मई २००७ को चेरिया बरियारपुर (बेगुसराय) के विभिन्न गाँव के लोग इसलिय परेशान थे क्योंकि जल स्तर इतना घट गया था कि पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ था। सिर्फ यह प्रखंड ही क्यों गंगा नदी के तटवर्ती जिला के रुप में विख्यात बेगुसराय जिला के अधिकांश गाँव को भीषण जल संकट का सामना करना परा था। पानी के किल्लत ने लोगों को सड़क पर उतरने को बाध्य कर दिया था। लोग प्रशासन से पानी मांग रहे थे ,अब प्रशासन पानी कहाँ से ला कर दे? अब दूसरा दृश्य देखिए,जुलाई २००७ को उसी चेरिया बरियारपुर के बसही नामक बस्ती में जल प्रलय ने ऐसा तांडव मचाया कि मानव को प्रकृति के उद्दंड रुप के सामने नतमस्तक होना परा। उन्न्मत्त ,मन्मतंग जल धारा के क्रूर रुप ने लाखों ज़िन्दगी को ग्रास कर मानव निर्मित बसही समाज के अस्तित्त्व को लीलकर उसे इतिहास के पन्नों में समेट दिया। बसही की इस प्राकृतिक दुर्घटना ने प्रत्यक्षदर्शियों को चेत्नाशुन्य कर के रख दिया,सचमुच हिलाकर रख दिया था प्रकृती के इस कलयुगी रुप परिवर्तन की भुमिका ने.... अब शायद विमर्श से कोइ फायदा तो नही दिखता है ,निश्चित ही बहूत देर हो चुकी है मानव को उसके आत्मघाती कदम उठाने की सज़ा तो अवश्य भूगातनी परेगी। प्रकृति को बौना साबित करने पर तुला मानव नाम का यह जीव इस बर्बादी के लिए खुद ज़िम्मेबार है,जिसने सुन्दर,संतुलित और जीवनदायिनी प्रकृति को बुरी तरह कुचला है। उसे पक्षियों के कलरव अच्छे नही लगे तो उसने कई प्राजातियों को ही लील गया, उसे नदियों की कलकल ध्वनी अच्छी नही लगी तो उसने उसे निर्जल कर दिया,उसे निर्मल शीतल वायू बूरी लगी तो उसने उसे इतना ज़हरीला बना दिया कि वायुमंडल ज़हर उगल रहा है। वह जीव प्रकृति के साथ सामंज़ास्य बिठा पाने में नाकाम रहा तो उसने प्रकृति को विध्वंश करने की ठान ली परिणामस्वरुप प्रकृति के बदले मिजाज़ से हैरत की कोइ बात नही है। हां ...डरने की बात तो ज़रूर है क्यों कि वैज्ञानिक खोज और परिणाम इतने भयावह हैं कि गहराई से सोचने के बाद मानव प्रजाति के अस्तित्त्व मिट जाने के तर्क में दम दिखता है। बेगुसराय मे अप्रत्याशित रुप से घटी विध्वंश ने सचमुच सोचने को बाध्य कर दिया है। आप क्या सोच रहे हैं?हमे ज़रूर लिखें . विमर्श के इस मंच पर आपका स्वागत है। '' अक्षर्ज़ीवी '' खुला मंच है, अपनी भडास यहां उतारिय .........../
Wednesday, October 3, 2007
कभी जल संकट तो कभी जल प्रलय ::प्रकृति के मिजाज़ को आख़िर हो क्या गया है?
प्रस्तुतकर्ता Anonymous पर 10:46 AM
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