Thursday, January 24, 2008

डर

अखिल गोयल ने वर्त्तमान हालत को ''भडास'' पर पूरे फट पड़ने के अंदाज़ में डाला है,आप भी निकालिए अपनी भडास पता में देता हुं:www.bhadas.blogspot.comआज भी, आज़ादी के साठ साल बाद भी हम यानी के एक आम नागरिक डर के जीने को मजबूर है। क्या है यह डर?डर है -नेताओं कि दादागिरी काइस प्रदेश में नेताओं का ही बोलबाला है इन नेताओं पर कोई भी कानून लागू नही होता है। सड़क के बीच में अपनी गाड़ी खडी कर के हथियारों को हाथ में लेकर आम नागरिकों पर रॉब जमाना, किसी भी पुलिस वाले को चांटा मारना, कुछ भी कर सकते हैं ये । जो कुछ भी करते हैं अच्छा नही kar सकते। सत्ता में आते ही इनके चेहरे बदल जाते हैं। पुलिस व प्रसाशन सिर्फ नेताओं कि ही भाषा समझता है।क्या यही हमने पढाई करी है।डर है- पुलिस काइस प्रदेश में शायद पुलिस शरीफ और पढेलिखे नागरिको के लिए ही है। ये पुलिस वाले किसी को भी कही भी पकड़ कर झूठा केस बनाकर बंद कर सकते हैं। अफीम, चरस, गंझा, रिवोल्वर इत्यादी रखकर और झूठा केस बनाकर बंद कर देंगे। और एक काम वाला इंसान जो इस देश को तरक्की के रस्ते पर ले जाना चाहता था वो अब कोर्ट कचहरी के चक्करों में पड़कर अपने जीवन को कैसे इन पुलिस वालों (देह्शात्गर्द) से बचे इसी में उलझ कर रह जाता है। प्रदेश के थानों का बड़ा ही बुरा हाल है। बिना रिश्वत के कोई भी कार्य संभव नही है। १०० में से ९५ केसों में ले दे कर निपटारा करना मजबूरी हो जाता है। हर थाने का एक कार्य-खास होता है जो इस कार्य को करता है।क्या यही है मेरा भारत महान ?डर है - प्रशाशन काये प्रशाशन के अधिकारी, बाबु, कर्मचारी इत्यादी न जाने अपने आप को क्या समझते हैं। कभी भी अपनी ड्यूटी पर समय पे आना इन्हों ने सीखा ही नही है। कोई भी कार्य ये समय सीमा के भीतर नही करते। सबसे बड़ी बात ये है कि इस प्रदेश में किसीभी अधिकारी कि कोई जिम्मेदारी नही है। आज तक कोई भी काम समय सीमा के भीतर इन्होने नही किया। और आज तक किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को उसकी सेवाओं से बेदखल नही किया गया। कितनी गर्व कि बात है के पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी पर लगकर ये सब लोग सिर्फ पैसे कमाने और सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं किसी को भी इस देश का ख्याल ही नही है। रोज़ कंही न कही हर ऑफिस में अधिकारी या कर्मचारी अपनी पोस्ट का डर दिखाकर आम नागरिक को डरा कर अपना उल्लू सीधा करने में लगें हैं।क्या यही है मेरा आज़ाद भारत देश । क्या हमने इसी रिश्वतखोरी, दादागिरी, गुंडागर्दी, नेतागिरी, इत्यादी के लिए आज़ादी पाई है। क्या एक आम नागरिक इस डर के साये से आजाद हो पायेगा। क्या हम इस प्रदेश व देश में कभी अच्छा व स्वस्थ जीवन जी सकेंगे या फिर इस डर के साये में ही घुटकर मर जायेंगे ।बचपन से जवानी तक सिर्फ डरपहले स्कूल में मास्टर का डरजवानी में नौकरी का डरनौकरी नही मिली ये अच्छा हुआलेकिन अब बिजनेस का डरबिजनेस करने लगे तो सरकारी अधिकारियों का डरवाहन लिया तो सड़क पर पुलिस व नेताओं का डरबच्चे हो गए तो अपहरण का डरक्या ये सारे डर हमारे हिस्से मैं ही आएंगे या हम भी इस देश के लिया कुछ