Thursday, February 14, 2008

पत्रकारिता का यह कौन सा रूप है?

''भड़ास'' पर अबरार अहमद नाम के एक लेखक ने ''गार मार ली पत्रकारिता की''नाम से एक आलेख लिखा है।जनाब ने टू शीर्षक ही ऐसी दी है की उल्टी हो जाए ,फ़िर भी हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं:== शीर्षक से कई लोगों को आपत्ति हो सकती है। पर कुछ लोगों ने वाकई हद कर दी है। देश का चौथा स्तम्भ कहलाने वाले इस पेशे को मटियामेट कर इसे खम्भा बनाने की पुरी कोशिश की जा रही है। हो सकता है की जो देश के तथाकथित बड़े पत्रकार हैं वह एक नई पत्रकारिता गढ़ रहे हों। पर यह वाकई इस पेशे से दुष्कर्म जैसा है। यहाँ मैं प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक दोनों पत्रकारिता की बात कर रहा हूँ। इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो ब्रेकिंग न्यूज़ को अपने घर का दामाद ही बना लिया है। अब आज की ही बात ले लीजिये। राखी सावंत ने अपने प्रेमी को थप्पड़ मारा तो यह देश के सबसे तेज न्यूज़ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ बन गई। इस चैनल ने इस पूरे ड्रामे पर एक विशेष कार्यकर्म तक दिखा डाला। जबकि यह सबको मालूम है की यह पुरा ड्रामा केवल और केवल पब्लिसिटी स्टंट था। जिस प्रकार वो सारा ड्रामा दिखाया गया निश्चत रूप से राखी ने उसके लिए कई दिन तक प्रेक्टिस की होगी अब ये उन महान लोगो को कौन बताये। ये हाईटेक पत्रकार तो बस मॉल बेचने मी जुटे हैं। यही करना है तो मेरी राय है की न्यूज़ चैनल बंद कर कोई ड्रामा चैनल खोल लें। लेकिन इस पेशे को स्वरूप को बिगाड़े नहीं। कुछ लोगों का तर्क हो सकता है की आख़िर २४ घंटे तक न्यूज़ ही तो नही दिखाया जा सकता ना। हाँ ये सच है लेकिन इसका विकल्प वो चीजें हैं जीना ख़बर से कोई रिश्ता ही नही। क्या सांप, भूत, ड्रामा दिखाना पत्रकारिता है।अब बात करते हैं प्रिंट मीडिया की। लोकलीकरण के नाम पर अख़बारों में जो गंदगी भरी जा रही है वह वाकई में शर्मनाक है। रास्ट्रीय स्तर के अख़बार जब येसा उदाहरण पेश करेंगे तो यह पत्रकारिता के गांड मारने जैसी ही बात है। अख़बार का पहला पन्ना उस अख़बार की सबसे सजी और काबिल लोगों के हाथों बनाईं जाती है।जब पहले पन्ने पर ही नाली, कुदे और समस्याओं का अम्बार रहेगा और वह भी लोकल तो आप काहे के रास्ट्रीय अख़बार। और आप किसे बेवकूफ बना रहे हैं। अपने आप को। मेरे कहने का मतलब बस इतना है की सब कुछ कीजिये मगर पत्रकारिता को पत्रकारिता रहने दीजिये। माना की वक्त बदल रहा है चीजें बदल रही हैं लेकिन ख़ुद को बदलिए ना की पेशे के स्वरूप को।पत्रकार सथिओं एक मुहीम चलाओ और पत्रकारिता को उसका खोया स्वरूप वापस दिलाओ।अबरार अहमद

1 comment:

Anonymous said...

बेगूसराय ब्लाग लेखक संघ का इस्तकबाल है.