अभी भी साइकिल से ही कार्यालय जाते हैं रॉकेट अनुसंधानकर्ता भले ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] में इनका काम राकेट के डिजाइन तैयार करना हो, लेकिन विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के सहायक निदेशक डा. वी. आदिमूर्ति पिछले 20 वर्ष से अपने कार्यालय तक आने-जाने के लिए साइकिल का ही इस्तेमाल करते हैं।
दुनिया जिस समय ईधन की भयंकर कमी से जूझ रही है उससे भी काफी पहले आदिमूर्ति ने परिवहन की इस आम और साधारण साधन के फायदों को देखते हुए यह समझदारी भरा निर्णय लिया था।
प्रख्यात मलयालम कवि और विद्वान प्रो. विष्णु नारायणन नंबूदरी एक अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं जो साइकिल का उपयोग करते हैं। दोनों ने साइकिल को किफायती पर्यावरण अनुकूल, शारीरिक और मानसिक तौर पर लाभदायक बताया है। आदिमूर्ति और नंबूदिरी उन कुछ लोगों में से हैं जो तेजी से परिवहन के अत्याधुनिक साधनों से कतई प्रभावित नहीं हुए हैं, हालांकि देश में रोज-रोज कई ऊंची कीमतों वाली नई-नई गाडि़यां चलन में आ रही हैं। और तो और उन्हें यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि तिरुअनंतपुरम की ऊंची-नीची और गड्ढे वाली सड़कें उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से सचेत रखती हैं ।
घर से कार्यालय के बीच रोजाना 20 किलोमीटर साइकिल की सवारी करने वाले आदिमूर्ति ने बताया कि उन्हें इससे कई फायदे हुए। इसका सबसे बड़ा फायदा शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना है। आदिमूर्ति के विचारों को आगे बढ़ाते हुए नंबूदिरी ने कहा कि साइकिल केवल एक कम खर्चीला परिवहन का साधन ही नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह प्रदूषण मुक्त भी है। साइकिल की सवारी कर कोई व्यक्ति न केवल ईधन पर खर्च किए जाने वाली अपनी धनराशि बचा सकता है, बल्कि वह कई तरह से देश को भी फायदा पहुंचाता है।
आदिमूर्ति ने बताया कि बेशक मैं अपनी यात्रा के लिए कार्यालय की गाड़ी का इस्तेमाल कर सकता हूं, लेकिन कई सालों तक मैंने यह महसूस किया कि साइकिल चलाना मुझे शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति देता है। नंबूदिरी ने अपनी यादों के झरोखों से बताया कि उसने अपने एक मित्र के साथ मिलकर 1965 में एक साइकिल खरीदी थी। हम दोनों के बीच समझौता हुआ कि मैं इसे दिन में और वह रात में इस्तेमाल करेगा। वह ऐसा दौर था जब इसकी बहुत जरूरत थी।
कई कविताओं के रचयिता नंबूदिरी ने कहा कि वे प्राय: यह महसूस करते हैं कि साइकिल मनुष्य के शरीर का ही एक विस्तारित अंग है। उन्होंने कहा कि इसके हैंडल हाथों की तरह हैं और पैडल पैरों की तरह उन्होंने साइकिल को एक मध्यस्थ तकनीक के तौर पर देखा है जो भारत जैसे देश के लिए अनुकूल है। उन्होंने उस तस्वीर के बारे में बताया जिसमें महात्मा गांधी को साइकिल से एक बैठक के लिए जाते दिखाया गया है।
आदिमूर्ति के मुताबिक विकसित देशों के अकादमिक शहरों और विश्वविद्यालय परिसरों में छोटी यात्रा के लिए साइकिल को सबसे अधिक तवज्जो दी जाती है। आदिमूर्ति और नंबूदिरी उन चार साइकिल चालकों में से हैं जिन्हें पिछले हफ्ते अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस के अवसर पर केरल ओलंपिक एसोसिएशन ने सम्मानित किया था।
साभार :-''कुछ हट के '' हिन्दी ब्लॉग
Tuesday, July 29, 2008
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