Monday, March 31, 2008

आशीष महर्षि ने लिया यशवंत दादा का साक्षात्कार :बोल हल्ला का यह प्रयास सचमुच है सराहनीय

आज से हम हर सप्ताह एक चर्चित ब्लागर का इंटरव्यू प्रकाशित करेंगे और शुरुआत इस समय के सबसे चर्चित ब्लाग भड़ास के माडरेटर और स्वामी भडा़सानंद यशवंत सिंह के इंटरव्यू के साथ। वामपंथी आंदोलन में होलटाइमरी के बाद पत्रकारिता की एबीसीडी सीखी और थोड़े ही दिनों में शिखर पर पहुंच गए। ट्रेनी से एनई तक की यात्रा करने के लिए छह शहर और दो अखबार बदले, और आठ साल खपाये। बाद में मीडिया के संपादकीय सेक्शन को को छोड़कर प्रबंधन में हाथ आजमाने में जुट गए हैं। आजकल वे एक मोबाइल मीडिया कंपनी में बतौर वाइस प्रेसीडेंट काम कर रहे हैं। उनकी आगे इच्छा है, खुद को एक सफल मीडिया उद्यमी के रूप में स्थापित करना। अपनी भदेस और सहज अभिव्यक्तियों के लिए जाने जाने वाले यशवंत का ब्लाग भड़ास अब पौने दो सौ लोगों की सदस्य संख्या वाला कम्युनिटी ब्लाग बन चुका है, जो हिंदी ब्लागिंग में अब तक का रिर्काड है। पेश है यशवंत जी से आशीष महर्षि के टेढ़े टेढ़े तीन सवाल और उनके खरे खरे तीन जवाब....यशवंत जी , आप पर आरोप है कि आप तानाशाह किस्म के आदमी है, किसी की सुनते नहीं, अपनी पेले रहते हैं, मन में आया तो भड़ास शुरू कर दिया, मन में आया तो भड़ास को डिलीट कर दिया...ये तानाशाही कब खत्म होगी ?हां, हूं, तो? वैसे, आपको पता होना चाहिए, कि हर आदमी में कई कई आदमी होते हैं। और मेरे में भी तानाशाह, राक्षस, देवता, लोकतांत्रिक, समाजवादी, फासिस्ट, सामंती, दयालु, मददगार, भावुक, बौद्धिक, हिप्पोक्रेट, सहज, सरल....जाने कौन कौन सा आदमी छिपा है। कभी कोई सिर उठा लेता है तो कभी कोई। हालांकि बुरे आदमी को हम लोग सायास कम करने, दबाने, निकलने न देने की कोशिश करते लेकिन कई बार किन्हीं खास मनःस्थितियों में यह निकलकर बाहर भी आ जाता है। हो सकता है, जो आप कह रहे हैं, वो सब उन्हीं किसी एक बुरे राक्षसत्व की स्थिति में हुआ हो और इस बातकी कोई गारंटी नहीं दे सकता कि उसके जीवन में हर तरह के शेड्स नहीं आएंगे। ये शेड्स और इन्हें संजोना ही तो ज़िंदगी की लय, सुर-ताल बनाती है या बिगाड़ती है। नेक्स्ट क्वेश्चन प्लीज?भड़ास पर अक्‍सर यह आरोप लगता है कि इस ब्‍लॉग की भाषा आपतिजनक है क्‍या आप मानते हैं कि वाणी और लेखनी पर संयम नहीं होना चाहिए। क्‍या यह लांग टर्म में नुकसानी दायी नहीं। और कहा तो यह भी जाता है कि भड़ास से जुड़े अधिकतर लोग कहीं न कहीं अवसाद से पीडि़त हैं, क्‍या कहेंगे इस पर आप ?कौन साला कह रहा है कि भड़ास की भाषा आपत्तिजनक है? जो लोग ये आरोप लगाते हैं वे अपने निजी जीवन में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं कि उसे बताते हुए भी उन्हें शर्म आएगी। लेकिन हम लोग जो निजी जीवन में इस्तेमाल करते हैं उन्हें ही भड़ास पर इस्तेमाल करते हैं क्योंकि भड़ास बौद्धिक बाजीगरी के लिए नहीं बल्कि दिल और मन हलका रखने के लिए है। और हम जो लिखने पढ़ने वाले लोग हैं उनका मन अपनी बात लिखकर या कहकर ही मन हलका हो पाता है। तो एक तरह से यह डस्टबिन है, उगालदान है, संडास है, बकवास है......। और आप चाहेंगे कि डस्टबिन में कचरा न पड़े, उगालदान में कोई उलटी न करे, संडास में कोई निपटने नहीं...। हम तो शुरू से कह रहे हैं कि भड़ास को सीरियस मत लो। भड़ास निकालो। उलटी करो। कई बार लोगों को लगता है कि सही उलटी किया है, कई बार लगता है कि गंदा उलटी किया है। लोग हैं, लोगों का काम है कहना.....आप पत्रकारिता से लंबे समय तक जुड़े रहें हैं ऐसे में जल में रहकर मगर से बैर कितना सही है, आख्रिर भड़ास के माध्‍यम से आप क्‍या करना चाहते हैं और हर म‍ीडियाकर्मी को क्‍यों भड़ास का सदस्‍य बनना चाहिए ?भड़ास का मकसद हिंदी मीडिया कर्मियों का भला करना है, बिगाड़ना नहीं। इसीलिए मैं भड़ास पर किसी मीडिया हाउस या कंपनी या अखबार का नाम लेकर सही या गलत लिखने को प्रोत्साहित नहीं करता। इसे हतोत्साहित करने के लिए ही मैंने भड़ास पर एक नहीं दो दो पोस्टें लिखीं, जल में रहकर मगर से बैर शीर्षक से और एक की हेडिंग ध्यान नहीं आ रही। कुछ भड़ासी साथी भड़ास को क्रांतिकारी मंच बनाना चाहते हैं, ये उनकी मर्जी है पर निजी तौर पर मैं भड़ास को कुंठित और दबे-कुचले रखे गए हिंदी मीडियाकर्मियों को थोड़ी सी राहत और खुशहाली प्रदान करने का मंच मानता हूं। और यह राहत या खुशहाली आपको तभी आती है जब आप ढेर सारे घंटे सीरियस काम में, अखबार के काम में, मीडिया के काम में बिताने के बाद कुछ घंटे उलजुलूल काम में बिताएं। और भड़ास इसीलिए है। जो मन हो सो लिखिए।हर मीडियाकर्मी को नहीं, सिर्फ हिंदी मीडियाकर्मी को भड़ास का मेंबर इसलिए बनना चाहिए ताकि वे पहले तो आनलाइन माध्यम से जुड़ेंगे, दूजे आफिस के बाहर हिंदी टाइप करना सीखेंगे, तीजे अपने व्यक्तित्व को एक्सपोजर देखेंगे, चौथे खुद का ब्लाग बनाना सीखेंगे, पांचवें हमारी ताकत दिखेगी, एकजुटता दिखेगी, छठवें जो बात किसी से कह नहीं पाते, कहीं उगल नहीं पाते, उसे सबके सामने अपनी स्टाइल में रख सकेंगे......अगर गिनाने लगूं तो सौ कारण गिना सकता हूं लेकिन फिलहाल इतना ही। आपने मुझे इतना देर झेला, इसके लिए धन्यवाद। जय भड़ास!!! at 11:04 AM Labels: 14 आपकी राय: आशीष महर्षि said... बोल हल्‍ला पर अभी किसी पापड़ी और नरेश जी के नाम से दो व्‍यक्ति ने अपनी अपनी राय दी। दोनो की राय कहीं न कहीं यशवंत जी पर सीधा व्‍यक्तिगत प्रहार था। बोल हल्‍ला समूह का मानना है कि आप अपनी राय जरुर दें लेकिन खुद के नाम से। बोल हल्‍ला पर बेनामी राय के लिए कोई स्‍थान नहीं है। 25 January, 2008 12:57 PM कमल शर्मा said... यशवंत जी की बोल हल्‍ला पर हुई इस बातचीत पर मैंने भी सुबह पापड़ी और नरेश की टिप्‍पणियां पढ़ी थी जिन्‍हें लगता है आशीष भाई आपने अब हटा दिया है। निजी टिप्‍पणियां नहीं करनी चाहिए बल्कि आपके ब्‍लॉग पर जो बातचीत आई है उस पर टिप्‍पणिया दी जानी चाहिएं। निजी मामले को दूसरे माध्‍यम या मंच पर निपटाना चाहिए। साक्षात्‍कार शुरु कर आपने अच्‍छा किया है और उम्‍मीद है देश विदेश के बेहतर ब्‍लागरों के इंटरव्‍यू हर सप्‍ताह पढ़ने को मिलेंगे। 25 January, 2008 1:16 PM आशेन्द्र सिंह said... जय भड़ास !बात तो सही है यशवंत भाई के भीतर तानाशाह, राक्षस, देवता, लोकतांत्रिक, समाजवादी, फासिस्ट, सामंती, दयालु, मददगार, भावुक, बौद्धिक, हिप्पोक्रेट, सहज, सरल....समेत कई तरह के आदमी विराज मान हैं. इन सब के बावजूद भी हम उन के लिये भारत रत्न की मांग नहीं कर रहे ...इस का मतलब है की यशवंत भाई ने अपने अन्दर के कुछ आदमी हम लोगों के भीतर भी प्रेषित कर दिए हैं. फिर ये आदमी भावुक भी हो सकता है और तानाशाह भी... 25 January, 2008 1:24 PM विनीत कुमार said... इस तरह से छिछा - लेदर न करें, किसी के निजी मामले में टिप्पणी करने से बचा जाना चाहिए। बाकी इंटरव्यू वाला मामला जारी रखें। 25 January, 2008 2:01 PM सिरिल गुप्ता said... आपकी बातें इमानदारी भरी लगीं. 25 January, 2008 2:15 PM जलज कुमार said... क्‍या आशीष भैया, सवेरे सवेरे लगी टिप्‍पणियां काहे हटा दी। इ लोकतंत्र की जमात में शामिल हो जाओ कामरेडपना छोड़कर। सब को अपनी बात रखने दो मंच पर। 25 January, 2008 3:49 PM राजीव जैन Rajeev Jain said... एक नया सिलसिला शुरू करने के लिए शुक्रिया। और यशवंतजी ने इतनी बेबाकी से अपनी बात कही काबिलेगौर है। जो भी है आज नेट यूज करने वाला लगभग हर पत्रकार भडास के बारे में जानता है। यही उनकी सफलता है। 25 January, 2008 3:59 PM Ramkrishna Dongre said... niral haiashish jee ka andaz...aapke is silsile ka koi javab nahin. yashvant jee kahte vahi hai jo dil me hota hai. unme sahajta bhi hai aur bebaki bhi... bahut hi aachchha laga... badhai 25 January, 2008 4:13 PM Dr.Rupesh Shrivastava said... सुंदर है यशवंत दादा जैसे मस्त कलंदर का साक्षात्कार ;उनका फ़क्क्ड़पन ही उनकी खूबसूरती है। 25 January, 2008 4:14 PM Dr.Rupesh Shrivastava said... अत्यंत सुन्दर है यह साक्षात्कार कुल मिला कर । 25 January, 2008 4:15 PM अंकित माथुर said... आशीष के अनूठे अंदाज़ का तो मै काफ़ी समयसे कायल हूं ही, साथ ही नये आईडियों कोविज़ुअलाइज़ करने के बाद उन्हे मैटीरियलाईज़कर के इम्प्लीमेण्ट करना वाकई तारीफ़के काबिल है। इन्टर्व्यू की पहली कडी़ बेहद पसंद आई, आशा है, आगे भी आपअपने मनोरथ में सफ़ल हों।और आशीष भाई, जो दो विवादास्पद टिप्पणियांआपने हटा दी थीं उनका मजमून क्या था?धन्यवाद...अंकित माथुर... 25 January, 2008 7:27 PM अविनाश वाचस्पति said... बोल हल्ला अपनेनाम को सार्थककरने के लियेजो कुछ कर रहा है वो तोउसका नामभी कह रहा है.पर ये हल्ले वालालल्ला कहीं मुझपर ही हल्ला नबोल दे बोल दे तो बोल देकोई गल न ?मुझे तो टिप्पणी के लिये इस समयकोई और तुक नमिली, बजरंगवलीकरेगा भली. 25 January, 2008 10:32 PM neelima sukhija arora said... ashish is naye style ke liye badhai. 29 January, 2008 8:06 PM neelima sukhija arora said... ashish is naye style ke liye badhai.

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