रुपेश जी के सक्रिय ब्लॉग लेखन से कहीं ज्यादा उनके सेवा भाव ,करुना को बाँटती उनके आँचल के छाँव तले पीड़ित भारत चंगा हो रहा है, ऐसा सुना, काफी खुशी हुई । समय ,समाज,परिस्थिति को यही चाहिए भी। हजारों,लाखों,करोरों मतलब हर घर में रुपेश जी जैसी मनोवृति पनप जाए तो समझो सड़ी सभ्यता का एक हिस्सा ख़ुद-ब-ख़ुद गुनगुनाने लगेगा। रुपेश भाई ने एक जगह लिखा था की''क्या हुई जो सांझ निगल गयी''शब्द में इतने आदर,सम्मान,आमंत्रण और आशीर्वाद के छंद मिले की उन्हें पंक्तिबद्ध करने से ख़ुद को रोक नही सका और आज की शाम कुछ इस रूप में हाजिर हुं।आपकी बौधिक जुगाली का एक मात्र अंश बनने का आकांक्षी .......मनीष राज डॉक्टर साहब, सांझ ने नही झूठ के आवरण में लिपटे सच और परिवेश के आदरणीय कठोड़,बर्बर,रूढ़,तथा कथित आडम्बरों की जीवंत प्रतिमाओं ने निगला है हम जैसे अंकुरित हो रहे नवंकुरों की कोमल पत्तीओं को अपने जड़ सिध्हंतो एवं बोझिल परम्पराओं के साथ मिलकर कुचला है हमे। आपके द्वारा निर्मित किए गए समाज,परिवेश और उनमें रहनेवाली उपेक्षित प्रजाति को शिद्दत से महसूस करते हैं हम,उनके दर्द,उनकी बेचैनी,उनका उत्साह,उनकी उद्दंडता ,उनकी हँसी,उनका रुदन,उनकी आशाएं ,उनकी निराशाएं,सबों की इन अनुभुतीओं से रोज साक्षात्कार होती है हमारी। उनके जीए गए पलों की तासीर इतनी गहरी है की उनको उपेक्षित करने की कल्पना से सिहर उठती है आत्मा हमारी॥ कोर्पोरेट वर्ल्ड और एल्लो कल्चर को नंगा होते देखता हुं यहाँ जब ''मनुष्य'' की इस उपेक्षित प्रजाति की वेवाशी के करीब होता हुं,उनके नंगे बदन और भूख से बिलबिलाते याचना के स्वर में अपनी मज्बुरिओं के स्वर मिलाकर मुठिआं भींच कर रह जाता हुं । जब देखता हुं की ये उपेक्षित माँ परसौती गृह से निकले बच्चे को चावल का मांड पिलाकर पोषण देती है तो सारे कम्प्लान और होर्लिक्स की एड लाइनों की चमक फीकी दिखती है मुझे॥ झाड़ झंकड़ के धुएं को अपने कलेजे में भर कर हांफती माओं,चाचिओं को देख कर आपके देश का सेंसेक्स हांफता नजर आता है मुझे । मुझे पीपल के पेड़ के नीचे बैठे असहाय,वक्त के गुलाम बने ताश की पत्तीओं की उलट फेर में अपना भविष्य तलाशते युवाओं को देख कर ''रोजगार परक सरकार देने का वादा'' करने वाले नीति-नियंताओं के दोहरे चरित्र पर शक और जकड कर अपनी नींव मजबूत करता दिखता है मुझे॥ मुझे रोज आत्महत्या कर रहे किसान की जवान बेतीओं के मर्मस्पर्शी उदगार और उसके परिवार में बचे रह गए अबोधों की आंखों की गहराई में कुछ चुभते प्रश्न कलेजा चीर कर रख देते हैं जब देखता हुं गाँव का कोई दबंग हमारे घर से अपने बकरी के लिए घास धुन्धने गयी जवान बहनों को फानका बहियार में बाजार कर दबंगई ,मर्दानगी का नंगा नाच दिखाता है॥ आठ वर्ष के बच्चे को निम्मक,मिर्चाई के साथ तेरह रोतिआं गिलते देखता हुं तो पिज्जा,बर्गर के स्वाद पानी से फीके दिखते हैं मुझे। हगने,मुटने वाला पेंदी लगा लोटे जिसे अभी गली का कुत्ता मुंह लगा कर गया है में पूरे संतोख के साथ पानी पीनेवाले अपनों को देखता हुं तो एक्वागार्ड और हेमा मालिनी मुंह चिधाती नजर आती है मुझे॥ मैं देखता हुं रोज आपकी आतिश बाजिआं , आँखे फाड़ कर आपको देख रही इस उपेक्षित आबादी में से एक बहन का परिवार बस जाएगा आपकी बीयर की बोतलों के चियर्स से गिरने वाले श्वेत फेनों के पैसों से.... मैं रैली में पधारे नेताओं के चक चक सफ़ेद कुर्तों और आश्वाशन भरी बातों और धुल उडाती ,लैंड करती हवाई जहाज के घिर्निओं को नही,मेरी निगाहें हैली पेड पर चुना छिड़क रहे घुठो काका की मज्बुरिओं पर टिकती है और कह जाती है आपका खोखला सच...... आठ वर्ष के बच्चे को निम्मक,मिर्चाई के साथ तेरह रोतिआं गिलते देखता हुं तो पिज्जा,बर्गर के स्वाद पानी से फीके दिखते हैं मुझे। हगने,मुटने वाला पेंदी लगा लोटे जिसे अभी गली का कुत्ता मुंह लगा कर गया है में पूरे संतोख के साथ पानी पीनेवाले अपनों को देखता हुं तो एक्वागार्ड और हेमा मालिनी मुंह चिधाती नजर आती है मुझे॥ मैं देखता हुं रोज आपकी आतिश बाजिआं , आँखे फाड़ कर आपको देख रही इस उपेक्षित आबादी में से एक बहन का परिवार बस जाएगा आपकी बीयर की बोतलों के चियर्स से गिरने वाले श्वेत फेनों के पैसों से.... मैं रैली में पधारे नेताओं के चक चक सफ़ेद कुर्तों और आश्वाशन भरी बातों और धुल उडाती ,लैंड करती हवाई जहाज के घिर्निओं को नही,मेरी निगाहें हैली पेड पर चुना छिड़क रहे घुठो काका की मज्बुरिओं पर टिकती है और कह जाती है आपका खोखला सच...... मैंने भुगता है हर कदम पर दंश झेली है पीडा .....रोज भुगतता हुं,रोज झेलता हुं इन दर्द के ह्रदय विदारक क्षण को अभी भी जी कर आया हुं.....इस की बोर्ड पर थिरकती मेरी उंगलियाँ प्रत्यक्ष गवाह हैं मेरी तल्ख़ सच्चाईओं की की इन्ही हाथों से गोबर उठाकर, परा पारी को सानी पानी लगा कर ,इन्ही हाथों से आये हैं आप बुधिजीविओं ,विद्वानों की दुनिया में वक़्त के बेरहम कपाल पर अपनी उत्कट जीजीविषा और अभिलाषाओं की मुहर लगाने... हम इन उपेक्षितों,अपनों की वेव्शी में शामिल हो जाते हैं ,उनके साथ हंस लेते हैं,उनके साथ गा लेते हैं,उनके साथ रो लेते हैं,लेकिन जब कभी अकेले होते हैं तो छलछला जाते हैं हम अपनी मज़बूरी के आगोश में जकड़े ''उपेक्षित'' हम आपकी गगनचुम्बी इमारतों में बन रही योजनाओं का हिस्सा नही बन्ना चाहते हैं,और न ही चाहते हैं की आप भद्र आस के बीच हास्य का पात्र बनाना या क्रंदन हृदय्वेधि चीख से आपकी सोई आत्माओं के दरवाजे को खुलवाना...... हमे चाहिए भी नही आपका संबल ,क्योंकि हमने अब अपना रास्ता खुद चुन लिया है ....वर्षों के अथक अनवरत परिश्रम और मंथन के बाद सृष्टि-सागर में मेरी तरह उपेक्षित पडी ''गाली'' का साथ मिल गया है हमें॥ हम महात्मा की संतानें हैं,बुधः की भूमि के उपज हैं ॥अहिंसा से आपका ध्यान खीचेंगे अपनी तरफ....हमे गोलिओं का शोर पसंद नही..हमने देखा है हजारों मरती आत्माएं,अव्यक्त अभिव्यक्तीओं को इन गोलिओं के शोर में दबते देखा है हमने....विद्वानों,जरा सुनो स्वतंत्रता का अतिक्रमण उछ्रिन्न्ख्लता है तो अहिंसा की हद गाली ही हो सकती है। आप बुध्हिजिवी ही तय करें ''गोली और गाली'' क्या हो उचित इस व्यवस्था से त्राण पाने के लिए ?निश्चित ही संधिस्थल साबित होगी हमारी गाली तो बस इसी नजरिये से दीजिये न विमर्श को आधार ...प्रश्न बनाइये न '''गोली और गालीक्या हो विकल्प ? और जिस दिन गाली हमारी सामुहिक आवाज बन जायेगी विधान सभाओं क्या संसद की छाती पर चढ़कर,ताल थोक करअपने हक़ हुकुक को लेंगे हम कमीने,जलील,काहिल,उपेक्षित,हरामी,कुत्ते,भौन्सरी,जूठन,भादासी.....हाँ ,हम उपेक्षित आबादी भादासी हैंजे भडास जे यशवंत मनीष राज बेगुसराय Posted by MANISH RAJ 0 comments Links to this post
Wednesday, February 20, 2008
Tuesday, February 19, 2008
प्रेम नारायण मेहता की पुण्य तिथी कवि सम्मेलन के साथ हुई संपन्न
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 1:35 AM 0 टिप्पणियाँ
Monday, February 18, 2008
साथी मनीष राज..........बेगुसराय वाले हम हार कर भी जीतेंगे.....
जी संबल,सहारा शायद इसी को कहते हैं,कोई दूर बैठा वैचारिक दोस्त आज मेरे नाम संबोधित पत्र में कुछ कहना चाहता है ....कुछ सलाह देना चाहता है, कुछ सिखाना चाहता है ताकि तुम इस अनजानी दुनिया में संभल-संभल कर चल सको.........धन्यवाद यशवंत भाई...... साथी मनीष राज, बेगूसराय वाले.....हम हार के जीतेंगे !!! मनीष राज जी, बेगूसराय वाले....आपने जो ये वाली पोस्ट डाली है, जिसे हटाकर मैं ये सब बातें लिख रहा हूं, वो हम भड़ासियों के बीच ही विवाद पैदा करने वाली है। इसीलिए बतौर माडरेटर व एडमिन, मैं इसे हटा कर आपके नाम एक प्यारा से ये खत लिख रहा हूं।आपसे आज फोन पर बतियाकर अच्छा लगा। इतने दूर होकर भी आप भड़ास से जिस कदर जुड़े हुए हैं, जितने उत्साह व आत्मा से अपनी बात रखते हैं, मैं उसका कायल हूं। बात करते हैं भड़ास की दशा-दिशा संबंधी विवाद पर, जिसके एक पक्ष को मैं और आप आवाज देते हैं और दूसरे पक्ष का डा. रुपेश, पूजा समेत ढेर सारे साथी प्रतिनिधित्व करते हैं।मैं और आप न तो पूजा की बात के खिलाफ हैं, न डा. रुपेश जी के। दरअसल, देखा जाए तो ये विवाद कोई विवाद नहीं बल्कि भड़ास को सार्थक बनाने की पहल का है। और इसी तरह के अनवरत मंथन से अमृत निकलेगा। हम सब अलग-अलग सोच, बैकग्राउंड, शहर, मजबह, पेशे....के होने के बावजूद आत्मा से भड़ासी हैं। सरल सहज लोग हैं। और ये गुण सारे भड़ासियों में है, तभी वो भड़ास के सदस्य हैं। ये अलग बात है कि मात्रा किसी में कम या ज्यादा हो सकती है। अगर मंजिल एक है तो रास्ते अलग अलग भी हों तो क्या दिक्कत है। आत्मा एक है और शरीर अलग अलग है तो क्या दिक्कत है। पूजा ने जो कहा है, और उनके समर्थन में जो साथी हैं, वो भी उतने ही सच्चे भड़ासी हैं, जितने कि मैं और आप जो भड़ास पर अपने तरीके से लिखना जीना चाहते हैं। और ये जो एकता में विभिन्नता है, यही तो रंग बिरंगे फूलों के गुलशन की नींव है। अगर सब एक तरह के हो जाएं, एक तरह से सोचें, एक जैसा ही लिखें तो फिर मामला एक रस नहीं हो जाएगा? डा. रुपेश जी हम लोगों से काफी बड़े हैं, काफी अनुभवी हैं, वो सच्चे मायने में भड़ासी हैं क्योंकि हम लोग तो नौकरी वौकरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं, वो तो झोला उठा कर झुग्गी झोपड़ियों और गरीबों के बीच घूम कर उन्हें न सिर्फ मुफ्त इलाज देते हैं बल्कि उन्हें संगठित करने उनके हक के लिए लड़ते हैं। वो सच्चे अर्थों में सच्चे मनुष्य हैं। वो एक तरह से हम भड़ासियों के गार्जियन भी हैं। अगर वो किसी भड़ासी का कान उमेठते हैं तो ये उसे-हमें अपना सौभाग्य मानना चाहिए।मनीष जी, मुझे ये पोस्ट हटाने के लिए माफ करेंगे क्योंकि दरअसल इस पोस्ट में पूजा की पोस्ट के कमेंट थे और आपने बस उपर एक लाइन और नीचे एक लाइन लिखा था, जो मेरे हिसाब से इसलिए आपत्तिजनक है क्योंकि इससे भड़ासियों की एकता में दरार पैदा हो सकती थी, ऐसी मेरी आशंका थी। हो सकता है मेरी आशंका गलत रही हो लेकिन मुझे इस पोस्ट को हटाने का निर्णय लेना पड़ा। मनीष जी, भड़ास को अभी लंबा रास्ता तय करना है सो एकता बहुत जरूरी है। यह एक बड़ा परिवार है, औघड़ों का परिवार है, बंजारों का परिवार है, सच्ते दिलों का कुनबा है। और जब इतने बंजारे, आवारे, औघड़ एक जगह इकट्ठे हों तो वहां हंगामा तो बरपेगा ही। तो इसमें जरूरी यह है कि हम हर स्थिति में मुस्कराते रहें और एक दूजे को सम्मान देते रहें। आपका भड़ासी साथीयशवंत सिंह Posted by MANISH RAJ 0 comments Links to this post
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 9:09 PM
Sunday, February 17, 2008
''भडास'' नामक ब्लॉग के डॉक्टर रुपेश की प्रतिक्रिया के साथ ही १००० पोस्ट का मालिक बना भडास :१०००वे पोस्ट की एक झलक
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 5:56 AM 0 टिप्पणियाँ
Saturday, February 16, 2008
यशवंत भाई ने तो गज़ब कहा........क्या सचमुच ऐसा होता है.
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 4:53 AM
Friday, February 15, 2008
मीडिया धंधा है पर गंदा नही :आशीष महर्षी की सोच
''बोल हल्ला'' ब्लॉग अब परिचय का मोहताज नही है,ख़ास कर सार गर्भित आलेखों के लिए। इस ब्लॉग के मोदेरेटर आशीष महर्षी धीरे-धीरे हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में अपना पैर जमा रहे हैं। इस बार हम उनके आलेख को आप तक पहुंचा रहे हैं,अपनी राय जरूर दीजियेगा :-
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:35 AM 0 टिप्पणियाँ
Thursday, February 14, 2008
पत्रकारिता का यह कौन सा रूप है?
''भड़ास'' पर अबरार अहमद नाम के एक लेखक ने ''गार मार ली पत्रकारिता की''नाम से एक आलेख लिखा है।जनाब ने टू शीर्षक ही ऐसी दी है की उल्टी हो जाए ,फ़िर भी हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं:== शीर्षक से कई लोगों को आपत्ति हो सकती है। पर कुछ लोगों ने वाकई हद कर दी है। देश का चौथा स्तम्भ कहलाने वाले इस पेशे को मटियामेट कर इसे खम्भा बनाने की पुरी कोशिश की जा रही है। हो सकता है की जो देश के तथाकथित बड़े पत्रकार हैं वह एक नई पत्रकारिता गढ़ रहे हों। पर यह वाकई इस पेशे से दुष्कर्म जैसा है। यहाँ मैं प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक दोनों पत्रकारिता की बात कर रहा हूँ। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो ब्रेकिंग न्यूज़ को अपने घर का दामाद ही बना लिया है। अब आज की ही बात ले लीजिये। राखी सावंत ने अपने प्रेमी को थप्पड़ मारा तो यह देश के सबसे तेज न्यूज़ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ बन गई। इस चैनल ने इस पूरे ड्रामे पर एक विशेष कार्यकर्म तक दिखा डाला। जबकि यह सबको मालूम है की यह पुरा ड्रामा केवल और केवल पब्लिसिटी स्टंट था। जिस प्रकार वो सारा ड्रामा दिखाया गया निश्चत रूप से राखी ने उसके लिए कई दिन तक प्रेक्टिस की होगी अब ये उन महान लोगो को कौन बताये। ये हाईटेक पत्रकार तो बस मॉल बेचने मी जुटे हैं। यही करना है तो मेरी राय है की न्यूज़ चैनल बंद कर कोई ड्रामा चैनल खोल लें। लेकिन इस पेशे को स्वरूप को बिगाड़े नहीं। कुछ लोगों का तर्क हो सकता है की आख़िर २४ घंटे तक न्यूज़ ही तो नही दिखाया जा सकता ना। हाँ ये सच है लेकिन इसका विकल्प वो चीजें हैं जीना ख़बर से कोई रिश्ता ही नही। क्या सांप, भूत, ड्रामा दिखाना पत्रकारिता है।अब बात करते हैं प्रिंट मीडिया की। लोकलीकरण के नाम पर अख़बारों में जो गंदगी भरी जा रही है वह वाकई में शर्मनाक है। रास्ट्रीय स्तर के अख़बार जब येसा उदाहरण पेश करेंगे तो यह पत्रकारिता के गांड मारने जैसी ही बात है। अख़बार का पहला पन्ना उस अख़बार की सबसे सजी और काबिल लोगों के हाथों बनाईं जाती है।जब पहले पन्ने पर ही नाली, कुदे और समस्याओं का अम्बार रहेगा और वह भी लोकल तो आप काहे के रास्ट्रीय अख़बार। और आप किसे बेवकूफ बना रहे हैं। अपने आप को। मेरे कहने का मतलब बस इतना है की सब कुछ कीजिये मगर पत्रकारिता को पत्रकारिता रहने दीजिये। माना की वक्त बदल रहा है चीजें बदल रही हैं लेकिन ख़ुद को बदलिए ना की पेशे के स्वरूप को।पत्रकार सथिओं एक मुहीम चलाओ और पत्रकारिता को उसका खोया स्वरूप वापस दिलाओ।अबरार अहमद
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 8:21 AM 1 टिप्पणियाँ
हिंदू संस्कृति पर आलेख आमंत्रित हैं:अविलम्ब प्रेषित करें
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 3:27 AM 0 टिप्पणियाँ
Wednesday, February 13, 2008
ब्लॉग की खूब चर्चा हो रही है :इस बार मिलिए मंगलेश डबराल से
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 10:36 PM 0 टिप्पणियाँ
Friday, February 8, 2008
ये कौन सी पत्रकारिता है भाई ज़रा हमे भी बताओ
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 7:42 AM 1 टिप्पणियाँ
परवेज सागर को मिला बेस्ट क्राइम रिपोर्टर ऑफ़ इअर का अवार्ड
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 2:32 AM 0 टिप्पणियाँ
Thursday, February 7, 2008
ब्लोग पंचायत के नाम से नियमित स्तंभ प्रारंभ :बेगुसराय के ब्लोग लेखकों का एक नया प्रयास
- सुभद्रा देवी मुखिया ,गरहरा पंचायत १
- मो जफ़र आलम मुखिया बारो दक्षिणी
- बिन्दु देवी मुखिया फुलवरिया २
- धर्मेन्द्र सिंह मुखिया गरहरा २
- सुशीला देवी मुखिया दनियालपुर
- कुमारी संजू भारती लखनपुर पंचायत
इनके साक्षात्कार के अलावा और अन्य पंचायत प्रधान की सूची है जिनके द्वारा किये गए कार्यों एवं पंचायत के सम्यक विकास की अग्रगामी सोच से अवगत कराने की कोशिश में लगे इन ब्लोगरों के नव प्रयास को निश्चित ही सराहा जाना चाहिए.यह प्रयास ऐसे ही शुरू नही हो गया अभिव्यक्ति के मंच पर खुद को प्रस्तुत करने की सोच ले कर आये कुछ उत्साही पत्रकारों ने यह आइडिया दिया कि क्यों न पंचायत स्तर के क्रिया कलापों को वैश्विक स्तर पर ले जाया जाये और विमर्श की एक जमीन तैयार कर बहस के माध्यम से समस्याओं का समाधान तलाशा जाये। क्योंकि बड़ी सुखद अनुभूति होती है जब आप के विचार पर सुदूर देश के लोगों की त्वरित प्रतिक्रिया मिलती है,आपको समाधान सुझाए जाते हैं, नवीन जानकारी उपलब्ध करवाई जाती है। तो भैया हमने भी बस इसी रुप में शुरू किया है पंचायतों के सच से अवगत कराने की यह मुहीम, अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत करावें।
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 1:04 AM
Tuesday, February 5, 2008
ब्लोग से कमाई भी चालू हो गयी है.
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 6:40 AM 2 टिप्पणियाँ
कैसे करें सूचना के अधिकार का उपयोग
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 6:31 AM 0 टिप्पणियाँ
Monday, February 4, 2008
शुभकामनायें दिल से निकल ही जाती हैं...
HEARTIEST CONGRATULATIONS TO Mr.ABHISHEK(TATA MOTORS)AND Mr.SANJAY ARRIVED ON BEGUSARAI. जिन्दगी के कुछ पल इतने हसीं होते हैं,जिसे चाह कर भी नही भुलाया जा सकता है। खास कर अपनो से मिलने का वह खूबसूरत क्षण ,एक नयी जिन्दगी में खुशिओं से खेलने की अजीब लालसा और भी बहुत कुछ साकार होता है जब कोई अपना बिल्कुल करीब होता है।
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 4:29 AM 0 टिप्पणियाँ
Sunday, February 3, 2008
भडास की संख्या २०३ हो गयी:कमाल हो गया मामू
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 3:15 AM 0 टिप्पणियाँ
बेगुसराय की मिट्टी के लाल ने अपने गणितीय सिद्धांत से दी विश्व के गणितज्ञों को चुनौती
- if one root of the quqdrqtic equation ax2+bx+c=0 is equal to the nth power of other then show that (acn)1/n+1+(anc)1/n+1+b=0 (I.IT-1983)
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 2:03 AM 0 टिप्पणियाँ
लेबल: VISION
Saturday, February 2, 2008
आर के करंजिया के निधन से पत्रकारिता के एक युग का अंत
''बोल हल्ला'' नामक ब्लोग पर एक दर्दनाक खबर देखा,आशीष महर्षी ने भाव भीनी शब्द पुष्प अर्पित किये हैं :- आर के करंजिया जी अब हमारे बीच नहीं रहे। वैसे भी इस दुनिया को किसी के रहने को और नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। दुनिया अपनी गति से चलती रहेगी। और हम सब उन्हें भावभीनी श्रद्वांजलि देकर अपने अपने फर्ज को पूरा कर लेंगे। लेकिन फर्क उन्हें पड़ता है जो कि दुनिया बदलना चाहते हैं। जो एक बेहतर भविष्य की कल्पना करते हैं और इस दिशा में कार्य करते हैं। करंजिया जी का जाना किसी अखबार में कहीं कोने की खबर बन सकता है लेकिन बोल हल्ला और उससे जुड़ी मानसिकता वालों के लिए यह एक खबर नहीं है। बल्कि यह एक युग का अंत है।करंजिया जी के बारें में सबसे मैने अपनी पत्रकारिता की पाठशाला में पढ़ा था। हमारे एक शिक्षक ने हमें पढ़ाया था कि भारतीय पत्रकारिता के क्षेत्र में करंजिया जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कल शाम को जब उनके निधन का समाचार मिला था तो अचानक साढ़े तीन साल पहले के वो दिन याद आ गए, जब मैं माखन लाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की शिक्षा ले रहा था। उस समय करंजिया जी मेरे लिए एक अध्याय थे । आज मैं उन्हीं के शहर में हूं और महसूस कर सकता हूं कि आज से कई दशक पहले उन्होंने कैसे पत्रकारिता की थी। भारत में खोजी पत्रकारिता का यदि कोई पितामाह है तो वह सिर्फ और सिर्फ आर के करंजिया जी हैं। करंजिया जी ने खोजी पत्रकारिता की उस समय शुरुआत की थी जब इस देश में इस शब्द को कोई जानता ही नहीं था।भारत में पहले टेबलायड समाचार पत्र की शुरुआत करने वाले आर के करंजिया जी का कल मुंबई में निधन हो गया। संभवत: यह दुनिया का पहला संयोग होगा कि करंजिया ने अपने जिस प्रसिद्ध अखबार ब्लिट्ज की शुरुआत की वह भी एक फरवरी को हुई और उनका खुद का देहांत भी एक फरवरी को हुआ। 15 सिंतबर, 1912 को जन्मे करंजिया उस समय के जाने माने फिल्म पत्रकार बीके करंजिया के भाई थे। करंजिया मुंबई में अपनी पुत्री और सिने ब्लिट्ज की संपादक रीता मेहता के साथ रहते थे।करंजिया की लेखनी आक्रामक ढंग की थी जिसने देश विदेश में उनके पढ़ने वालों की संख्या में जोरदार इजाफा किया। दूसरे विश्व युद्ध में उन्होंने युद्ध संवाददाता की भूमिका निभाई। 1945 में उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी और उसके मुखिया नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विशिष्ठ फोटो छापकर अपने को सभी के बीच चर्चा में ला दिया। उन्होंने विंस्टन चर्चिल, चार्ल्स दी गाल, ख्रुश्चोव, जवाहर लाल नेहरु, टीटो, यासर अराफत, ए जी नासिर समेत दुनिया की कई महान हस्तियों का इंटरव्यू लिया। भारतीय शेयर बाजार में हुए पहले आर्थिक घपले के अभियुक्त हरिदास मूंदडा के साथ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी की मिलीभगत को करंजिया ने उजागर किया। बिल्ट्ज के पूर्व संपादक सुधीन्द्र कुलकर्णी का इंडियन एक्सप्रेस में करंजिया पर छपे लेख का लिंक यहां पढ़े। बोल हल्ला की ओर से इस महान पत्रकार को भावभीनी श्रद्धांजलि। Posted by आशीष महर्षि at 3:22 PM 1 comments Links to this post
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 3:01 AM
Friday, February 1, 2008
एक तरफ चमकताभारत एक तरफ तड़पता भारत:सीताराम येचुरी
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 4:52 AM 0 टिप्पणियाँ