Friday, March 7, 2008

इ लिजिए भडासी गिफ्ट और मिलिए इन टॉप भडासी भीडू लोगों से

भडास बोले तो बिंदास,भडास बोले तो सरल सहज सोझ टेढ़,भडास बोले तो नो कास्ट,नो धरम,नो सम्प्रदाय ,नो मूरख,नो विद्वान सिर्फ़ मनुष्य और मनुष्यता ओनली चिक्कन लाइफ जिसमें सिर्फ़ जी लेने की चाहत,सम्पूर्ण हो जाने का जोर,खोने की खुशी, पाने का गम मतलब कोई बेरेकर नही ,लाइफ साली कौनो नखरा दिखाए भिडू लोग कर लो दुनिया मुट्ठी में टाइप लाइफ जीने में यकीन करता है। अब सामने वाला इस अंदाज को पागलपन कहे तो कहे अपन लोग का नेचर ''खड़े लण्ड पर धोखा दे दिया'' वाला नही है भले ही रोज ख़ुद नए नए हथियारों से धोखा खाते रहे। तो भाई बहिन लोग,आज हम आपसे मिलवाने आए हैं एक पीओर भडासी से जो सच्चे अर्थों में भडासी हैं,फकीर हैं,पागल हैं,खत्तम हैं,लेकिन दम है कुछ ख़ास है जो आपको भी सोचने को बाध्य कर देगा की भिडू इ कौन टाइप का प्राणी है। इस प्राणी का नाम है डाक्टर लाल जी प्रसाद सिंह ,पटना के अति व्यस्त बोरिंग रोड इलाके में ''लाल जी साहित्य प्रकाशन'' जो घुमंतू गुल्गुलवा के माफिक बिहार के गाँवों की गली-गली में स्वरचित,स्वसम्पादित,स्वप्रकाषित पुस्तकों को घर-घर पहुंचाने में संलग्न हैं। मेहनत कश किसान मजदूरों,जमीन पर की इंसानी जज्बातों को उकेरने ,सामजिक समस्याओं के प्रति प्रतिरोध ,विरोध का अथक स्वर,अंधविश्वास को भगाने की मुहीम में शामिल यह व्यक्ति वास्तव में अजीब है। बक्सर में पैदा लिए और बनारस हिंदू विश्व विद्यालय से एम् ए करने के बाद लाल जी ने मंहगे प्रकाशक,महंगे लेखक,महंगी किताबों के स्थापित मान्यताओं को तोड़कर अपना भडासी स्टाइल अपनाया। इस भीडू ने रिक्शा चलाने वाले,सब्जी फल अंडा बेचने वाले,गाँव के मजदुर किसानों तक अपनी लिखी हुई ,ख़ुद की प्रकाशित लगभग दो सौ उपन्यास को ख़ुद जा जा कर पहुंचाया...''हनुमान जी की मस्जिद'',रसूल मियाँ की दुर्गा जी'' ''जिंदा लाशों का शहर'' ''हिन्दी के तालिवानी'' और ''हिंदू कबूतर मुस्लिम कबूतर'' जैसे सस्ते मगर दमदारपुस्तकों के पाठक लाल जी को अपना आदर्श मानते हैं। महंगे किताब,इंटरनेट ,अखबार जैसे साधनों से दूर इन पाठकों से बात कर के तो देखिये ये मोदी और गुजरात पर भी उतनी दृढ़ता से राय रखते हैं जितना सरकार के नीती और योजनाओं पर,हाँ ये अलग बात है की वे कर कुछ नही पाते हैं वैसे कर कौन रहा है जी>>>>> ''लाल जी प्रकाशन'' घूम घूम कर गाँव गाँव जा कर गरीबों में चेतना जगा रहा है ,सीधा सोझ भाषा में बता रहा है की देश इतना आगे जा रहा है,तुम लोग भी कोहबर से बाहर आओ ,शिक्षित बनो,मजबूत बनो,अंधविश्वास भगाओ मुख्यधारा में आओ। भले लाल जी के पेट में एक रोटी नही हो लेकिन उनका यह अभियान थकता नही है। वह कहते हैं की मेरी सामजिक दिलचस्पी के कारण माँ -बाप ,परिवार और रिश्तेदार नाराज रहते हैं फ़िर भी उत्साह बोले तो भडासी एस्टाइल रुके तो आख़िर कैसे? वे पटना में लगने वाले पुस्तक मेला में १९९६ से लगातार आ रहे हैं और पाठकों के प्रेम से अभिभूतबकौल लाल जी नफ़ा नुकसान उनके प्रेम और समर्पण के सामने कोई मायने नही रखता है। ऐसी बात नही है की देश में लाल जी ही अकेले ऐसे हैं,दिल्ली में रहने वाले जानते होंगे की वहाँ एक चाय वाला ख़ुद उपन्यास लिखता है और अपने निर्धारित पाठकों के बीच फेमस भी कम नही है। झारखंड के दुमका में ६८ वर्षीय गौरी शंकर जो पेशे से धोबी है और पिछले २१ वर्षों से ''दीन-दलित'' नामक अखबार निकाल रहा है ,लोगों को जगा रहा है,चिल्ला रहा है .वह इस्तरी के पैसे से परिवार चलता है और देखिये कार्य के प्रति समर्पण और कुछ हट के करने की उत्कट अभिलाषा की उसी आय में से पैसे बचाकर समाज को आलोकित करना चाहता है,प्रकाशित करना चाहता है। चित्रकूट और बांदा की दलित,कोल समुदाय की औरतें जो न तो स्कूल का मुंह भी देखि हैं और न ही किसी तरह की तालीम भी पायी है का जज्बा तो देखिए ये सब मिल कर ''ख़बर-लहरिया'' नामक अखबार वर्ष २००० से ही निकाल रही हैं .इनके कार्यों को प्रोत्साहित करते हुए इनमे से तीन को दलित फेल्लोशिप भी प्रदान किया गया है। तो मित्रां.... कैसा लगा भडासी गिफ्ट ...अभी दिया कहाँ रे भाई निचे दिया है .....कैसे कैसे अजीब लोग हैं यहाँ जिन्हें न तो टी आर पी की चाहत है न प्रशंशा पाने का उधम करते हैं ये ...सचमुच सच्चे अर्थों में अच्छे लोग हैं ये जो सचमुच भारत को बदलना चाहते हैं,ये उन दुरिओं को पाटना चाहते हैं जो आदमी को आदमी से दूर करता है। इन लाजबाब कोशिशों के पीछे शामिल आदमी-औरतों को भडास का बुलंद सलाम। आप लोगों से भी एक अनुरोध की अगर ऐसे भडासी टाइप लोग आपके मोहल्ले शहर में भी हों तो इस मंच पर जरुर लाइए ताकि दुनिया इनके उत्साह को इनके संघर्ष को देख सके ,कुछ मदद कर सके ताकि क्रांति लाने वाले इन कुकुरमुत्ते (जैसा अप्पनको एंटी लोग बोलता है) को लगे की मेरी आवाज में दम है। तो प्रस्तुत कर रहा हुं डाक्टर लाल जी की यह छोटी किंतु पीओर भडासी रचना:- हे माँ सरस्वती आप विद्या की देवी मानी जाती हैं पर ये कैसा रहस्य की आपके पिता ब्रह्मा ने आपके रूप यौवन पर मोहित हो कर आपके साथ बलात्कार किया? उन्हें आपने श्राप दिया की धरती पर सिर्फ़ एक जगह ''पुष्कर'' में ही आपकी पूजा होगी । बलात्कारी बाप को कहीं किसी एक जगह भी पूजा क्यों? दंड क्यों नही? अब बलात्कारी बाप के प्रति भावुकता और रहम का अंजाम तो देखिए आप के अधर्मी,कुकर्मी और दुष्कर्मी बाप से प्रेरणा लेकर कितने ही बाप अपनी बेटिओन से बलात्कार करते पाए जाने लगे........ (साभार सीटू तिवारी सरस सलिल) जय भडास जय यशवंत मनीष राज बेगुसराय