सचमुच ब्लोग लेखन विराट विस्तार पा रहा है. लेखन की इस आधुनिक शैली का जिस तरह से स्वागत किया जा रहा है उससे इसके दीर्घजीवी भविष्य की उम्मीद की जा सकती है। ''काकेश की कतरनें'' नामक ब्लोग पर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि ब्लोग धन कमाने का रोचक माध्यम बनता जा रहा है:-
कल रामचन्द्र मिश्र जी ने ऎडसैन्स से अपनी पहली कमाई को सार्वजनिक किया. इससे पहले रवि जी भी कह चुके हैं उनके ब्रॉडबैन्ड का खर्चा पानी भी ऎडसैन्स से निकल जाता है. यह अच्छे संकेत हैं और यह आशा जगाते हैं कि ऎडसैंस से कुछ कमाई की जा सकती है. मुझे लगता है कुछ और चिट्ठाकार भी होंगे जो कुछ कमाई कर पा रहे होंगे. यदि वह भी इस बात को सार्वजनिक करें तो यह अन्य चिट्ठाकारों के लिये प्रोत्साहन का काम कर सकता है.
अब मैं अपनी बात करता हूँ. मैने पिछ्ले साल हिन्दी ब्लॉगिंग प्राम्भ की थी. पहले मैं वर्डप्रेस पर लिखता था बाद में मैने एक चिट्ठा ब्लॉग्स्पॉट पर भी बनाया. वर्डप्रेस पर आप विज्ञापन नहीं लगा सकते तो मैने भी केवल ब्लॉग्स्पॉट वाले चिट्ठे पर ही विज्ञापन लगाये. चार महीने में तीन डालर भी नहीं बन सके. फिर मैं एक डॉट कॉम हो गया यानि सितंबर में इस चिट्ठे पर अपने डोमेन पर शिफ्ट हो गया. विज्ञापन भी लगाये.लेकिन नतीजा ढाक के वही तीन पात. जनवरी तक यानि पहले पांच महीनों में सिर्फ सत्रह डॉलर. इसलिये मोह भंग सा हो गया. इसी बीच एक “सुभ चिंतक” ने कहा कि आपके पोस्ट में विज्ञापन की वजह से पढ़ने में दिक्कत होती है. तो पोस्ट में जो विज्ञापन थे उनको भी हटा लिया.
मिश्रा जी ने जो चित्र दिखाया था उसके अनुसार उनका पेज सी टी आर (Page CTR) तीन प्रतिशत से ज्यादा था जो मेरे हिसाब से काफी अच्छा है. क्योंकि मेरा पेज सी टी आर (Page CTR) केवल 0.9 % है. मेरे गूगल खाते के अनुसार मेरे अबतक पिछ्ले पांच महीनों में चौदह हजार से ज्यादा क्लिक हुए जिसमें से केवल 129 लोगों ने ही विज्ञापनों में क्लिक किया. इसका कारण शायद यह भी रहा कि ना मैने अपने लेखन को और ना अपनी थीम को विज्ञापनों के अनुसार ऑप्टिमाइज किया.
ब्लॉग प्रारम्भ करने का मेरा ल्क्ष्य था कि मैं हिन्दी में नियमित लिखता रहूँ और यह लक्ष मैने काफी हद तक पा लिया है. ऎडसैंस से कमाई मेरा लक्ष नहीं है (नहीं तो अंग्रेजी में ही लिखता) लेकिन यदि ब्रॉडबैंड का खर्चा निकल सकता है तो क्यों ना ब्रॉडबैंड लगा ही लिया जाय. तो अब मैं कुछ दिनों में ब्रॉडबैंड लगवा रहा हूँ इस आशा में कि शायद अगले साल तक इसका खर्चा निकल ही जाय.
कल संजय तिवारी जी ने कहा कि हम एक दूसरे के विज्ञापनों पर क्लिक कर सकते हैं. मेरे विचार से यह मूर्खता होगी क्योंकि गूगल बाबा की तकनीक बहुत तेज है वो लोग जैन्युइन क्लिक और नॉन जैन्युइन क्लिक को आसानी से पहचान लेते हैं और फिर अकांउंट कैंसल करने में बिल्कुल भी देरी नहीं करते.
रवि जी से निवेदन ही कि वह भी केवल हिन्दी के विज्ञापनों से होने वाली आय का कुछ आइडिया दे सकें तो यह और कई लोगों को प्रोत्साहित करेगा.
2 comments:
संयोग की बात है कि www.Sarathi.info पर इस विषय पर 4 भाग में मेरी लेखन परंपरा आजकल आ रही है.
आपका लेख उपयोगी है एवं आप ने काम के कई प्रश्न पूछे हैं
Great and Amazing
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