Saturday, February 16, 2008

यशवंत भाई ने तो गज़ब कहा........क्या सचमुच ऐसा होता है.

''भडास'' की बुलंदियां चरम पर है। ब्लॉग लेखन को एक नया आयाम देने के लिए प्रयास रत यशवंत भाई निश्चित ही बधाई के पात्र हैं। भडास के पिछले अंक में एक आलेख ने निगाहों को खोल दिया तो सोचा आप तक पहुंचा ही दूँ।:-
सबसे बड़े हराम जादे बुद्धिजीवी और प्रोफेसनल लोग ही होते हैं। नेताओं का साफ साफ फंडा है, झूठ बोलेंगे, जीतेंगे, राज करेंगे और फिर जीतने के लिए क्राइम से लेकर समाज सेवा तक समब करेंगे। नौकरशाहों का भी साफ साफ फंडा है। नौकरी बचाने के लिए किसी करवट लोट जाएंगे। किसी के तलवे चाट लेंगे। नौकरी में बने रहेंगे और दीमक की तरह सिस्टम को चाटते रहेंगे। ऐसे ही ढेर सारे लोगों की जन्मकुंडली बनाई जा सकती हैं। लेकिन जब आप प्रोफेशनल लोगों और बुद्धिजीवियों की जन्मकुंडली बनाने पर आयेंगे तो आपकी कलम स्याही खुद ब खुद सुखा देगी, या कलम की निब टूट जायेगी या कलम चलने से इनकार कर देगी। मैं बताता हूं, इसकी वजह क्या है?दरअसल प्रोफेशनल और बुद्धिजीवी इस देश के सबसे बड़े हरामजादे लोग होते हैं। ये अपनी खोल में जीते हैं। अपनी खोल को बड़ा बनाने के लिए बौद्धिक चिंतन करते हैं। इस बौद्धिक चिंतन में ढेर सारे लोगों को मिशनरी की भांति फांसते हैं और फिर खुद निेता और झंडाबरदार बनकर अपने को एलआईजी से एमआईजी में और फिर एमआईजी से एचआईजी क्लास में ले आते हैं। आखिर में आता है इलीट क्लास, जहां पहुंचने के लिए इन प्रोफेशनलों और बुद्धिजीवियों में होड़ मची रहती हैं। ये अपनी करनी को देश और समाज से इस कदर जोड़े रहते हैं जैसे जोंक खुद को खून चूसने के लिए शरीर के मांस के साथ चिपकाये रहता है। अगर कोई इन्हें यहां से छुड़ाना चाहे तो ये मर जाते हैं, देश के लिए कुर्बानी का वास्ता देकर पर सच्चे अर्थों में ये दरअसल दूसरों को बरगलाये बिना और दूसरों पर निर्भर हुए बिना जी ही नहीं सकते इसलिए अकेले कर दिए जाने पर इनकी खुद ब खुद मौत हो जाती है। मेरी बातें अमूर्त लग सकती हैं पर अगर शुद्ध हिंदी में कहें तो इन भोसड़ीवालों के चलते अपने हिंदी समाज की ये दशा है कि जो हाशिए पर हैं, वे हाशिए पर ही बैठे रहने को अभिशप्त हैं, जो मुख्यधारा में हैं, वो मुख्यधारा के सहयोग से इतने आगे बढ़ जाते हैं कि बाकी समाज इनके लौंड़े पर आ जाता है। और इस काम में बड़ी व बखूबी भूमिका निभाते हैं बुद्धिजीवी व प्रोफेशनल। अगर ये बात भड़ासियों को समझ में नहीं आई तो फिर कभी विस्तार से समझाऊंगा लेकिन एक सलाह जरूर देना चाहूंगा कि प्रोफेशनल व बुद्धिजीवी लोगों से बच के रहना। ये बड़े नखरे करते हैं। ये काम आएंगे तो काम आने के नाम पर आपकी गांड़ मार लेंगे, ये कभी काम न आने की बात नहीं कर सकते क्योंकि ये इतने बड़े झूठे होते हैं कि किसी काम लायक न होने पर भी काम के होने का इतना बड़ा ढोंग रचते हैं कि आप हमेशा इनके चक्कर में पगलाये रहोगे। चलिए, फिर कभी विस्तार से बतियायेंगे। अगर आपका कोई तर्जुबा हो तो जरूर शेयर करिएगा। जय भड़ासयशवंत Posted by यशवंत सिंह yashwant singh Labels: , , , , , , 2 comments: डा०रूपेश श्रीवास्तव said... दादा,सब के पास इतने तजुर्बे होंगे कि २१०८ तक या उसके और आगे पचास सालों तक यही चर्चा चलेगी ,अब देखिए कितने लोग अपनी "फटी" भड़ास पर बताते हैं...जय भड़ास 7/2/08 1:07 AM विनीत कुमार said... sirji aapko aaj pata chala. 7/2/08 8:02 PM क्या sa