Friday, February 15, 2008

मीडिया धंधा है पर गंदा नही :आशीष महर्षी की सोच

''बोल हल्ला'' ब्लॉग अब परिचय का मोहताज नही है,ख़ास कर सार गर्भित आलेखों के लिए। इस ब्लॉग के मोदेरेटर आशीष महर्षी धीरे-धीरे हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में अपना पैर जमा रहे हैं। इस बार हम उनके आलेख को आप तक पहुंचा रहे हैं,अपनी राय जरूर दीजियेगा :-

कई दिनों से मीडिया के बदलते चरित्र पर लिखने का मन था। लेकिन समय के अभाव के कारण लिख नहीं पा रहा था। लेकिन आज लिख रहा हूं। बोल हल्‍ला पर पिछले कई दिनों से मीडियों पर लोगों ने अपने अपने तरीकों से अपनी अपनी बात रखी। लगभग सभी एक बात से तो सहमत थे कि मीडिया अब पहले जैसा नहीं रहा। इसमें कुछ बदलाव आएं हैं जो कि अधिकतर लोगों को नकारात्‍मक लगे। यह अच्‍छी बात है कि लोगों ने खुलकर अपनी बात रखी। लेकिन कुछ बात मैं भी कहना चाहूंगा। मुझे लगता है कि अब हमें मीडिया से यह अपेक्षा करना छोड़ देना चाहिए कि इसके माध्‍यम से हम पत्रकार कोई समाजिक क्रांति ला सकते हैं। कुछ लोग मेरी बातों से इत्‍तेफाक नहीं रखते होंगे। लेकिन ऐसा क्‍यों होता है कि जब किसी वेब पोर्टल पर या न्‍यूज चैनल पर निकोल किडमैन, मल्लिका शेरावत या राखी सावंत से संबंधित न्‍यूज आती है तो इसे देखने वाले दर्शक अचानक बढ़ जाते हैं। जबकि धूम्रपान को रोकने, विदर्भ में मर रहे किसानों से लेकर अन्‍य विकास की खबरों को दर्शक या पाठक नहीं मिल पाते हैं। इसके लिए कौन जिम्‍मेदार है। हम पत्रकार या वो लोग, जिनके हाथ में टीवी का रिमोट और अखबार हैं। यदि पाठक या दर्शक चाह लें तो मीडिया को झक मार कर अपने चरित्र में बदलाव करना होगा। लेकिन अफसोस है पाठकों की चुप्‍पी ने पूरे मीडिया को धंधे में बदल दिया है। इसके लिए हम लोग भी जिम्‍मेदार है। हम टीआरपी के नाम पर नाग नागिन से लेकर राज ठाकरे तक को इतना हाइप दे देते हैं कि पूरे देश में एक अजीब सा माहौल बन जाता है। लेकिन अब पाठकों व दर्शकों को ही कुछ करना होगा। क्‍योंकि लगाम उन्‍ही के हाथ में है। इन दिनों देश भर में अंग्रेजी और हिंदी की खिचडी के संग अखबार निकल रहे हैं। जिनकी बिक्री भी कम नहीं है। मेरे जैसे लोग जनसत्‍ता और हिंदू को सबसे बेहतर समाचार पत्र मानते हैं। एनडीटीवी हमारे लिए बेस्‍ट न्‍यूज चैनल है। लेकिन ऐसा क्‍यों हैं कि इनके दर्शक या पाठक कम हैं। लोगों को यह अखबार या चैनल नहीं भाता है। जिसके कारण इन्‍हें सीमित पाठक वर्ग या दर्शक वर्ग के कारण नुकसान उठाना पड़ता है। खैर मैं फिलहाल जिस मीडिया संस्‍थान में हूं, वहां मुझे इस बात का भ्रम नहीं है कि मैं पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे पता है कि पत्रकारिता कम से कम यहां संभव नहीं है। मैं यहां एक न्‍यूज क्‍लर्क की भूमिका में हूं। कुछ न्‍यूज बनाई और अपना काम खत्‍म। मुझे यह भी पता है कि इन न्‍यूज से कुछ खास होने वाला भी नहीं है। बस एक नौकरी है और हर रोज वही कर रहा हूं। लेकिन आज से दो साल पहले ऐसा नहीं था। भोपाल में पत्रकारिता की पाठशाला में जब मैं अपने दोस्‍तों के साथ पत्रकारिता का ककहरा सीख रहा था तो मन में कहीं न कहीं था कि कुछ ऐसा करना है कि जिससे समाज के अंतिम आदमी को अधिक से अधिक लाभ पहुंचे। भोपाल आने से पहले जयपुर में जब निखिल वागले के समाचार पत्र महानगर के लिए रिपोर्ट करता था तो उस समय यह बाते मन में नहीं थी। क्‍योंकि यह काम मैं कर रहा था। भोपाल से निकला और इसके बाद जब सच्‍चाई की जमीन पर नंगे पांव चला तो समझ में आया कि जनाब आप जिस पत्रकारिता की बात कर रहे हो यह तो यहां संभव ही नहीं है। अब तो मीडिया पूरी तरह धंधा बन चुका है। अपको अपनी नौकरी भी बजानी है और पत्रकारिता भी करना है तो कुछ बीच का रास्‍ता तलाशना होगा। यानि आप जल में रहकर मगर से बैर नहीं कर सकते हैं। ऐसे में मीडिया में घुसें और सबसे पहले अपना स्‍पेस बनाए। और ऐसा भी नहीं है कि यदि आप मेहनत से कोई रिपोर्ट लाते हैं जो कि कुछ खास हो तो वो प्रकाशित नहीं होगी। बशर्ते हमें यानि हमारे जैसे युवा पत्रकारों को थोड़ा अधिक मेहनती होना पड़ेगा। मेहनत के साथ दिमाग का भी सही उपयोग आना जरुरी है। कभी कभी बड़ी निराशा हाथ लगती है जब इस पेशे में लोग आते हैं कुछ कर गुजरने का जज्‍बा लेकर, लेकिन जब इस पेशे का अंग बनते हैं तो सबसे पहले यही लोग इसे सरकारी नौकरी समझने लगते हैं। मेरे कुछ जानकार भी ऐसे ही लोगों की श्रेणी में आते हैं। इनके लिए पत्रकारिता एक नौकरी है। जहां आपको नाम, ग्‍लैमर्स और पैसा मिलता है। समाज सेवा, मिशन, क्रांति की बात करते समय ये लोग नाक भौं सिकुड़ने लगते हैं। ऐसे लोगों से मुझे या मीडिया में जो गंभीर रुप से जुड़े हुए है उन्‍हें कोई खास उम्‍मीद नहीं है। लेकिन ऐसे ही लोगों की वजह से यह पेशा बदनाम हो रहा है। लेकिन इन सबके बावजूद मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि यदि आपमें कुछ खास है तो आपको मीडिया के इस धंधे में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। क्‍योंकि खास बनने के लिए कुछ खास करना भी होता है। आशीष महर्षि Posted by आशीष at 11:48 AM 10 comments Links to this post

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