को आकार देना शुरू कर दिया और भडास पर भी कुछ कमेंट्स लिखे। आज बड़ी खुशी हो रही है की आज ''भडास'' ने १००० पोस्ट के आंकडे को छू लिया है,और वह १०००वा आलेख मेरे नाम से ही संबोधित है। अब आप भी देखिये अभिव्यक्ति की इस नयी जमीन को:-

हजारवां सन्देस...भड़ास पर मनीष भाई,आप बेगुसराय में जान देने को तैयार हो जाइए मैं तो मुंबई में हर वक्त जो नहीं जमता है उसके खिलाफ़ मोर्चा खोले हुए हूं, मार खाना या वाहन क्षतिग्रस्त करवा लेना नयी बात नहीं है । अगर खिसियानी बिल्ली की तरह हम भड़ास का खम्भा नोचें तो क्या लाभ क्योंकि आपको पता है कि यशवंत दादा के अनुसार चूतियापे का न तो कोई स्तर होता है न ही कोई स्टाइल । मैं तो खुद को वांछित बदलाव के हवन में एक समिधा मान चुका हूं ,किसी भी व्यक्ति की शहादत बेकार नहीं जाती लेकिन वक्त लगता है । आपका थोड़ा ध्यान चाहूंगा मेरे और यशवंत दादा के बीच हुए संवाद पर आप प्रतिक्रिया करें पर उसके लिये आपको पुरानी पोस्ट्स टटोलनी पड़ेंगी । कौन कहता है कि क्रांति नहीं होती खून सफ़ेद हो गया है पर क्या हम खुद अगुवाई करने से डरते नहीं हैं ,सुना है मैने हमेशा कि अकेले होती है हर नयी शुरूआत अगर शक्ति है पास तुम्हारे तो जमाना देगा साथ । मैं अपनी नजर से भड़ास की सत्त्यता देखता हूं तो नजर आता है कि यही एक मंच है जिस पर आप सार्थक बात मज़ाहिया अंदाज में कर सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे शहीद राजगुरू ने कहा था कि बस एक बार फ़ांसी चढ़ जाने दो पंडित जी फ़िर देखता हूं इन साले फ़िरगियों का हाल ,क्या अर्थ निकालेंगे आप इस बात का ?भड़ास के मंच का हाल तो ऐसा है कि जहां एक ओर यशवंत दादा मोडरेटर हैं वहीं दूसरी ओर मैं भी हूं तो क्या आपको नहीं लगता कि यहां तो उल्टी करने आने वाले लोगों के लिये उगालदान है ,एडमीशन के लिए बेड है,पैथालाजी है और अगर चाहेंगे तो इलाज भी होगा । अंत में कि हम अपनी मजबूरियां बता कर कहां तक भागेंगे कि फलनवा हमारे साथ नहीं है तो हम क्यों मरें अकेले हमें तो सबके संग ही मरना है ( शायद मरना भी नहीं है बस साथ के लोग मर जाएं और लाभ हमें मिल जाए ऐसी अपेक्षा है क्या ?) बदलाव या बेहतरी की उम्मीद सिर्फ़ पत्रकारों की बपौती नही है आप पत्रकार हों न हॊं कोई फ़र्क नहीं पड़ता है शहादत के मुद्दे पर...........I am designed to die by the hands of GOD.जय जय भड़ास Posted by डा०रूपेश श्रीवास्तव 0 comments Links to this post Labels: , , ,

Saturday, February 16, 2008

यशवंत भाई ने तो गज़ब कहा........क्या सचमुच ऐसा होता है.

''भडास'' की बुलंदियां चरम पर है। ब्लॉग लेखन को एक नया आयाम देने के लिए प्रयास रत यशवंत भाई निश्चित ही बधाई के पात्र हैं। भडास के पिछले अंक में एक आलेख ने निगाहों को खोल दिया तो सोचा आप तक पहुंचा ही दूँ।:-
सबसे बड़े हराम जादे बुद्धिजीवी और प्रोफेसनल लोग ही होते हैं। नेताओं का साफ साफ फंडा है, झूठ बोलेंगे, जीतेंगे, राज करेंगे और फिर जीतने के लिए क्राइम से लेकर समाज सेवा तक समब करेंगे। नौकरशाहों का भी साफ साफ फंडा है। नौकरी बचाने के लिए किसी करवट लोट जाएंगे। किसी के तलवे चाट लेंगे। नौकरी में बने रहेंगे और दीमक की तरह सिस्टम को चाटते रहेंगे। ऐसे ही ढेर सारे लोगों की जन्मकुंडली बनाई जा सकती हैं। लेकिन जब आप प्रोफेशनल लोगों और बुद्धिजीवियों की जन्मकुंडली बनाने पर आयेंगे तो आपकी कलम स्याही खुद ब खुद सुखा देगी, या कलम की निब टूट जायेगी या कलम चलने से इनकार कर देगी। मैं बताता हूं, इसकी वजह क्या है?दरअसल प्रोफेशनल और बुद्धिजीवी इस देश के सबसे बड़े हरामजादे लोग होते हैं। ये अपनी खोल में जीते हैं। अपनी खोल को बड़ा बनाने के लिए बौद्धिक चिंतन करते हैं। इस बौद्धिक चिंतन में ढेर सारे लोगों को मिशनरी की भांति फांसते हैं और फिर खुद निेता और झंडाबरदार बनकर अपने को एलआईजी से एमआईजी में और फिर एमआईजी से एचआईजी क्लास में ले आते हैं। आखिर में आता है इलीट क्लास, जहां पहुंचने के लिए इन प्रोफेशनलों और बुद्धिजीवियों में होड़ मची रहती हैं। ये अपनी करनी को देश और समाज से इस कदर जोड़े रहते हैं जैसे जोंक खुद को खून चूसने के लिए शरीर के मांस के साथ चिपकाये रहता है। अगर कोई इन्हें यहां से छुड़ाना चाहे तो ये मर जाते हैं, देश के लिए कुर्बानी का वास्ता देकर पर सच्चे अर्थों में ये दरअसल दूसरों को बरगलाये बिना और दूसरों पर निर्भर हुए बिना जी ही नहीं सकते इसलिए अकेले कर दिए जाने पर इनकी खुद ब खुद मौत हो जाती है। मेरी बातें अमूर्त लग सकती हैं पर अगर शुद्ध हिंदी में कहें तो इन भोसड़ीवालों के चलते अपने हिंदी समाज की ये दशा है कि जो हाशिए पर हैं, वे हाशिए पर ही बैठे रहने को अभिशप्त हैं, जो मुख्यधारा में हैं, वो मुख्यधारा के सहयोग से इतने आगे बढ़ जाते हैं कि बाकी समाज इनके लौंड़े पर आ जाता है। और इस काम में बड़ी व बखूबी भूमिका निभाते हैं बुद्धिजीवी व प्रोफेशनल। अगर ये बात भड़ासियों को समझ में नहीं आई तो फिर कभी विस्तार से समझाऊंगा लेकिन एक सलाह जरूर देना चाहूंगा कि प्रोफेशनल व बुद्धिजीवी लोगों से बच के रहना। ये बड़े नखरे करते हैं। ये काम आएंगे तो काम आने के नाम पर आपकी गांड़ मार लेंगे, ये कभी काम न आने की बात नहीं कर सकते क्योंकि ये इतने बड़े झूठे होते हैं कि किसी काम लायक न होने पर भी काम के होने का इतना बड़ा ढोंग रचते हैं कि आप हमेशा इनके चक्कर में पगलाये रहोगे। चलिए, फिर कभी विस्तार से बतियायेंगे। अगर आपका कोई तर्जुबा हो तो जरूर शेयर करिएगा। जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh Labels: , , , , , , 2 comments: डा०रूपेश श्रीवास्तव said... दादा,सब के पास इतने तजुर्बे होंगे कि २१०८ तक या उसके और आगे पचास सालों तक यही चर्चा चलेगी ,अब देखिए कितने लोग अपनी "फटी" भड़ास पर बताते हैं...जय भड़ास 7/2/08 1:07 AM विनीत कुमार said... sirji aapko aaj pata chala. 7/2/08 8:02 PM क्या sa

Friday, February 15, 2008

मीडिया धंधा है पर गंदा नही :आशीष महर्षी की सोच

''बोल हल्ला'' ब्लॉग अब परिचय का मोहताज नही है,ख़ास कर सार गर्भित आलेखों के लिए। इस ब्लॉग के मोदेरेटर आशीष महर्षी धीरे-धीरे हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में अपना पैर जमा रहे हैं। इस बार हम उनके आलेख को आप तक पहुंचा रहे हैं,अपनी राय जरूर दीजियेगा :-

कई दिनों से मीडिया के बदलते चरित्र पर लिखने का मन था। लेकिन समय के अभाव के कारण लिख नहीं पा रहा था। लेकिन आज लिख रहा हूं। बोल हल्‍ला पर पिछले कई दिनों से मीडियों पर लोगों ने अपने अपने तरीकों से अपनी अपनी बात रखी। लगभग सभी एक बात से तो सहमत थे कि मीडिया अब पहले जैसा नहीं रहा। इसमें कुछ बदलाव आएं हैं जो कि अधिकतर लोगों को नकारात्‍मक लगे। यह अच्‍छी बात है कि लोगों ने खुलकर अपनी बात रखी। लेकिन कुछ बात मैं भी कहना चाहूंगा। मुझे लगता है कि अब हमें मीडिया से यह अपेक्षा करना छोड़ देना चाहिए कि इसके माध्‍यम से हम पत्रकार कोई समाजिक क्रांति ला सकते हैं। कुछ लोग मेरी बातों से इत्‍तेफाक नहीं रखते होंगे। लेकिन ऐसा क्‍यों होता है कि जब किसी वेब पोर्टल पर या न्‍यूज चैनल पर निकोल किडमैन, मल्लिका शेरावत या राखी सावंत से संबंधित न्‍यूज आती है तो इसे देखने वाले दर्शक अचानक बढ़ जाते हैं। जबकि धूम्रपान को रोकने, विदर्भ में मर रहे किसानों से लेकर अन्‍य विकास की खबरों को दर्शक या पाठक नहीं मिल पाते हैं। इसके लिए कौन जिम्‍मेदार है। हम पत्रकार या वो लोग, जिनके हाथ में टीवी का रिमोट और अखबार हैं। यदि पाठक या दर्शक चाह लें तो मीडिया को झक मार कर अपने चरित्र में बदलाव करना होगा। लेकिन अफसोस है पाठकों की चुप्‍पी ने पूरे मीडिया को धंधे में बदल दिया है। इसके लिए हम लोग भी जिम्‍मेदार है। हम टीआरपी के नाम पर नाग नागिन से लेकर राज ठाकरे तक को इतना हाइप दे देते हैं कि पूरे देश में एक अजीब सा माहौल बन जाता है। लेकिन अब पाठकों व दर्शकों को ही कुछ करना होगा। क्‍योंकि लगाम उन्‍ही के हाथ में है। इन दिनों देश भर में अंग्रेजी और हिंदी की खिचडी के संग अखबार निकल रहे हैं। जिनकी बिक्री भी कम नहीं है। मेरे जैसे लोग जनसत्‍ता और हिंदू को सबसे बेहतर समाचार पत्र मानते हैं। एनडीटीवी हमारे लिए बेस्‍ट न्‍यूज चैनल है। लेकिन ऐसा क्‍यों हैं कि इनके दर्शक या पाठक कम हैं। लोगों को यह अखबार या चैनल नहीं भाता है। जिसके कारण इन्‍हें सीमित पाठक वर्ग या दर्शक वर्ग के कारण नुकसान उठाना पड़ता है। खैर मैं फिलहाल जिस मीडिया संस्‍थान में हूं, वहां मुझे इस बात का भ्रम नहीं है कि मैं पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे पता है कि पत्रकारिता कम से कम यहां संभव नहीं है। मैं यहां एक न्‍यूज क्‍लर्क की भूमिका में हूं। कुछ न्‍यूज बनाई और अपना काम खत्‍म। मुझे यह भी पता है कि इन न्‍यूज से कुछ खास होने वाला भी नहीं है। बस एक नौकरी है और हर रोज वही कर रहा हूं। लेकिन आज से दो साल पहले ऐसा नहीं था। भोपाल में पत्रकारिता की पाठशाला में जब मैं अपने दोस्‍तों के साथ पत्रकारिता का ककहरा सीख रहा था तो मन में कहीं न कहीं था कि कुछ ऐसा करना है कि जिससे समाज के अंतिम आदमी को अधिक से अधिक लाभ पहुंचे। भोपाल आने से पहले जयपुर में जब निखिल वागले के समाचार पत्र महानगर के लिए रिपोर्ट करता था तो उस समय यह बाते मन में नहीं थी। क्‍योंकि यह काम मैं कर रहा था। भोपाल से निकला और इसके बाद जब सच्‍चाई की जमीन पर नंगे पांव चला तो समझ में आया कि जनाब आप जिस पत्रकारिता की बात कर रहे हो यह तो यहां संभव ही नहीं है। अब तो मीडिया पूरी तरह धंधा बन चुका है। अपको अपनी नौकरी भी बजानी है और पत्रकारिता भी करना है तो कुछ बीच का रास्‍ता तलाशना होगा। यानि आप जल में रहकर मगर से बैर नहीं कर सकते हैं। ऐसे में मीडिया में घुसें और सबसे पहले अपना स्‍पेस बनाए। और ऐसा भी नहीं है कि यदि आप मेहनत से कोई रिपोर्ट लाते हैं जो कि कुछ खास हो तो वो प्रकाशित नहीं होगी। बशर्ते हमें यानि हमारे जैसे युवा पत्रकारों को थोड़ा अधिक मेहनती होना पड़ेगा। मेहनत के साथ दिमाग का भी सही उपयोग आना जरुरी है। कभी कभी बड़ी निराशा हाथ लगती है जब इस पेशे में लोग आते हैं कुछ कर गुजरने का जज्‍बा लेकर, लेकिन जब इस पेशे का अंग बनते हैं तो सबसे पहले यही लोग इसे सरकारी नौकरी समझने लगते हैं। मेरे कुछ जानकार भी ऐसे ही लोगों की श्रेणी में आते हैं। इनके लिए पत्रकारिता एक नौकरी है। जहां आपको नाम, ग्‍लैमर्स और पैसा मिलता है। समाज सेवा, मिशन, क्रांति की बात करते समय ये लोग नाक भौं सिकुड़ने लगते हैं। ऐसे लोगों से मुझे या मीडिया में जो गंभीर रुप से जुड़े हुए है उन्‍हें कोई खास उम्‍मीद नहीं है। लेकिन ऐसे ही लोगों की वजह से यह पेशा बदनाम हो रहा है। लेकिन इन सबके बावजूद मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि यदि आपमें कुछ खास है तो आपको मीडिया के इस धंधे में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। क्‍योंकि खास बनने के लिए कुछ खास करना भी होता है। आशीष महर्षि Posted by आशीष at 11:48 AM 10 comments Links to this post

Thursday, February 14, 2008

पत्रकारिता का यह कौन सा रूप है?

''भड़ास'' पर अबरार अहमद नाम के एक लेखक ने ''गार मार ली पत्रकारिता की''नाम से एक आलेख लिखा है।जनाब ने टू शीर्षक ही ऐसी दी है की उल्टी हो जाए ,फ़िर भी हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं:== शीर्षक से कई लोगों को आपत्ति हो सकती है। पर कुछ लोगों ने वाकई हद कर दी है। देश का चौथा स्तम्भ कहलाने वाले इस पेशे को मटियामेट कर इसे खम्भा बनाने की पुरी कोशिश की जा रही है। हो सकता है की जो देश के तथाकथित बड़े पत्रकार हैं वह एक नई पत्रकारिता गढ़ रहे हों। पर यह वाकई इस पेशे से दुष्कर्म जैसा है। यहाँ मैं प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक दोनों पत्रकारिता की बात कर रहा हूँ। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो ब्रेकिंग न्यूज़ को अपने घर का दामाद ही बना लिया है। अब आज की ही बात ले लीजिये। राखी सावंत ने अपने प्रेमी को थप्पड़ मारा तो यह देश के सबसे तेज न्यूज़ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ बन गई। इस चैनल ने इस पूरे ड्रामे पर एक विशेष कार्यकर्म तक दिखा डाला। जबकि यह सबको मालूम है की यह पुरा ड्रामा केवल और केवल पब्लिसिटी स्टंट था। जिस प्रकार वो सारा ड्रामा दिखाया गया निश्चत रूप से राखी ने उसके लिए कई दिन तक प्रेक्टिस की होगी अब ये उन महान लोगो को कौन बताये। ये हाईटेक पत्रकार तो बस मॉल बेचने मी जुटे हैं। यही करना है तो मेरी राय है की न्यूज़ चैनल बंद कर कोई ड्रामा चैनल खोल लें। लेकिन इस पेशे को स्वरूप को बिगाड़े नहीं। कुछ लोगों का तर्क हो सकता है की आख़िर २४ घंटे तक न्यूज़ ही तो नही दिखाया जा सकता ना। हाँ ये सच है लेकिन इसका विकल्प वो चीजें हैं जीना ख़बर से कोई रिश्ता ही नही। क्या सांप, भूत, ड्रामा दिखाना पत्रकारिता है।अब बात करते हैं प्रिंट मीडिया की। लोकलीकरण के नाम पर अख़बारों में जो गंदगी भरी जा रही है वह वाकई में शर्मनाक है। रास्ट्रीय स्तर के अख़बार जब येसा उदाहरण पेश करेंगे तो यह पत्रकारिता के गांड मारने जैसी ही बात है। अख़बार का पहला पन्ना उस अख़बार की सबसे सजी और काबिल लोगों के हाथों बनाईं जाती है।जब पहले पन्ने पर ही नाली, कुदे और समस्याओं का अम्बार रहेगा और वह भी लोकल तो आप काहे के रास्ट्रीय अख़बार। और आप किसे बेवकूफ बना रहे हैं। अपने आप को। मेरे कहने का मतलब बस इतना है की सब कुछ कीजिये मगर पत्रकारिता को पत्रकारिता रहने दीजिये। माना की वक्त बदल रहा है चीजें बदल रही हैं लेकिन ख़ुद को बदलिए ना की पेशे के स्वरूप को।पत्रकार सथिओं एक मुहीम चलाओ और पत्रकारिता को उसका खोया स्वरूप वापस दिलाओ।अबरार अहमद

हिंदू संस्कृति पर आलेख आमंत्रित हैं:अविलम्ब प्रेषित करें

कुछ मित्रों ने सलाह दिया की ब्लॉग पर हिंदू संस्कृति से संबंधित आलेख भी छापो। आलेख अब तक नही मिला कुछ चित्र ही छाप रहा हुं,अगर कोई लेखक आलेख देना चाहते हैं ..........इस वेब साईट पर प्रेषित करें.

Wednesday, February 13, 2008

बेगुसराय की चन्द तसवीरें

बेगुसराय की मैडोना
बरौनी की नामी बालिका टीम (चित्र :बी बी सी न्यूज़)
बसही की त्रासदी
आई ओ सी पार्क
विप्लावी पुस्तकालय
कारगिल विजय भवन
रिफाइनरी
मंगला गढ़
कांवर झील नौलखा मन्दिर

यह कुत्ता सड़क की क्वालिटी बता रहा है शायद.....

क्या सोच रहे हैं आप ..............बिहार की सडकों की क्वालिटी ऐसी ही है

ब्लॉग की खूब चर्चा हो रही है :इस बार मिलिए मंगलेश डबराल से

ये तेरा ब्लॉग, ये मेरा ब्लॉग मंगलेश डबराल, (वरिष्ठ कवि/पत्रकार) यह अच्छी बात है कि हिंदी में ब्लॉग की दुनिया बढ़ रही है। शौकिया ढंग से चलाए जा रहे ज्यादातर ब्लॉग कविताओं, कहानियों, अनुवादों, टिप्पणियों, मीडिया विमर्श, वाद-विवाद प्रतिवाद, गीत-संगीत, माया संस्मरण स्मृति, मोहल्लेदारी, भाईचारे की भावना और जन्मदिन की शुभकामनाओं से भरे हुए हैं। उनमें एक आपसी लगाव इसलिए भी दिखता है कि उनके आयोजक स्वाभाविक रूप से मिलते जुलते हैं, ब्लॉगों के बारे में पत्र पत्रिकाओं में अनुकूल किस्म की टिप्पणियां भी प्रकाशित होती हैं। ऐसे में लगता है कि बाजारवादी और वर्चस्ववादी मुख्य धारा के मीडिया के बरक्स यह वैकल्पिक माध्यम आने वाले वर्षों में हाशियों की अस्मिता का एक प्रभावशाली औजार बनेगा, हमारे जैसे देश में जहां मुख्य मीडिया वास्तविक सूचनाओं, तथ्यों और सत्यों को प्रकट करने से ज्यादा छिपाने का काम करता हो, ऐसे वैकल्पिक माध्यम और जरूरी हैं। लेकिन ब्लॉग की अवधारणा और उसके उद्देश्यों के समर्थक इन पंक्तियों के लेखक का एक दुख यह है कि उसे 6 दिसंबर 2007 को बाबरी मस्जिद ध्वंस के पंद्रहवें वर्ष पर ब्लॉगों के हलचल-भरे संसार में सिर्फ 'कबाड़खाना' नामक एक ब्लॉग पर कैफी आजमी की कविता 'दूसरा वनवास' के अलावा कुछ नहीं मिला। इससे कुछ समय पहले अमेरिकी इंडियन मूल के कवि एमानुएल ओर्तीज की एक अद्भुत कविता 'इस कविता को शुरू करने से पहले दो मिनट का मौन' अमेरिकी ब्लॉगों पर बहुत चर्चा में रहने के बाद 'महल' में प्रकाशित हुई थी, जिसका हिंदी अनुवाद कवि असद जैदी ने किया था, उम्मीद थी कि यह कविता जरूर किसी ब्लॉग पर चिपकी हुई दिखेगी क्योंकि यह 11 सितंबर को अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हुए हमलों में मारे गए मासूम लोगों के बहाने तीसरी दुनिया में अमेरिका द्वारा किए गए अन्यायपूर्ण हमलों का शिकार हुई मानव जाति के प्रति एक महान शोकांजलि की तरह है और एक हद तक आलोकधन्वा की 'जनता का आदमी' और 'गोली दागो पोस्टर' की याद दिलाती है। लेकिन यह कविता हिंदी के ब्लॉगों से बाहर ही रही, हालांकि अमेरिका और यूरोप में वह सैकड़ों ब्लॉगों पर मौजूद है और 2002 से अमेरिकी सत्ता के विरोधियों-आलोचकों के बीच चर्चित हो रही है। दरअसल, पहले इराक युद्ध के बाद कम से कम अमेरिका में ब्लॉग की परिभाषा और उद्देश्यों में बड़ा बदलाव आया है और फिर दूसरे इराक युद्ध के दौरान अमेरिका का विरोध करने वालों ने जो ब्लॉग शुरू किए उनके कारण इसे 'ब्लॉग युद्ध' भी कहा गया। पश्चिम के ब्लॉगों ने सत्ताधारियों, बहुराष्ट्रीय निगमों और खासकर अमेरिकी व्यवस्था द्वारा मुख्यधारा के मीडिया में प्रचारित किए गए उन झूठों का पर्दाफाश भी किया है। अमेरिकी ब्लॉग आज एक सांस्कृतिक शक्ति बन चुके हैं। हिंदी ब्लॉगों से फिलहाल ऐसी उम्मीद करना उचित नहीं होगा, लेकिन यह तो संभव है कि वे अपने को मुख्य मीडिया के निरंतर और स्थायी विकल्प के रूप में ढालें और सांस्कृतिक स्तर पर विस्मरण के विरुद्ध काम करें। वर्तमान ब्लॉगों में यह भी नजर नहीं आता, उनमें ज्यादातर हल्का-फुल्का, गपशप का माहौल है या फिर गंभीरता के नाम पर छोटी-छोटी पॉलिमिकल बहसें हैं, जिनमें भड़ास या कुंठाएं निकाली जाती हैं या कोई सनसनीदार साहित्यिक चीज पेश की जाती है। पिछले दिनों एक ब्लॉग पर दो हिंदी कवियों के बारे में आरोपों-प्रत्यारोपों का ऐसा घमासान रहा कि कई ब्लॉग पाठकों को कहना पड़ा कि भई, बहुत हो गया अब बस कीजिए। इसी तरह एक स्फुट किस्म के समालोचक ने अचानक एक इंटरव्यू में कुछ लेखकों पर अप्रत्याशित किस्म के फतवे जड़ दिए, तो एक लेखक ने त्रिलोचन शास्त्री के परिवार के प्रति मनमानी बातें कह डालीं, जिन्हें विरोध के कारण बाद में ब्लॉग से हटाना पड़ा। कुछ लेखकों के ब्लॉग शायद अनजाने में ही आत्म विज्ञापन का साधन बने हुए दिखते हैं, जिनमें उनकी रचनाओं के साथ उनकी आगामी पुस्तकों के चित्र भी चिपके होते हैं, तो कुछ ब्लॉगों में इस कदर भावुकता है जैसे बिछुड़े हुए भाइयों के लिए 'जहां कहीं हो लौट आओ' के संदेश दिए जा रहे हों। एक ब्लॉग पर मास्टर मदन के एक गीत को इस तरह प्रस्तुत किया गया जैसे वह अनुपलब्ध हो और ब्लॉग ने उसे खोज निकाला हो, तो एक चिट्ठाकार ने हिंदी के एक प्रमुख कवि के व्यक्तित्व पर निरर्थक ही अपनी राय दे डाली। यह सब दुरुस्त है, लेकिन जो असल चीज है, जो किसी ब्लॉग का व्यक्तित्व निर्धारित करती है, वह वैकल्पिक कथ्य कहां है? हिंदी ब्लॉग तमाम नेकनीयती के बावजूद अभी तक अराजनैतिक, व्यक्तिगत, रूमानी, भावुक और अगंभीर हैं, अगर मोबाइल फोनों के एसएमएस (शॉर्ट मैसेजिंग सर्विस) की तर्ज पर उन्हें एलएमएस (लांग मैसेजिंग सर्विस) कहा जाए तो क्या अतिशयोक्ति होगी, खासकर जब यह असंतोष ब्लॉग का एक गहरा पक्षधर व्यक्त कर रहा हो? क्या ब्लॉगों से गंभीर, वैचारिक, बौद्घिक होने की मांग करना अनुचित होगा, क्या यह कहना गलत होगा कि उन्हें उर्दू के सतही शायर चिरकीं की मलमूत्रवादी गजलों, लेखकों की निजी कुंठाओं और पारिवारिक तस्वीरों की बजाय एमानुएल ओर्तीज की कविताएं, एजाज अहमद की तकरीरें और तहलका द्वारा ली गई गुजरात के कातिलों की तस्वीरें जारी करनी चाहिए? संक्षेप में, ब्लॉगों को मुख्य मीडिया से ज्यादा जिम्मेदार होना होगा ताकि वे 'ब्लॉग-ब्लॉग' खेलने तक सीमित न रह जाएं।

Friday, February 8, 2008

ये कौन सी पत्रकारिता है भाई ज़रा हमे भी बताओ

पागलपन की भी एक हद होती है,लेकिन जब से ये टीवी चैनल वाले आये हैं सारा जायेका ही खराब कर के रख दिया है। अब जैसे इन्हें मसाला मिलता ही नही है कि दौड़ पड़े ये दिखाने कि कौन हग रहा है कौन मूत रहा है। अब आप ही बताइए अमिताभ को ठंढ लग गयी तो कौन महा प्रलय आ गया जो ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर परोस रहे हैं। इधर अपने गाँव में बुधिया कम्बल के बिना मर गयी, पुरा मजदूर टोला खुले आसमान में पूस की रात बीताता है,हनुमान मंदिर के सामने अभी भी अनाथ बच्चे मिट्टी फांकने को मजबूर हैं लेकिन उन कथित पत्रकारों को ये नही दीखता है। उन्हें टी आर पी से मतलब है वे इसे ही अपना पत्रकारिता मिसन समझते हैं।
अब आप इन्हें क्या समझ रहे हैं वह मैं भी समझ रहा हुं तो फिर अपनी टिप्पणी दे ही दें।

परवेज सागर को मिला बेस्ट क्राइम रिपोर्टर ऑफ़ इअर का अवार्ड

'' अक्षर जीवी '' की तरफ से परवेज सागर को हार्दिक शुभकामनाएं मीडिया जगत के प्रतिष्ठित ''नेशनल मीडिया एक्सेलेन्सी अवार्ड'' के लिए नामित किये गए परवेज सागर को ''बेस्ट क्राइम रिपोर्टर ऑफ़ इअर'' का पुरस्कार प्रदान किया गया। अपने विशेष शैली से पत्रकारिता जगत में काम कर रहे श्री सागर के नाम और कई उपलब्धियाँ हैं। यह अवार्ड दिल्ली में जहरीली सब्जिओं पर केद्रित की गयी रिपोर्टिंग के लिया दिया गया है। केन्द्रीय मंत्री मंगत राम सिंघल ,झादखंड के मुख्यमंत्री मधु कोडा व अन्य गणमान्यों की उपस्थीती में राजस्थान के गृह मंत्री गुलाब चन्द्र कटियार ने परवेज सागर को सम्मान से नवाजा। लगभग दस वर्षों से पत्रकारिता जगत से जुडे परवेज सागर ने साहस का परिचय दे कर अनेक उल्लेखनीय रिपोर्टिंग की है, उनके साथ काम करने वाले उनके कार्य के प्रति समर्पण से भली भाँती अवगत हैं। उनके सम्मान की ख़ुशी में हम बेगुसराय के सारे पत्रकार उन्हें हार्दिक बधाई देते हैं।

Thursday, February 7, 2008

ब्लोग पंचायत के नाम से नियमित स्तंभ प्रारंभ :बेगुसराय के ब्लोग लेखकों का एक नया प्रयास

इ-गवर्नेंस लागू करने की सरकार की मंशा निश्चित ही सूचना और प्रौद्योगिकी को स्वीकार कर समाज को तकनीक युक्त कौशल प्रदान प्रदान करना है। सूचना के अधिकार के प्रभावी होने,समस्त थानों को कंप्यूटर से जोड़ने की प्रारंभ कवायद वीडियो कोंफेरेंसिंग के माध्यम से मुख्यालय का ज़न्पद से सीधा सम्पर्क,पंचायतों के मुखिया को कंप्यूटर से जोड़ने की कवायद से ऐसा लगता है कि जैसे सचमुच हमारी सोच वैश्विक होती जा रही है। और हो भी क्यों नही तकनीक ने मानव के वर्त्तमान स्वरूप को काफी प्रभावित किया है। ब्लोग के मंच पर बेगुसराय के प्रिंट मीडिया से जुडे कुछ पत्रकारों ने पंचायती व्यवस्था को केन्द्रित कर ''ब्लोग-पंचायत'' नाम से एक स्तंभ चला रहे हैं जिसमें जिला के विभिन्न पंचायतों के मुखिया के साक्षात्कार को उनकी कार्यप्रणाली,विकासात्न्मक सोच,रणनीती व अन्य सामाजिक पक्षों को उकेरा गया है। पत्रकारिता का आधुनिक संस्करण ब्लोग लेखन के लेखकों के द्वारा किया गया यह प्रयास किस हद तक सफल होता है यह तो भविष्य की बात है,लेकिन तकनीकी युक्त लेखन के लिहाज़ से कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। तो अब हम आपको ले चलते हैं पंचायती राज़ को ज़मीन पर उतारने की मुहीम में शामिल मुखिया के साक्षात्कार की तरफ,जहाँ बेगुसराय के विभिन्न पंचायतों के मुखिया बेबाक प्रश्न का बेबाक उत्तर दे रहे हैं. उपलब्ध सूची इस प्रकार है:-
  1. सुभद्रा देवी मुखिया ,गरहरा पंचायत १
  2. मो जफ़र आलम मुखिया बारो दक्षिणी
  3. बिन्दु देवी मुखिया फुलवरिया २
  4. धर्मेन्द्र सिंह मुखिया गरहरा २
  5. सुशीला देवी मुखिया दनियालपुर
  6. कुमारी संजू भारती लखनपुर पंचायत

इनके साक्षात्कार के अलावा और अन्य पंचायत प्रधान की सूची है जिनके द्वारा किये गए कार्यों एवं पंचायत के सम्यक विकास की अग्रगामी सोच से अवगत कराने की कोशिश में लगे इन ब्लोगरों के नव प्रयास को निश्चित ही सराहा जाना चाहिए.यह प्रयास ऐसे ही शुरू नही हो गया अभिव्यक्ति के मंच पर खुद को प्रस्तुत करने की सोच ले कर आये कुछ उत्साही पत्रकारों ने यह आइडिया दिया कि क्यों न पंचायत स्तर के क्रिया कलापों को वैश्विक स्तर पर ले जाया जाये और विमर्श की एक जमीन तैयार कर बहस के माध्यम से समस्याओं का समाधान तलाशा जाये। क्योंकि बड़ी सुखद अनुभूति होती है जब आप के विचार पर सुदूर देश के लोगों की त्वरित प्रतिक्रिया मिलती है,आपको समाधान सुझाए जाते हैं, नवीन जानकारी उपलब्ध करवाई जाती है। तो भैया हमने भी बस इसी रुप में शुरू किया है पंचायतों के सच से अवगत कराने की यह मुहीम, अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत करावें।

Tuesday, February 5, 2008

ब्लोग से कमाई भी चालू हो गयी है.

सचमुच ब्लोग लेखन विराट विस्तार पा रहा है. लेखन की इस आधुनिक शैली का जिस तरह से स्वागत किया जा रहा है उससे इसके दीर्घजीवी भविष्य की उम्मीद की जा सकती है। ''काकेश की कतरनें'' नामक ब्लोग पर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि ब्लोग धन कमाने का रोचक माध्यम बनता जा रहा है:-
कल रामचन्द्र मिश्र जी ने ऎडसैन्स से अपनी पहली कमाई को सार्वजनिक किया. इससे पहले रवि जी भी कह चुके हैं उनके ब्रॉडबैन्ड का खर्चा पानी भी ऎडसैन्स से निकल जाता है. यह अच्छे संकेत हैं और यह आशा जगाते हैं कि ऎडसैंस से कुछ कमाई की जा सकती है. मुझे लगता है कुछ और चिट्ठाकार भी होंगे जो कुछ कमाई कर पा रहे होंगे. यदि वह भी इस बात को सार्वजनिक करें तो यह अन्य चिट्ठाकारों के लिये प्रोत्साहन का काम कर सकता है. अब मैं अपनी बात करता हूँ. मैने पिछ्ले साल हिन्दी ब्लॉगिंग प्राम्भ की थी. पहले मैं वर्डप्रेस पर लिखता था बाद में मैने एक चिट्ठा ब्लॉग्स्पॉट पर भी बनाया. वर्डप्रेस पर आप विज्ञापन नहीं लगा सकते तो मैने भी केवल ब्लॉग्स्पॉट वाले चिट्ठे पर ही विज्ञापन लगाये. चार महीने में तीन डालर भी नहीं बन सके. फिर मैं एक डॉट कॉम हो गया यानि सितंबर में इस चिट्ठे पर अपने डोमेन पर शिफ्ट हो गया. विज्ञापन भी लगाये.लेकिन नतीजा ढाक के वही तीन पात. जनवरी तक यानि पहले पांच महीनों में सिर्फ सत्रह डॉलर. इसलिये मोह भंग सा हो गया. इसी बीच एक “सुभ चिंतक” ने कहा कि आपके पोस्ट में विज्ञापन की वजह से पढ़ने में दिक्कत होती है. तो पोस्ट में जो विज्ञापन थे उनको भी हटा लिया. मिश्रा जी ने जो चित्र दिखाया था उसके अनुसार उनका पेज सी टी आर (Page CTR) तीन प्रतिशत से ज्यादा था जो मेरे हिसाब से काफी अच्छा है. क्योंकि मेरा पेज सी टी आर (Page CTR) केवल 0.9 % है. मेरे गूगल खाते के अनुसार मेरे अबतक पिछ्ले पांच महीनों में चौदह हजार से ज्यादा क्लिक हुए जिसमें से केवल 129 लोगों ने ही विज्ञापनों में क्लिक किया. इसका कारण शायद यह भी रहा कि ना मैने अपने लेखन को और ना अपनी थीम को विज्ञापनों के अनुसार ऑप्टिमाइज किया. ब्लॉग प्रारम्भ करने का मेरा ल्क्ष्य था कि मैं हिन्दी में नियमित लिखता रहूँ और यह लक्ष मैने काफी हद तक पा लिया है. ऎडसैंस से कमाई मेरा लक्ष नहीं है (नहीं तो अंग्रेजी में ही लिखता) लेकिन यदि ब्रॉडबैंड का खर्चा निकल सकता है तो क्यों ना ब्रॉडबैंड लगा ही लिया जाय. तो अब मैं कुछ दिनों में ब्रॉडबैंड लगवा रहा हूँ इस आशा में कि शायद अगले साल तक इसका खर्चा निकल ही जाय. कल संजय तिवारी जी ने कहा कि हम एक दूसरे के विज्ञापनों पर क्लिक कर सकते हैं. मेरे विचार से यह मूर्खता होगी क्योंकि गूगल बाबा की तकनीक बहुत तेज है वो लोग जैन्युइन क्लिक और नॉन जैन्युइन क्लिक को आसानी से पहचान लेते हैं और फिर अकांउंट कैंसल करने में बिल्कुल भी देरी नहीं करते. रवि जी से निवेदन ही कि वह भी केवल हिन्दी के विज्ञापनों से होने वाली आय का कुछ आइडिया दे सकें तो यह और कई लोगों को प्रोत्साहित करेगा.

कैसे करें सूचना के अधिकार का उपयोग

क्या आप केन्द्र सरकार के किसी मंत्रालय या विभाग से कोई सूचना पाना चाहते हैं? या फिर आप यह जानना चाहते हैं कि सूचना के अधिकार का आप इस्तेमाल कैसे करें? आप हमें mailto:visfot@gmail.comपर संपर्क करें, हम आपकी मदद करेंगे. सूचना के अधिकार के तहत संबंधित विभाग से आप क्या सवाल पूछ सकते हैं? किसी सरकारी विभाग में लंबित मामले की जानकारी के लिए आप अपने आवेदन के समय निम्न बातें पूछ सकते हैं- मैंने एक नये…………..के लिए आवेदन किया था. अपने आवेदन के साथ मैं जरूरी कागजात संलग्न कर रहा हूं. आवेदन के बाद अब तक मुझे कोई संतोषजनक कार्यवाही देखने को नहीं मिली है. कृपया मुझे निम्नलिखित जानकारियों से अवगत कराएं 1. मेरे आवेदन पर नियमित रूप से क्या कार्यवाही हुई है, कृपया तिथिवार मुझे जानकारी उपलब्ध कराने की कृपा करें? 2. उन अधिकारियों का नाम और पद जिन्होंने संबंधित आवेदन को देख रहे हैं. कृपया मुझे बताएं कि किसी अधिकारी ने किस समय मेरे आवेदन पर क्या कार्यवाही की है. 3. कृपया मेरे आवेदन के साथ हुई प्रगति की रसीद और प्रूफ के साथ जानकारी दें. 4. आपके अपने नियम-कायदे के तहत इस तरह के आवेदन पर कितने दिनों में कार्यवाही करने का प्रावधान है. मुझे ऐसे प्रावधान की प्रति उपलब्ध करवाईये.

Monday, February 4, 2008

शुभकामनायें दिल से निकल ही जाती हैं...

HEARTIEST CONGRATULATIONS TO Mr.ABHISHEK(TATA MOTORS)AND Mr.SANJAY ARRIVED ON BEGUSARAI. जिन्दगी के कुछ पल इतने हसीं होते हैं,जिसे चाह कर भी नही भुलाया जा सकता है। खास कर अपनो से मिलने का वह खूबसूरत क्षण ,एक नयी जिन्दगी में खुशिओं से खेलने की अजीब लालसा और भी बहुत कुछ साकार होता है जब कोई अपना बिल्कुल करीब होता है।

Sunday, February 3, 2008

भडास की संख्या २०३ हो गयी:कमाल हो गया मामू

हिन्दी ब्लोग के बेबाक,बिंदास बादशाह यशवंत सिंह का नाम इंटरनेट की दुनिया में परिचय का मोहताज नही है। हिन्दी को व्यापक विस्तार देने और लोर्ड मैकाले की औलादों को हिन्दी की ताकत का एहसास कराती उनकी मुहीम में हम सब यशवंत भैया के साथ हैं । आप पाठकों के लिए उनके लिखे इस लेख को प्रस्तुत करते हुए ख़ुशी हो रही है:- भडास की दुकान तो चल निकली है। भड़ासियों ने मुंह खोलना शुरू कर दिया है। नए नए लोग भड़ासी बन रहे हैं। रोजाना पांच से दस पोस्टें भड़ासी लिख रहे हैं। आनलाइन माध्यम में हिंदी की जय जय के इस दौर में हिंदी वाले साथियों ने आत्मविश्वास का एक नया मुहावरा सीखा है। अंग्रेजी नहीं आती तो नहीं आती, बला से। हिंदी आती है तो यह काफी है। आप दुनिया से हिंदी के जरिये जुड़े रह सकते हैं। मित्रों से हिंदी में चैट कर सकते हैं। अपने दिल की बात हिंदी में कह सकते हैं। अपने आफिस का काम हिंदी में कर सकते हैं। हालांकि आफिस वाले मामले में अभी थोड़ी दिक्कत है क्योंकि ढेर सारे आफिसों में लार्ड मैकाले की संतानें अब भी अंग्रेजी में ही सब कुछ करने को कहती हैं लेकिन अगर हिंदी वाले अपने साथी इसी तरह आत्मविश्वास से हिंदी की जय जय करते रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं कि लार्ड मैकाले की संतानें अल्पमत में पड़ जाएंगी और फिर उनकी अंग्रेजी को आफिसों से खदेड़ दिया जाएगा। बस, थोड़ा इंतजार करिए। ये जो ब्लागरों की फौज तैयार हो रही है, हिंदी की, वो इन सब काले अंग्रेजों की ऐसी-तैसी करने ही वाली है और कर भी रही है। भड़ास से रोज नए साथी जुड़ रहे हैं और अब सबका नाम याद रख पाना मेरे लिए कठिन हो रहा है। इसलिए नए साथियों से क्षमा मांगते हुए कहना चाहूंगा कि कोई आपकी पोस्ट पर कमेंट करे या न करे, आप अपनी बात लिखना जारी रखो। और हां, हो सके तो खुद का भी एक ब्लाग बना लो। भड़ास तो कम्युनिटी ब्लाग है जहां अब 203 सदस्य हो चुके हैं। यहां आप जो लिखेंगे वो पूरी दुनिया पढ़ेगी, पूरा देश पढ़ेगा। आपकी बात सब तक पहुंचेगी। पर जब आप अपना ब्लाग बनाते हैं तो न सिर्फ अपने व्यक्तित्व व आइडेंटिटी को एक आनलाइन शक्ल देते हैं बल्कि आनलाइन माध्यम में अपना एक कोना भी रखते हैं। जरूरी नहीं कि ब्लाग बना लें तो रोज ही लिखें, लेकिन महीने पंद्रह दिन में अपने ब्लाग पर भी लिखें। इससे आगे चलकर आपको कई तरह के फायदे मिल सकते हैं। ब्लाग बनाएं तो यूं ही न बनाएं, उसका एक मतलब भी हो। उसके साथ एक दूर दृष्टि भी जुड़ी हो। ऐसे फील्ड पर ब्लाग बनायें जो अब तक न बना हो। मसलन आप कूड़ा बीनने वाले बच्चों के उपर एक ब्लाग बना सकते हैं और उन के बारे में जहां जो कुछ छप रहा हो, उसे अपने ब्लाग पर डाल सकते हैं। मतलब, आप का ब्लाग किसी एक फील्ड का विशेषज्ञ ब्लाग हो तो इससे भविष्य में न सिर्फ आपको एक पहचान मिलेगी बल्कि व्यावसायिक फायदा भी मिल सकता है। मैं तो सिर्फ यह बताने के लिए लिख रहा था कि भड़ासियों की संख्या आज 203 हो गई, पर इतना सारा लेक्चर झाड़ डाला। चलिए, अगर लेक्चर काम का लगा तो टैंकू, न लगा तो सारी....जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 0 comments Links to this post

बेगुसराय की मिट्टी के लाल ने अपने गणितीय सिद्धांत से दी विश्व के गणितज्ञों को चुनौती

अजीब संयोग है, कुछ दिन पूर्व विश्व विख्यात गणित के शिखर पुरुष वशिष्ठ नारायण सिंह की मानसिक संतुलन जब बिगड़ गयी थी तो समूचा चिकित्सा जगत उनकी मानसिक दशा को सही नही कर पाया लेकिन अंत में बेगुसराय की मिट्टी ने ही उनकी मानसिक स्थिति को वापस लाने जैसे चमत्कार से सबों को आकर्षित किया था। बरौनी के एक युवा चिकित्सक रविशंकर को इस उपलब्धी का श्रेय जाता है। अभी इसकी चर्चा थमी ही नही थी कि इसी जिले के एक युवा ने अपने गणितीय सिद्धांत को सामने लाते हुए आई आई टी के दो प्रश्नों को ही गलत करार देकर चुनौती दी है कि इस प्रश्न को विभिन्न लेखक सही समझ कर उत्तर दिए जा रहे हैं जबकि प्रश्न ही गलत है। भारत की उत्क्रीष्ट तकनीकी संस्थान के द्वारा दिए गए प्रश्न को गलत साबित कर यह युवा चर्चा के केन्द्र में है। पिछले दिनों पटना के कालिदास रंगालय में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र,वर्त्तमान मंत्री नन्द किशोर यादव, अनिल कुमार और अन्य गणमान्य व्यक्तिओं की उपस्थिति में युवा पंकज को गणित के क्षेत्र में नए सिद्धांत बनाने के लिए ''बिहार गौरव'' और ''बिहार रत्न'' से सम्मानित किया गया। बेगुसराय जिला के बलिया अनुमंडल अंतर्गत बांक निवासी पंकज की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा साधारण परिवेश में ही हुई लेकिन अपने मेहनत और नित नवीन करने की चाहत ने पंकज को सम्मान के लायक बना दिया। वर्त्तमान में पंकज कंकडबाग में सक्सेस फेरस नाम से कोचिंग चला रहे हैं और इनके पढाये छात्र अभियांत्रिकी में सफलता के परचम लहरा रहे हैं। बेगुसराय आगमन पर पंकज ने एक प्रेस कोंफेरेंस आयोजित कर पत्रकारों को बताया कि उनके मेथड से पांच पन्नों में बनने वाला प्रश्न पांच लाइन में बन सकती है और मैंने जिस प्रश्न को गलत साबित किया है उसकी सत्यता की पुष्टी के लिए किसी भी विशेषज्ञ का सामना करने को तैयार हैं। अब पंकज के दावों को तो कोइ गणित का जानकार ही पुष्ट कर सकता है लेकिन उसने जिस तरीके से पूरे विश्व को चुनौती दी है उसमें यह किस हद तक सफल हो सकता है इसका इंतजार हम सबों को करना होगा। बहरहाल उन प्रश्नों को नीचे दिया जा रहा है जिसे पंकज ने गलत साबित किया है अगर आप कोइ टिप्पणी देना चाहते हैं तो लिंक पर जाएँ।
  • if one root of the quqdrqtic equation ax2+bx+c=0 is equal to the nth power of other then show that (acn)1/n+1+(anc)1/n+1+b=0 (I.IT-1983)

Saturday, February 2, 2008

आर के करंजिया के निधन से पत्रकारिता के एक युग का अंत

''बोल हल्ला'' नामक ब्लोग पर एक दर्दनाक खबर देखा,आशीष महर्षी ने भाव भीनी शब्द पुष्प अर्पित किये हैं :- आर के करंजिया जी अब हमारे बीच नहीं रहे। वैसे भी इस दुनिया को किसी के रहने को और नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। दुनिया अपनी गति से चलती रहेगी। और हम सब उन्‍हें भावभीनी श्रद्वांजलि देकर अपने अपने फर्ज को पूरा कर लेंगे। लेकिन फर्क उन्‍हें पड़ता है जो कि दुनिया बदलना चाहते हैं। जो एक बेहतर भविष्‍य की कल्‍पना करते हैं और इस दिशा में कार्य करते हैं। करं‍जिया जी का जाना किसी अखबार में कहीं कोने की खबर बन सकता है लेकिन बोल हल्‍ला और उससे जुड़ी मानसिकता वालों के लिए यह एक खबर नहीं है। बल्कि यह एक युग का अंत है।करंजिया जी के बारें में सबसे मैने अपनी पत्रकारिता की पाठशाला में पढ़ा था। हमारे एक शिक्षक ने हमें पढ़ाया था कि भारतीय पत्रकारिता के क्षेत्र में करंजिया जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कल शाम को जब उनके निधन का समाचार मिला था तो अचानक साढ़े तीन साल पहले के वो दिन याद आ गए, जब मैं माखन लाल पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय में पत्रकारिता की शिक्षा ले रहा था। उस समय करंजिया जी मेरे लिए एक अध्‍याय थे । आज मैं उन्‍हीं के शहर में हूं और महसूस कर सकता हूं कि आज से कई दशक पहले उन्‍होंने कैसे पत्रकारिता की थी। भारत में खोजी पत्रकारिता का यदि कोई पितामाह है तो वह सिर्फ और सिर्फ आर के करंजिया जी हैं। करंजिया जी ने खोजी पत्रकारिता की उस समय शुरुआत की थी जब इस देश में इस शब्‍द को कोई जानता ही नहीं था।भारत में पहले टेबलायड समाचार पत्र की शुरुआत करने वाले आर के करंजिया जी का कल मुंबई में निधन हो गया। संभवत: यह दुनिया का पहला संयोग होगा कि करंजिया ने अपने जिस प्रसिद्ध अखबार ब्लिट्ज की शुरुआत की वह भी एक फरवरी को हुई और उनका खुद का देहांत भी एक फरवरी को हुआ। 15 सिंतबर, 1912 को जन्‍मे करंजिया उस समय के जाने माने फिल्‍म पत्रकार बीके करंजिया के भाई थे। करंजिया मुंबई में अपनी पुत्री और सिने ब्लिट्ज की संपादक रीता मेहता के साथ रहते थे।करंजिया की लेखनी आक्रामक ढंग की थी जिसने देश विदेश में उनके पढ़ने वालों की संख्‍या में जोरदार इजाफा किया। दूसरे विश्‍व युद्ध में उन्‍होंने युद्ध संवाददाता की भूमिका निभाई। 1945 में उन्‍होंने इंडियन नेशनल आर्मी और उसके मुखिया नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विशिष्‍ठ फोटो छापकर अपने को सभी के बीच चर्चा में ला दिया। उन्‍होंने विंस्‍टन चर्चिल, चार्ल्‍स दी गाल, ख्रुश्‍चोव, जवाहर लाल नेहरु, टीटो, यासर अराफत, ए जी नासिर समेत दुनिया की कई महान हस्तियों का इंटरव्‍यू लिया। भारतीय शेयर बाजार में हुए पहले आर्थिक घपले के अभियुक्‍त हरिदास मूंदडा के साथ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी की मिलीभगत को करंजिया ने उजागर किया। बिल्‍ट्ज के पूर्व संपादक सुधीन्‍द्र कुलकर्णी का इंडियन एक्‍सप्रेस में करंजिया पर छपे लेख का लिंक यहां पढ़े। बोल हल्‍ला की ओर से इस महान पत्रकार को भावभीनी श्रद्धां‍जलि। Posted by आशीष महर्षि at 3:22 PM 1 comments Links to this post

Friday, February 1, 2008

एक तरफ चमकताभारत एक तरफ तड़पता भारत:सीताराम येचुरी

मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा स्थानीय गांधी मैदान बेगुसराय में चित्रवत मजुमदार मंच पर आज खुला अधिवेशन का आयोजन किया गया जिसमें जनसमूह को संबोधित करते हुए मार्क्सवादी चिन्तक ,मार्क्सवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य एवं संसदीय दल के नेतका० सीताराम येचुरी न कहा कि एक तरफ चमकते भारत की काल्पनिक कहानी का चकाचौंध दिख रही है तो दूसरी तरफ आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्स्स्सा भूख से तड़प रहा है। पूंजी का केन्द्रीकरण एक खास वर्ग के हाथों में होती जा रही हैऔर समाज का मजदूर वर्ग और अधिक गरीब होता जा रहा है।
भीड़ को संबोधित करते हुए श्री येचुरी ने देश की वर्त्तमान परिस्थिती को नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि जब तक विकास तथा तरक्की की रोशनी जमीनी स्तर पर नही दिखेगी तब तक विकास की बातें करनी बेमानी होगी। उन्होने संप्रग सरकार पर जमकर बरसते हुए कहा कि अगर गरीबों के हितों की अनदेखी की गयी तो उनकी पार्टी गठबंधन से नाता तोड़ने में भी नही चुकेगी। देश के किसान रोज आत्महत्या कर रहे हैं,कृषि पर संकट के काले बादल मंडरा रहे रहे हैं,भूखमरी की खबरें रोज आ रही है और मनमोहन सिंह गर्व से कहते फिर रहे हैं कि आजादी के बाद पहली बार भारत ने आर्थिक विकास दर में ९ फीसदी के लक्ष्य को छुया है। उन्होने कहा कि देश का विकास इस तरह से कभी संभव नही है। सबों को एकमत हो कर गंभीर मंथन करने की आवश्यकता है तभी देश तरक्की कर सकता है।
इस अधिवेशन में कोमरेड एस रामचंद्रन पिल्लै ,कोमरेड हन्नान मोल्ला,कोमरेड गणेश शंकर विद्यार्थी,.कोमरेड राजेंद्र राजन,कोमरेड सुबोध राय और पूर्व विधान पार्षद वासुदेव सिंह उपस्थित थे।